Shri Shri Rupagoswamiprabhupadapranita Shri Shri Bhaktirasamrtasindhu

श्री श्री रूपगोस्वामिप्रभुपादप्रणीतः
श्री श्री भक्तिरसामृतसिन्धुः
सम्पादक एवं अनुवादक – प्रेम लता शर्मा
1998(Vol.I), lxviii+564pp., intro., ISBN: 81-208-1546-7 (Vol. I) Rs. 850(HB). 2003 (Vol II) lxxv+536pp., ISBN: 81-208-1985-3 (Vol. II), 81-208-1986-1(set) Rs. 1400 HB) 

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श्री श्री भक्तिरसामृतसिन्धु केवल गौड़ीय परम्परा का प्रमुख ग्रन्थ ही नहीं है अपितु पूरे देश में भक्तिरस का जो भी प्रतिपादन हुआ है उसकी पराकाष्ठा इसमें निबद्ध है।

श्री श्री भक्तिरसामृतसिन्धु में भक्ति का साङ्गोपाङ्ग निरूपण परम्परा प्राप्त नौ रसों में से शान्त और श्रृङ्गार से दास्य, सख्य और वात्सल्य को जोड़कर पाँच मुख्य भक्तिरस और शेष सात – हास्य, करुण, वीर, भयानक, बीभत्स, रौद्र एवं अद्भुत – को गौण भक्तिरस बनाकर द्वादश भक्तिरस का प्रतिपादन है।