हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 70


IV/ A-2072

शान्तिनिकेतन

5.9.45

पूज्य पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

       आपने जो लेख भेजा था, उसमें कुछ और जोड़ कर लौटा रहा हूँ।

       आपने छपरा वाले मुकदमे का क्या हुआ, कुछ समाचार नहीं मिला। क्या सरकार को सुबुद्धि हुई और उसने उठा लिया?

       मधुकर का नया अंक देखा। बहुत अच्छा है। इसमें हिन्दी और हिन्दुस्तानी के संबंध में रचनात्मक सुझावों के लिये मत माँग कर छापें तो कैसा रहे मैं एकेडेमिक बहस की बात नहीं कर रहा हूँ। शीघ्र ही भारतवर्ष को स्वराज्य मिलेगा और भाषा की समस्या अत्यन्त नग्नरुप में उपस्थित होगी। मुझे कोश-व्याकरण बना कर भाषा को रुप देने वाला प्रयत्नसफल होता नहीं दिखता। फिर भी, इस विषय में लोगों से लिखने की प्रार्थना की जाय तो वादे वादे जायते तत्त्वबोध। शायद कुछ अच्छी बात निकल भी आए।

         यहाँ सब कुशल है। आशा है, प्रसन्न हैं।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली