विश्‍वकर्मा की विश्‍वदृष्टि

वर्ष 2013 में शुरू किया गया, आईजीएनसीए परियोजना “विश्वकर्मा की विश्वदृष्टि” में भारत के कारीगर समुदायों के पांच समूहों को शामिल किया गया है-लोहार, बढ़ई, ठठेरा, मूर्तिकार और स्‍वर्णकार जो अपनी उत्‍पत्ति भगवान विश्‍वकर्मा के वंश से मानते हैं। जबकि भारत की कला और शिल्प विरासत को आकार देने में कारीगरों की भूमिका बहुत बड़ी है, पारंपरिक और आधुनिक संदर्भों दोनों में समुदाय, ब्रह्मांड विज्ञान, सामाजिक संरचना और कला और शिल्प उत्पाद को जोड़ने वाले समग्र अध्ययन दुर्लभ हैं। इस परियोजना का उद्देश्य बहु-विषयक और समग्रतावादी प्रणाली विज्ञानों के माध्यम से विश्वकर्मा की विश्वदृष्टि का व्यापक अध्ययन करना है।

उद्देश्य :

  • मूल मिथकों और विश्वकर्मा ब्रह्मांड विज्ञान का अध्ययन
  •  मौखिक परंपरा
  •  कार्य, उपकरण और कार्यशालाओं की पारंपरिक अवधारणा
  •  धातुकर्म
  •  भौतिक पर्यावास और पर्यावरण
  •  जीवन चक्र की घटनाएं
  •  अनुष्ठान और त्योहार
  •  कला और शिल्प
  •  आइकनोग्राफ़ी
  •  विश्वकर्माओं के लिए विशिष्ट, अनुष्ठानिक और दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का शब्द कोश

वर्तमान में यह परियोजना दक्षिण भारत में विश्वकर्मा पर संकेंद्रित है। साहित्य सर्वेक्षण और एक सटिप्‍पण ग्रंथ सूची तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है। विश्वकर्मा और कमलार की लुप्त हो रही धरोहरों का एक सहयोगी अध्ययन: दक्षिण भारत में धातुकर्मियों की तकनीकी-सांस्कृतिक राह ‘बैंगलोर के राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान के सहयोग से चल रहा है। दूसरे चरण में, परियोजना का अन्य क्षेत्रों में विस्‍तार किया जा सकता है और उसी के अनुसार सहयोग किया जा सकता है।