हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 92


IV/ A-2144

अभिनव भारती ग्रन्थमाला

सम्पादक-

हजारी प्रसाद द्विवेदी

शान्तिनिकेतन

बोलपुर E.I. Ry.

श्रद्वास्पदेषु,

       सादर प्रणाम के अनन्तर। समाचार अच्छा है। पिछली बार जब से गांधी जी यहाँ आये थे तभी से आपकी पुस्तक "भारत भक्त एण्ड्रूज़" की यहाँ बड़ी धूम है। अब गुरुवर एण्ड्रूज़ के स्वर्गवासी हो जाने पर उसकी पूछ और अधिक होने लगी। हमारे मित्र श्री पं. निनाई विनोद गोस्वामी (गोसाई जी) उसका बंगला अनुवाद करना चाहते हैं। शायद विश्वभारती ही प्रकाशित करेगी। आपसे अनुमति चाहते हैं। उस पुस्तक का दूसरा संस्करण यहाँ नहीं है। कल ही शास्री जी ने उस पुस्तक में छपे हुए अपने श्लोकों को माँगा था। आज तीन और पत्र मुझे मिले हैं। एक मासिक विश्वमित्र से जो संस्मरण चाहते हैं, एक दूसरा जो आपको भेज रहा हूँ, ये उनके विषय में त्दःढ्दृद्धथ्रठ्ठेद्यत्दृद माँगते हैं। एक तीसरे प्रकाशक भी उनका जीवन चरित्र छापना चाहते हैं। श्री जगपति चतुर्वेदी को आप उचित उत्तर दे दें तो अनुगृहीत हूँगा। मुझे एण्ड्रयूज़ के जीवन विषय में उतना ही मालूम है जितना आपकी पुस्तक में है। आप यदि एक लेख ऐसा लिखें जिसमें उनके विषय में जानकारी प्राप्त करने के साधनों का उल्लेख हो तो बहुत अच्छा हो। उनकी कुछ ज़रुरी चिट्ठियाँ तो यथाशीघ्र ज़रुर छापें।

       गोसाई जी को अनुमति देने की भी कृपा करें।

       महात्मा गांधी ने भी आपकी पुस्तक माँग कर पढ़ी थी। उन्होंने उसकी सबसे प्रशंसा भी की थी।

       श्री एण्ड्रयूज़ साहब के स्वर्गवास से आपको जो सदमा पहुँचा है, वह मैं आसानी से समझ सकता हूँ। इतना सरल, सहृदय और महान् पुरुष का दर्शन भी दुर्लभ होता है, हम लोग कितने भाग्यवान थे कि उनके निकट रहने का मौका मिला था। मुझे ऐसा एक भी अवसर नहीं याद आता जब मैं उनके पास गया होऊँ और वे हँसते हुए छाती से न लगा लिये हों। प्रतिवार एक नई प्रेरणा मिलती थी। किन्तु हाय, अब वह सौभाग्य नहीं रहा। मैं समझता हूँ, पं. श्रीराम शर्मा का पुण्य फल बहुत जबर्दस्त होगा जो उन्हें उनकी अन्तिम रुग्णावस्था में सेवा करने का अवसर पा सके।

       आशा है, आप सानंद हैं।

आपका

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली