हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 77


IV/ A-2079

शान्तिनिकेतन

  3.10.47

पूज्य पंडित जी,

       आपका ४.९.४७ का कृपा-पत्र बहुत देर से मिला है। संस्कृत का कोई बड़ा कवि या नाटककार ऐसा न मिलेगा जिसने   किसी-न-किसी बहाने तपोवनों का कुछ वर्णन न किया हो। शकुंतला में तो है ही, रघुवंश में और कुमारसंभव में भी (पंचम सर्ग) कालिदास ने बहुत सुंदर तपोवन वर्णन लिखा है। भवभूति के उत्तरचरित्र में, बाणभट्ट की कादंबरी में (कथामुख में जाबालि आश्रम और बाद में महाश्वेता और कपिञ्जल के आश्रम) बहुत ही चित्ताकर्षक वर्णन है। रामायण और महाभारत में भी अरण्यों और आरण्यकों के मनोहर वर्णन हैं। टीकमगढ़ में ये पुस्तकें जल्द मिल जाएँ। न मिलें तो लिखें मैं कोई व्यवस्था कर्रूँगा। कालिदास की समूची ग्रंथावली बनारस से अनुदित होकर प्रकाशित हो चुकी है। यद्यपि अनुवाद उतना सरस नहीं है तो भी मूल भी साथ रहने से रसग्रहण में सहायक अवश्य है। आशा है, प्रसन्न हैं।

आपका

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली