परिचय – मिजोरम

भूमि

 मिजोरम, एक पर्वतीय क्षेत्र है जो पूर्व तथा दक्षिण में म्यानमार और पश्चिम में बांग्लादेश और त्रिपुरा के बीच सैंडविच की तरह स्थित है और इसकी उत्तरी सीमा असम और मणिपुर राज्यों को स्पर्श करती है। एक नीतिगत महत्व के स्थान पर स्थित इस राज्य की म्यानमार और बांग्लादेश के साथ 1100 किमी. की अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। यह 1972 तक असम के जिलों में से एक जिला था जब यह एक संघ राज्य क्षेत्र बना | 

वर्ष 1891 में अंग्रेजों द्वारा इसे अपने राज्य में शामिल किए जाने के बाद पहले कुछ वर्षों तक उत्तर में लुशाई हिल्स असम के अधीन रहा, जबकि दक्षिण का आधा भाग बंगाल के अधीन रहा। 1898 में इन दोनों भागों को मिला कर असम के मुख्य आयुक्त के अधीन एक जिला अर्थात लुशाई हिल जिला बना दिया गया। 

वर्ष 1972 में पूर्वोत्तर पुनर्गठन अधिनियम के कार्यान्वयन के साथ मिजोरम एक संघ राज्य क्षेत्र बन गया और वर्ष 1986 में भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के परिणामस्वरूप यह 20 फरवरी, 1987 को भारत संघ का 23वां राज्य बन गया। मिजोरम का शाब्दिक अनुवाद है “पर्वतनिवासियों की भूमि”। ये पहाड़ियाँ 900 मीटर की औसत ऊंचाई के साथ तीव्र ढलान वाली हैं। मिजोरम की सर्वोच्च चोटी ब्ल्यू माउंटेन (फव्ङ्ग्पुई) है जिसकी ऊंचाई 2210 मीटर है। मिजोरम के उष्णकटिबंधीय वनों में वनस्पति और जीवों की विविध प्रजातियाँ स्थित हैं। निचले क्षेत्रों में जंगली पौधों के साथ बिखरे हुए मोटे बांस के उपवन बहुतायत में हैं और जैसे-जैसे ये पहाड़ियाँ ऊपर बढ़ती जाती हैं ये बेलों तथा बेंतों के साथ लिपटते हुए ये धीरे-धीरे घने वृक्षों में बदलते जाते हैं। विभिन्न रंगों के ऑर्किड, गुलाबी-सफ़ेद बौथिनिया, चमकीले र्होदोड़ेंड्रोन, पीले सूरजमुखी और कई अन्य रंगीन जंगली फूल यहाँ की हरियाली को एक रमणीय टोनल विरोधाभास देते हैं। एक पक्षी विज्ञानी के लिए मनोरम होने के अतिरिक्त ये जंगल बाघों, जंगली सूअरों, तेंदुओं, बंदरों, भौंकने वाले हिरणों, साँभर और हाथियों का घर हैं।

लोग:
इतिहासकारों का मानना है कि मिज़ो लोग मंगोलों की जाति की विशाल धारा का हिस्सा हैं जो कई शताब्दियों पहले पूर्वी तथा दक्षिण भारत में आए थे। पश्चिमी म्यानमार, जहां वे अंत में 7वीं सदी के आस-पास गए, में उनका ठहराव अनुमानत: लगभग 10 शताब्दियों तक रहा। मिज़ो केवल एक जनजाति नहीं है जैसा कि सामान्यत: माना जाता है परंतु इस शब्द का अर्थ बहुत सारी जनजातियों से है। मिज़ो शब्द का अर्थ है “जो व्यक्ति पहाड़ियों में रहते हैं” (मि- व्यक्ति; जो- पहाड़ियाँ) अथवा पर्वतनिवासी। मिज़ो 5 प्रमुख जनजातियों और 11 गौण जनजातियों से बने हैं जिन्हें एक नाम अवजिया के नाम से जाना जाता है।5 प्रमुख जनजातियाँ हैं –लुशेई, रालते, ह्मार, पाइहते, पावी (अथवा पोई)। जहां प्रमुख जनजातियों ने अपनी संबंधित बोलियों को बनाए रखा, वहीं 11 गौण जनजातियाँ बड़ी जनजातियों के साथ मिलने के परिणामस्वरूप अपनी विशिष्ट बोलियाँ खो बैठीं |  

मिज़ो मंगोल मूल के हैं, जो तिब्बत-बर्मा मूल की बोली बोलते हैं। मिज़ो लोग 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश मिशनरियों के प्रभाव में आए और आज अधिकतर मिज़ो लोग ईसाई धर्म को मानते हैं। यहाँ की साक्षारता दर देश में दूसरे स्थान पर है। यहाँ के लोग अधिकतर मांसाहारी हैं और यहाँ का प्रमुख खाद्य चावल है। मिज़ो लोग एक आपसी सद्भाव वाला समाज है और इनमें वर्ग भेद और लिंग, स्थिति अथवा धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। ये लोग सत्कार करने वाले, घुलने-मिलने वाले होते हैं और संगीत, गायन और नृत्य से प्रेम करते हैं। मिज़ो लोग कृषि को प्रधानता देते हैं, और ये “झूम खेती” अथवा खेती की काटने और जलाने की पद्धति से खेती करते हैं। ये जंगलों को काटते हैं, सूखे तनों और पत्तियों को जलाते हैं और उसके बाद भूमि की जुताई करते हैं। इनके सभी क्रियाकलाप इस खेती के आस-पास होते हैं और इनके त्योहार ऐसी कृषि पद्धतियों से जुड़े हैं |

सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत:
मिज़ो समाज में सामाजिक जीवन के ढांचे में पिछले कई वर्षों में अत्यधिक बदलाव आया है। ब्रिटिश लोगों के पहाड़ियों की ओर आने से पहले सभी प्रकार के व्यावहारिक उद्देश्यों से गाँव और वंश मिज़ो समाज की इकाई बन गए। मिज़ो लोगों की नैतिकता की संहिता अथवा धर्म “Tlawmngaihna” के चारों ओर घूमती थी जो कि एक अनूदित न किया जा सकने वाला शब्द है और जिसका अर्थ है कि सभी को सत्कारी, उदार, नि:स्वार्थ और दूसरों की सहायता करने वाला होना चाहिए। एक मिज़ो के लिए Tlawmngaihna का अर्थ दूसरों के लिए नि:स्वार्थ सेवा है |

एक झुंड में रहने वाले और आपसी सद्भाव वाले समाज के रूप में उन्होंने सामाजिक दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए स्वयं सहायता और सहयोग के कुछ सिद्धान्त बनाए। स्वैच्छिक सामुदायिक कार्यों, जिन्हें हनतलांग के नाम से जाना जाता है, के माध्यम से रचनात्मक सामाजिक कार्य किए जाते थे। प्रत्येक परिवार से समुदाय के कल्याण और हनतलांग में भाग लेने के लिए श्रम में योगदान देने की अपेक्षा की जाती थी। Tlawmngaihna के साथ हनतलांग की भावना हिजो लोगों के लिए विवाह, सार्वजनिक भोज, दुर्घटना और मृत्यु के समय सम्पूर्ण संभव सहायता करना अनिवार्य बनाती है |.

मिज़ो एक विशिष्ट समुदाय है और इनकी सामाजिक इकाई गाँव था। इसके चारों ओर मिज़ो लोगों का जीवन घूमता था। मिज़ो गाँव समान्यत: एक पहाड़ी के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थापित किया जाता है और मुखिया का घर बीच में बनाया जाता है और कुँवारे लोगों का छात्रावास जिसे ज्वालबुक कहा जाता है, प्रमुख रूप से केंद्र स्थान पर स्थापित किया जाता है। एक तरह से गाँव का केंद्र बिन्दु ज्वालबुक था जहां गाँव के सभी कुँवारे सोते थे। ज्वालबुक प्रशिक्षण मैदान था और वास्तव में वह पालना था जिसमें मिज़ो युवा को समाज के एक जिम्मेदार वयस्क सदस्य के रूप में तैयार किया जाता था |

आज की तारीख तक पुराने विश्वास के अनुसार भगवान के लिए पथियान शब्द का अभी तक प्रयोग किया जाता है। मिज़ो लोग अपने नए धर्म अर्थात ईसाई धर्म से इतने मुग्ध हैं कि उनका सामाजिक जीवन और सोचने की प्रक्रिया पूरी तरह से बदल गई है और यह प्रत्यक्ष रूप से अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ईसाई गिरजाघर संगठनों द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं और मूल्यों के प्रति उनकी सोच में भी भारी बदलाव आया है।

मिज़ो समाज में कोई वर्ग भेद और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव दिखाई नहीं देता। इनमें से 90% लोग कृषक हैं और गाँव एक बड़े परिवार की तरह होता है। बच्चे का जन्म, गाँव में विवाह तथा गाँव में किसी व्यक्ति की मृत्यु अथवा गाँव के किसी सदस्य द्वारा दिए जाने वाला सामुदायिक भोज महत्वपूर्ण अवसर होते हैं जिनमें पूरा गाँव शामिल होता है |

अर्थव्यवस्था:
मिजोरम की लगभग 60% जनसंख्या का प्रमुख रोजगार कृषि है। पूरे क्षेत्र के केवल 5% भाग में जुताई की जाती है। कुल जुताई क्षेत्र का लगभग 7% सिंचाई के अंतर्गत है। पहाड़ी के ढलानों में मक्का और धान की खेती की जाती है। दालें, गन्ना, मिर्च, अदरक, तंबाकू, सब्जियाँ, हल्दी, आलू, केला और अनानास राज्य में उगाई जाने वाली अन्य फसलें हैं। राज्य के क्षेत्र के लगभग 21% भाग में वन है |

मिजोरम में कोई प्रमुख उद्योग नहीं है। यह औद्योगिक रूप से पिछड़ा हुआ रहा है जिसका कारण भौगोलिक रूप से अलग होने, राज्य में खनिज संसाधनों की कमी, देश के केंद्र से दूरी और संचार आदि को माना जा सकता है। कुटीर उद्योगों में हथकरघा और हस्तशिल्प शामिल हैं। लघु उद्योग क्षेत्र में चावल की पिसाई, तेल तथा आटे की पिसाई, बांस की यांत्रिक वर्कशॉप, आरा मिलिंग, ईंट निर्माण और फर्नीचर वर्कशॉप शामिल हैं।

 

त्योहार:

मिज़ो लोगों के तीन प्रमुख त्योहार हैं –मिम कूट, चपचर कूट और पवल। ये त्योहार अथवा कूट, जैसा कि वे इन्हें कहते हैं, किसी न किसी तरह से कृषि संबंधी क्रियाकलापों से जुड़े हैं।

चपचर कूट: कई अन्य त्योहारों में से चपचर कूट अथवा बसंत उत्सव सबसे लोकप्रिय त्योहार है, जो “झूम” खेती के लिए जंगल काटने के उनके सर्वाधिक कठिन काम को पूरा करने के बाद मनाया जाता है। इस दिन सभी आयु-वर्ग के लोग, पुरुष और महिला, अपने संबंधित रंगीन परिधान और टोपी पहन कर एकत्रित होते हैं और लोक नृत्य करते हैं, ड्रम, घंटे तथा करताल की ध्वनि के साथ पारंपरिक गीत गाते हैं।

मिम कूट: मिम कूट अथवा मक्का त्योहार अगस्त और सितंबर के माह के दौरान मक्का की कटाई के बाद मनाया जाता है। मिम कूट चावल की बियर पीते हुए, गाते, नाचते तथा दावत करते हुए धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष की फसलों की थोड़ी-थोड़ी सी मात्रा समुदाय की दिवंगत आत्माओं को अर्पित की जाती है |

मिज़ो लोग बड़ी तेजी से अपनी परंपराओं को छोड़ रहे हैं और जीवन के नए तरीके को अपना रहे हैं जो पश्चिमी संस्कृति से बहुत अधिक प्रभावित है। उनकी बहुत सी वर्तमान प्रथाएँ उनकी पुरानी परंपरा और जीवन जीने की पश्चिमी प्रणाली का मिश्रण हैं। संगीत मिज़ो लोगों का जुनून है। मिज़ो लोगों के सबसे रंगीन तथा विशिष्ट नृत्य को चेराव कहा जाता है। इस नृत्य के लिए बांस के लंबे डंडों का प्रयोग किया जाता है इसलिए बहुत से लोग इसे ‘बांस नृत्य’ भी कहते हैं।

रुचि के स्थान:

आइज़ोल (राजधानी; मिजोरम का धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र;चंफई(भारत-म्यानमार सीमा पर सुंदर रिज़ॉर्ट, आइज़ोल से 192 किमी. दूर); लुंगलेई(हिल स्टेशन); तमदिल झील(प्राकृतिक झील जिसके चारों ओर अछूता जंगल है); वंटव्ङ्ग जल प्रपात (थेंजावल शहर के पास); साइतुयाल (पर्यटक रिज़ॉर्ट); रेंगदिल (पक्षी अभयारण्य)।