हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 33


IV/ A-2033

शान्तिनिकेतन

7.10.39

श्रद्धास्पदेषु,

              प्रणाम!

       कृपा-पत्र मिला। आपने नगण्य पत्र को जैसा महत्त्व दिया है, वह मेरी कल्पना के भी बाहर है। आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तो धृष्टता होगी, पर संकोच प्रकट करने का अधिकारी अवश्य हूँ। बनारस जाने का मेरा विचार है। अगर कोई विषेश बाधा नहीं आई तो ज़रुर उपस्थित हूँगा। यहाँ हम लोग उस पत्र पर आपस में आलोचना कर रहें हैं। एक प्रस्ताव के रुप में उसे बनाने की चेष्टा कर रहे हैं। बनारस में ही उसे आपको दिखाऊँगा। आप ही उसे उपस्थित करें तो उसका कुछ मूल्य होगा। मेरे जैसों को वहाँ कौन पूछता है?

       रुपया फिलहाल मत भिजवाइये। प्रतिनिधि बन कर जाने की इच्छा नहीं है। आशा है, आप सानंद हैं।

आपका

हजारी प्रसाद

       श्री चन्दोला जी और साहनी जी भी बनारस जा रहे हैं। क्षिति बाबू से पूछ लिया है। इस बात का ख्याल रखिये कि मुझे बोलने का अभ्यास एकदम नहीं है।

       श्री हरिशंकर शर्मा के पास एक दूसरा लेख भेज दिया है। शर्मा जी ने लिखा था।  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली