हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 102


IV/ A-2097

काशी
9.1.1953

पूज्य पंडित जी,
प्रणाम!

कृपापत्र मिला। मैं १९, २०, २१, २२ जनवरी को दिल्ली आ रहा हूँ। २२ को वहाँ से चलूँगा। उसी समय दर्शन होंगे। आपने रेखाचित्र के कवर पृष्ठ की चर्चा की है, मैं तो घबरा गया कि मैंने क्या लिख दिया है। आज रहस्य खुला। कवर पृष्ठ पर जो छपा है, वह मेरी वह आलोचना है जो संस्मरण के संबंध में ""ज्ञानोदय"" में प्रकाशित हुई थी। उसी को उन लोगों ने कवर पृष्ठ पर छाप दिया है। मैंने उसमें कम ही लिखा है। और भी लिख रहा हूँ। ""खूंटे"" की व्याख्या मैं कर दूँगा। आप उसकी फ़िकर न करें। जिस खूंटे की ओर आपने इशारा किया है वह तो कुछ घपले में पड़ता दिख रहा है। आप खुद अपने हाथों सब बिगाड़ रहे हैं। कम से कम दो प्रणाम मेरे पास जिसमें आपने अपने हाथों अपनी ऐसी उमर बताई है जिस उमर में हाथी भी खूंटे से छोड़ दिया जाता है। कम-से-कम ज्योतिषी से ऐसी बात छिपानी चाहिए। उतना बढिया सत्य की कंजूसी का श्लोक लिख आया और आप अभी भी उदारता का व्यावहार करते आ रहे हैं। मैंने भगवान से प्रार्थना की है अभी उमर की बात को गलत साबित कर दें और आपकी भुक्त आयु में से कम से कम ३० वर्ष कम कर दें और भोग्य में उसको दुगुना बढ़ा दें। तथास्तु।

"कल्पना" के भवानी प्रसाद मिश्र जी ने एक लेख लिखा है जिसमें संकेत किया गया है कि सरकार "तुलसी" "सूर" आदि प्राचीन कवियों की पुस्तकों पर एक साधारण कर के रुप में बैठा दे और उससे गरीब साहित्यिकों की सेवा करे। मुझे यह प्रस्ताव बहुत अच्छा मालूम हुआ। आप भी विचार कर देखें। यदि उचुत लगे तो इसका प्रचार किया जाए। भावानी प्रसाद जी आजकल हैदराबाद में हैं। उनसे भी पत्र व्यवहार किया जा सकता है।

शेष कुशल है। आशा है प्रसन्न हैं।

आपका
हजारी प्रसाद

पुनश्चः "जनपद" के लिये कुछ भेजें। उसकी आर्थिक अवस्था अब चिन्ताजनक हो गई है। जहाँ से रुपया मिलने की आशा थी वहाँ से तो कुछ मिला नहीं क्या किया जाए।

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली