परिचय – असम

भूमि

असम पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार है, एक राज्य जिसे इसकी लुभावनी दर्शनीय सुंदरता, दुर्लभ वनस्पति तथा जीवों, हरी-भरी पहाड़ियों, व्यापक रोलिंग मैदान, विशाल जलमार्गों और मेलों तथा त्योहारों की भूमि के लिए जाना जाता है। पुरातन कथाओं में इसे प्राग्ज्योतिशा तथा कामरूप की राजधानी के रूप में जाना जाता था जिसकी राजधानी प्राग्ज्योतिशपुरा थी जो गुवाहाटी में अथवा इसके नजदीक स्थित थी। इसमें मूल रूप से आधुनिक असम के साथ-साथ आधुनिक बंगाल और आधुनिक बांग्लादेश के कुछ हिस्से शामिल थे। असम नाम का उद्गम बाद में हुआ है। यह अहोम लोगों द्वारा असम को जीत लिए जाने के बाद प्रयोग में आया। यह भी सुना गया है कि “असम” नाम “असम” शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है असमान। असम केंद्रीय भारत से बांग्लादेश द्वारा लगभग अलग होता है। इसकी पूर्वी सीमा पर नागालैंड, मणिपुर और म्यानमार हैं, पश्चिम में पश्चिम बंगाल है, उत्तर में भूटान और अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण में मेघालय, बांग्लादेश, त्रिपुरा और मिजोरम है। इसके अधिकतर हिस्से में विशाल नदी ब्रह्मपुत्र बहती है, जो विश्व की सबसे महान नदियों में से एक है (लंबाई: 2900 किमी.), जिसमें न केवल चावल उगाने के लिए एक उपजाऊ जलोढ़ मैदान है बल्कि यह चाय के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ भूकंप आम बात हैं।

एक बौद्ध ताई जनजाति के लोग अहोम सुकपा के नेतृत्व में 1228 ईसवी सन में यहाँ आए, यहाँ के शासक को अपदस्थ किया और शिवसागर में राजधानी बनाते हुए “असम” राज्य की स्थापना की। अहोम लोगों के आगमन ने असम के इतिहास की दिशा बदल दी। बाद में वे प्रवासी बंगालियों के साथ अंतर्मिश्रित हो गए और इनमें से अधिकतर ने हिन्दू धर्म अपना लिया। मुगलों ने यहाँ आक्रमण करने का प्रयास किया परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली, परंतु बर्मा ने आखिरकार 18वीं शताब्दी के अंत में असम पर आक्रमण किया और इसके 1826 में प्रथम बर्मा युद्ध समाप्त होने पर ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपे जाने तक लगातार इस पर अपना अधिकार रखा। अंग्रेजों ने इस पर इसी नाम के साथ 1947 तक शासन किया। भौगोलिक रूप से असम अपने पूर्व रूप की परछाई है। इसे 30 वर्षों में इसके मूल आकार से कम करके एक-तिहाई बना दिया गया है। भारत के विभाजन के समय लगभग पूर्ण सिलहेट को पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के साथ मिला दिया गया। उत्तरी कामरूप में देवनगिरि को 1951 में भूटान को सौंप दिया गया। वर्ष 1948 में एन.ई.एफ.ए. को असम से अलग कर दिया गया।वर्ष 1963 में नागालैंड को असम से अलग करके एक पूर्ण राज्य बना दिया गया। 21 जनवरी, 1972 को मेघालय को एक अलग राज्य के रूप में असम से अलग किया गया और मिजोरम को संघ राज्य क्षेत्र बना दिया गया। वर्ष 1987 में मिजोरम को राज्य का दर्जा दे दिया गया। प्रकृति ने असम को बिना किसी शिकायत के मनोहर भव्यता, दुर्लभ तथा लगभग-विलुप्त वन्य जीवों की प्रचुरता का वरदान दिया है।

यह एक वैश्विक जैव-विविधता “हॉटस्पॉट” बनाता है,असम में पाई जाने वाली 41 सूचीबद्ध लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियों में गोल्डन लंगूर, हूलोक्क लंगूर, पिग्मी सूअर, हिस्पिड खरगोश, सफ़ेद पंखों वाली वुडडक, बाघ, क्लाउडेड तेंदुआ, स्वांप हिरण, गंगा डॉल्फिन आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मौसम के दौरान निवासी और प्रवासी पक्षियों का झुंड असम को अपना प्राकृतिक आवास बनाते हैं। यह विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले स्थलों में से एक है (178 और 305 सेमी. के बीच),4 माह अर्थात जून से सितंबर में बहुत अधिक होती है। ब्रह्मपुत्र के दोनों तटों पर फैला हुआ गुवाहाटी, जिसे प्रसिद्ध प्राग्ज्योतिशपुर अथवा पूर्वी प्रकाश का शहर कहा जाता है और जिसे पुराणों और महाकाव्यों में उल्लिखित राजा नरकासुर द्वारा स्थापित किया गया माना जाता था, एक गतिशील, व्यस्त तथा भीड़-भाड़ वाला शहर है। यह पूर्वोत्तर की वाणिज्यिक राजधानी है। गुवाहाटी वास्तव में दो शब्द हैं: गुवा का अर्थ है सुपारी और हाट का अर्थ है बाजार अथवा सुपारी का बाजार।

लोग :

असमी लोगों का जातीय मूल मोंगोलोएड जनजातियों से सीधे भारतीय जातियों तक से है। असम के सबसे पहले निवासी संभवत: ऑस्ट्रिक नस्ल के थे। इन्हें “प्रोटो-ऑस्ट्रोलोइड” कहा जाता है क्योंकि उन्हें ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के कुछ अन्य द्वीपों से एशिया की मुख्य भूमि पर आ कर बस गया माना जाता है। ख़ासी और जयंतिया पुरातन असम के प्रोटो-ऑस्ट्रोलोइड के वशंज प्रतीत होते हैं। ऑस्ट्रिक लोगों के बाद मोंगोलोइड असम में प्रविष्ट हुए थे। मोंगोलोइड लोगों में से बोडो जनजाति आई और ये शुरू में ही ब्रह्मपुत्र घाटी में आ कर बस गए। कछारी, जिन्हें भी बोडो के रूप में जाना जाता था, कभी बहुत शक्तिशाली थे। ऐसा माना जाता है कि एक समय में वे पूरे असम पर राज करते थे। इस जनजाति की अन्य शाखाएँ हैं – कछारी, मेचे, गारो, अबोर, मिरि, मिशमी, रभा, तिपरा, आका, डफला, नागा, कुकी, मिकरी और मिज़ो।

जब 13वीं शताब्दी में अहोम आए तब कछारी और चुटिया पूर्वी असम के एक बड़े भाग पर शासन कर रहे थे। उसके बाद आर्य आए जो बहुत पहले ब्रह्मपुत्र घाटी में स्थापित हो गए। बेशक, विभिन्न जातियों में से आर्य इस देश में अपना सांस्कृतिक प्रभुत्व स्थापित कर पाए।

मोटे तौर पर, असम के निवासियों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात जनजातीय जनसंख्या, गैर-जनजातीय जनसंख्या और अनुसूचित जातियाँ। जनजातीय लोगों में विभिन्न जातीय-सांस्कृतिक समूहों जैसे कछारी (बोडो), मिरि, देओरी, रभा, नागा, गारो, ख़ासी आदि शामिल हैं। गैर-जनजातीय समूहों में अहोम, कायस्थ, कलिता, मोरन, मुत्तक, चुटिया आदि शामिल हैं। अनुसूचित जातियों में बसफोर, बनिया, धोबी, हीरा, कैबार्ता और नामसूद्र आदि शामिल हैं। विस्थापित हो कर यहाँ बसने वालों में अधिकतर बंगाल, बांग्लादेश, बिहार, उत्तर प्रदेश,नेपाल और राजस्थान से थे। एक अन्य समूह “बगनिया” के नाम से जाना जाता था जिन्हें ब्रिटिश रोजगार अवधि के दौरान ब्रिटिश चाय उत्पादकों द्वारा बंगाल, बिहार, ओडिशा, और मध्य प्रदेश से लाया गया था। असम में शुरुआत में स्थापित होने वाले कुछ लोगों में आर्यन तथा द्रविड़ समूह के लोग थे। यहाँ के मूल निवासियों को विभिन्न जनजातीय समूहों के किरत के रूप में जाना जाता था जैसा कि महाभारत में उल्लेख किया गया है। आर्यन, द्रविड़,ऑस्ट्रिक और मोंगोलोइड नस्लों की विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण संयुक्त संस्कृति के रूप में आकार लेता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत:

असम में धार्मिक प्रणाली में उदारवाद धीरी-धीरे विकसित हुआ है। यहाँ के देशी समूह हैं आत्मवाद, तंत्रवाद, ब्राह्मणवाद और वैष्णव मत। असम के लोग श्रीमत संकरदेव (1449-1568) द्वारा स्थापित किए गए नव वैष्णव धर्म के आने तक रिवाजों के तांत्रिक स्वरूपों को मानते थे। हिंदुवाद का प्राचीन स्वरूप तब शुरू हुआ जब आर्य असम में आए।

वर्तमान हिन्दू धर्म पद्धति बाहरी लोगों के यहाँ आ कर बसने के साथ शुरू हुई। 15वीं सदी में नव वैष्णववाद ने इस भूमि में प्रवेश किया और यह वर्तमान में असम के लोगों के बीच प्रचलित धर्म है। असम का समाज उदारवाद के सिद्धांतों पर आधारित एक खुला समाज है। यह दुर्गा, काली, सरस्वती के मूर्ति पूजकों और अन्य लोगों को वैष्णव मत का अनुसरण करने की अनुमति देता है। 13वीं सदी में मुस्लिम यहाँ आना शुरू हुए और उन्होंने असम में मस्जिदें बनाई। अंग्रेजों के शासन के समय से इस राज्य में ईसाई धर्म पनपना शुरू हुआ और यह शीघ्र ही पूर्वी धर्मों के सभी हिस्सों में फैल गया। असम के सामाजित स्तरीकरण में जाति प्रणाली कभी भी मजबूत जड़ें नहीं बना पाई।

असम मेलों तथा त्योहारों की भूमि है। असम में मनाए जाने वाले अधिकतर त्योहारों का मूल इसके निवासियों के विविध मतों और मान्यताओं में है। ये त्योहार असम के लोगों की सच्ची भावना, परंपरा और जीवनशैली को दर्शाते हैं। असम की संस्कृति यहाँ वास करने वाली सभी प्रजातियों के विभिन्न रंगों के धागों से बुनी गई एक समृद्ध टेपेस्ट्री है। यहाँ की प्रमुख भाषा असमिया है।

अर्थव्यवस्था:

राज्य का लगभग 63% कार्य बल कृषि और संबंधित गतिविधियों में संलग्न है। कुल फसल क्षेत्र के 79% से अधिक क्षेत्र का उपयोग खाद्य फसलों के उत्पादन के लिए किया जाता है। चावल यहाँ की प्रमुख खाद्य फसल है। जूट,चाय, कपास, तिलहन, गन्ना, आलू और फल यहाँ की प्रमुख व्यावसायिक फसलें हैं। राज्य के कुल क्षेत्र का 22.41% वन भूमि है। असम के चाय के बागानों में देश के आधे से ज्यादा चाय का उत्पादन होता है और यह विश्व के संपूर्ण चाय उत्पादन का लगभग छठा हिस्सा है। खनिज तेल के उत्पादन के संबंध में असम की अद्वितीय स्थिति है। कोयला, चूना पत्थर, दुर्दम्य मिट्टी, डोलोमाइट और प्राकृतिक गैस ऐसे अन्य खनिज हैं जो इस राज्य में पाए जाते हैं। 19वीं सदी में यहाँ बड़े पैमाने पर तेल के भंडार पाए गए और दिगबोई एशिया का प्रथम तेल रिफाइनरी स्थल बन गया।

असम की तीन तेल रिफाइनरी दिगबोई, नूनमती और बोंगाईगांव में हैं और चौथी एक पेट्रो-रसायन कॉम्प्लेक्स है जो नुमालीगढ़ में है। देश के कुल पेट्रोलियम उत्पादन तथा प्राकृतिक गैस का एक बड़ा हिस्सा इस राज्य में पाया जाता है। वनों से लगातार लकड़ी, राल और पेड़ की छाल से टेनिंग सामग्री मिल रही है और बांस का प्रयोग कागज बनाने के लिए किया जाता है। नामरुप में एक सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक फैक्टरी के अतिरिक्त राज्य में चीनी, जूट, रेशम, कागज, प्लाईवुड निर्माण, चावल तथा तेल की मिलिंग के उद्योग स्थित हैं।

कामरूप जिले के नाथकुची गाँव में एक पॉलिएस्टर कताई मिल भी स्थापित की गई है। यहाँ के प्रमुख विद्युत स्टेशन हैं: चंद्रपुर ताप विद्युत परियोजना, नामरुप ताप विद्युत परियोजना, कार्बी-लांगपी-जल विद्युत परियोजना और लकवा ताप विद्युत केंद्र। असम सुनहरे रंग के “मुगा रेशम” का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है।

त्योहार :

असम में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार हैं बिहु-भोगली अथवा माघ बिहु (जनवरी),रोंगाली अथवा बोहग बिहु (अप्रैल) और कोंगाली अथवा कति बिहु (मई) जिन्हें पूरे असम में सभी जाति, पंथ तथा धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। अन्य त्योहार हैं बैशागु (अप्रैल के मध्य में बोडो कछारी लोगों द्वारा मनाया जाता है),आली-आई-लिगांग (मिशिंग जनजाति का त्योहार, फरवरी-मार्च),बाइखो (रभा जनजाति, बसंत के मौसम में),रोंगकेर (कार्बी लोगों का महत्वपूर्ण त्योहार, अप्रैल) रजिनी गबरा और हरनी गबरा (दिमासा जनजाति),बोहागियो बिशु (देवरी लोगों का बसंत ऋतु का त्योहार),अंबुबाशी मेला (कामाख्या मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहार प्रति वर्ष जून के मध्य में मनाया जाता है। यह सरलताओं की प्रथा है जिसे “तांत्रिक” रीतियों से मनाया जाता है) और जोनबिल मेला (गुवाहाटी के पास जागीरोड के जोनबिल में प्रति वर्ष सर्दियों के दौरान आयोजित किया जाने वाला शानदार मेला) आदि।

यद्यपि असम के लोग जन्माष्टमी (अगस्त),दुर्गा पूजा (अक्तूबर),दिवाली, ईद, मुहर्रम,मे-दाम-मे-फि, वैष्णव संतों श्रीमंत संकरदेव और श्री माधवदेव की जयंती और बरसी भी मनाते हैं।

रुचि के स्थान:

वन्य जीव अभयारण्य

1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान: विश्व-प्रसिद्ध उद्यान काजीरंगा गोलाघाट और नगांव जिले में है। यह 430 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है। यह भारतीय एक-सींग वाले गैंडे का वास स्थान और पेलिकन का प्रजनन स्थल है।
2. मानस राष्ट्रीय उद्यान: असम का एकमात्र बाघ आरक्षित क्षेत्र। मानस भारत के सर्वाधिक भव्य राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। यह एक विश्व धरोहर स्थल भी है।

3. नामेरी राष्ट्रीय उद्यान (अरुणाचल और असम की सीमा पर)।

4.दिब्रू-साइखोवा राष्ट्रीय उद्यान।

5. ओरांग(राजीव गांधी) राष्ट्रीय उद्यान।

6. पबीतोरा वन्य जीव अभयारण्य

7. बुरा-चपोरी वन्य जीव अभयारण्य

8. लाओखोवा वन्य जीव अभयारण्य

9. चक्रशिला वन्य जीव अभयारण्य, धुबरी।

10. बोरनदी वन्य जीव अभयारण्य, दर्रंग।

11. गरमपानी वन्य जीव अभयारण्य, गोलाघाट।

12. पानी दिहिंग पक्षी अभयारण्य, शिवसागर।

13. बोर्डोइबाम बिलमुख अभयारण्य, लखीमपुर, धेमाजी।

14. दीपोर बील पक्षी अभयारण्य, गुवाहाटी।

गुवाहाटी (असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र का प्रवेश द्वार और असम का प्रमुख शहर)। कामाख्या और भुवनेश्वरी मंदिर; वशिष्ठ आश्रम;नवग्रह मंदिर; राज्य जंतुआलय; संग्रहालय; क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र; नक्षत्र-भवन; तिरुपति बालाजी मंदिर; श्रीमंत संकरदेव कलाक्षेत्र; उमानंद मंदिर; श्री श्याम मंदिर आदि; दिसपुर (असम की राजधानी);दिफू (कार्बी कला एवं संस्कृति का केंद्र)।

सिबसागर (असम में अहोम साम्राज्य की पीठ – शिवडोल, विष्णुडोल, देवीडोल, रंग घर, तालतोल घर, जोयसागर, अहोम संग्रहालय, गरगांव, कारेंग घर, चरईदेव आदि);सुआलकुची (असमिया रेशम – मुगा तथा पट के लिए प्रसिद्ध);चंदुबि (एक प्राकृतिक खाड़ी और पिकनिक स्थल);बारपेटा (वैष्णव मठ, श्री माधव देव का मंदिर)।

हाजो (जहां तीन धर्मों का संगम होता है – हिन्दू, बौद्ध और इस्लाम की एक मस्जिद पाओ-मक्का);जोरहाट और डिब्रूगढ़ (प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र);तेजपुर(मंदिर, प्राचीन अवशेष और स्मारक – दा परबतिया, अग्निगढ़, बामुनी पहाड़ियाँ, भैरवी और महाभैरव मंदिर और बार पुखुरी तथा पदुम पुखुरी के दो टैंक और कोल पार्क)।

मदन कामदेव (12वीं शताब्दी की कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध); श्री सूर्य पहाड़ (चट्टान को काट कर बनाई गई मूर्तियाँ);दिगबोई (विश्व की सबसे पुरानी तेल रिफाइनरियों में से एक); माजुली (विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप, वैष्णव संस्कृति का केंद्र। ऐसे कई सत्र हैं जिन्हें असमिया कला, संगीत, नृत्य, नाटक आदि का प्रमुख केंद्र माना जाता है);जटिंग(हफलोंग के समीप पक्षी रहस्य के लिए प्रसिद्ध), हफलोंग(असम का एकमात्र हिल स्टेशन); भालुकपोंग(दर्शनीय सुंदरता, पिकनिक और मछली पकड़ने के स्थल के लिए प्रसिद्ध);भैरवकुंड (अरुणाचल प्रदेश, असम और भूटान की सीमा पर एक पिकनिक स्थल);दरंग (यहाँ प्रति वर्ष प्रसिद्ध शीत मेला आयोजित किया जाता है);बरोदा(असम के प्रसिद्ध वैष्णव सुधारक श्री संकरदेव का जन्म स्थान)।