हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 34


IV/ A-2033a

शान्तिनिकेतन

18 .11.39

पूज्य पंडितजी,

              प्रणाम!

       आपकी दो चिट्ठियाँ आईं। जवाब अब तक नहीं दे सका था। प्रान्तीय सम्मेलनों के बारे में आपका कार्यक्रम निर्देश पढ़ा। वह बहुत ही वयावहारिक और उपयोगी है। कवि सम्मेलनों के विषय में आपने जो सलाह दी है, वह महत्तवपूर्ण है। काशी सम्मेलन का कवि सम्मेलन बहुत निरुत्साह-प्रद था। यह भड़ौआपन नहीं हो तो अच्छा। हाँ, अगर अच्छे कवियों का कोई छोटा-सा समाज बैठे तो अच्छा हो।

       आपने जो पत्र-व्यावहार के लिये चित्र-चक्र स्थापन करने की बात सोची है, मैं उसका स्वागत करता हूँ। मुझे ऐसी बहुत-सी बातें जानने की ज़रुरत पड़ती है, जिनके विषय में अगर ऐसी मणडली में चर्चा छेड़ी जाय तो अभीष्टसिद्धि में सहायता मिले। परन्तु बहुत सावधानी से इस मण्डली को दल या गुट नहीं बनने का प्रयत्न करना होगा। अगर व्यक्तिगत कारणों के अभाव में सैद्धांतिक आधार पर दल हो तो कोई बुरी बात नहीं है। पर सम्मेलन के कई कटु अनुभवों में से मेरा एक अनुभव यह है कि अपने लोगों में व्यक्ति-प्रधान दलबंदी का भाव प्रबल है। इसीलिये इस मण्डली में ऐसे लोगों को भी रखना चाहिये जो व्यक्तिगत रुप से भिन्न-भिन्न दल के अगुओं के रुप में गलती से और दुर्भाग्यवश समझे जाने लगे हैं। इन व्यक्तियों को चुनते समय इस बात का ख्याल ज़रुर रखना चाहिये कि उनके आने से कहीं कार्य में बाधा न पड़ने लगे। हमारा उद्देश्य साधु हो और हृदय पवित्र हो तो हम इस मण्डली का अच्छा संगठन कर पायेंगे। इसमें मुझे संदेह नहीं।

       हिन्दी भवन के व्यख्यान के लिये वाजपेयी जी को बुलवाने के मामले में मैं कनौडिया जी को लिख रहा हूँ। विषय लेकिन वाजपेयी जी ही चुनें तो अच्छा रहे।

       इस पत्र के साथ एक विज्ञप्ति भेज रहा हूँ, जिसके बारे में मैंने पहले ही लिखा था। यह प्रकाशक उत्तम पुस्तकें प्रकाशित करना चाहते हैं। आप मुझे उचित मार्ग बतायें। कोई लेखक अगर इस प्रकार की कोई पुस्तक लिख रहे हों और आपको पता हो तो उनका नाम भी बतायें। विशाल भारत में क्या एक छोटा-सा नोट दिया जा सकता है

       और सब कुशल है।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली