हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 67


IV/ A-2069

लखनऊ

29.1.45

परम पूज्य पंडितजी,

       कल लखनऊ विश्वविद्यालय ने आनरेरी डी.लिट. की उपाधि दी। बार-बार इच्छा हो रही थी कि आपके चरणों में सिर रखूँ। आपका ही प्रसाद है। आप से लेखक जीवन के आरंभ में ही जो शिक्षा मिली थी, वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी निधि रही है। वही मेरा ध्रुव नक्षत्र बनी रही है। मैं आज अपने कई गुरुजनों को इस अवसर पर नहीं पा रहा हूँ। मन बड़ा उदास है। पर सौभाग्यवश आपको प्रणाम निवेदन कर सकता हूँ। मेरा सादर प्रणाम ग्रहण करें और भविष्य में मुझे आशीर्वाद पानेवालों में सबसे आगे स्मरण किया करें।

       संयोगवश, श्री बुद्धिप्रकाश जी से भेंट हो गई। बड़ा आनंद मिला। ऐसा लगा कि आप ही मिल गए हों।

       बार-बार प्रणाम।

आपका

हजारी प्रसाद  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली