भील जनजाति

भारत का दूसरा वृहत्‍तम जनजातीय समुदाय, भील जनजाति मध्‍य प्रदेश, गुजरात, राजस्‍थान तथा महाराष्‍ट्र में निवास करती हैं। यहां हम झबुआ, मध्‍यप्रदेश तथा राजस्‍थान में उदयपुर के निकट छोटी उंदरी तथा बड़ी उंदरी के भील आदिवासियों पर उन भील कलाकारों पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए गौर करेंगे जो अपनी चित्रकारियों के माध्‍यम से अपनी कहानी बतलाते हैं।

कुछ भील लोग अपनी वंशावली की जड़ें एकलव्‍य से बतलाते हैं जो धनुर्विद्या में अर्जुन, महाभारत के शूरवीर से अधिक निपुण था। कुछ विद्वानों का कहना है कि रामायण के रचयिता वाल्‍मीकि भी वास्‍तव में एक भील वालिया थे।

भील शब्‍द के बारे में अनेकों परिकल्‍पनाएं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह ‘धनुष’ के लिए द्रविड़ शब्‍द है जबकि अन्य विद्वानों का कहना है कि यह तमिल शब्‍द भिलावर अथवा ‘‘धनुर्धारी’’ से व्‍युत्‍पन्‍न है। चूंकि ‘‘धनुष’’ का इस्‍तेमाल अन्‍य जनजातीय समुदायों द्वारा किया जाता था, इसलिए प्रजातिगत शब्‍द के रूप में ‘‘भील’’ को अपनाया गया जो प्रत्‍येक जनजातीय समुदाय के बीच सूक्ष्‍म भिन्‍नताओं तथा उनके मिश्रित संसार के सौंदर्य पर ध्‍यान देने में विफल रहा। मध्‍यप्रदेश तथा राजस्‍थान के भीलों के बीच भी उनके देवी-देवताओं, गानों, नृत्‍यों तथा कहानियों के सन्दर्भ में  भिन्‍नताएं हैं। दोनों समुदाय अपने पूर्वजों की याद में स्‍तंभ का निर्माण तो करते हैं, परन्तु उनके लिए अलग-अलग नाम हैं। मध्‍यप्रदेश में स्मारक स्‍तंभों को गट्लास कहा जाता है-राजस्‍थान में पुरुषों को सम्‍मानित करने वाले स्‍तंभों को चीरा तथा म‍हिलाओं के स्मारक स्‍तंभों को मतलोक कहा जाता है।