हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 32


IV/ A-2032

श्रद्धास्पदेषु,

              प्रणाम

       कृपा-पत्र मिल गया। तीन पैसे वाला तार भी। १०/- रुपये मिल गये थे। काम चल गया था श्री क्षिति मोहन बाबू रंगून जाने वाले थे, पर अब उन्होंने वहाँ का प्रोग्राम बदल दिया है। यदि वहाँ, आपके यहाँ जाने की व्यवस्था हो जाय तो जा सकते हैं। टीकमगढ़ या आस-पास के साधुसंतो और मठों को देखने से उन्हें आनंद मिलेगा। वे आपसे और शर्मा जी से मिलने के लिये उत्सुक हैं। आप जैसा कहें, वैसा उनसे कह दूँ। हमारा आश्रम १४ को बंद हो जायेगा। आप क्या बनारस आ रहे हैं हम लोग भी वहाँ जाने की सोच रहे हैं। अगर आप आये तो वहीं दर्शन होंगे।

आपका

हजारी प्रसाद

3.10.39

।वनों के विषय में मसाला संग्रह कर्रूँगा।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली