गोम्मटेश्वर


श्रवण-बेलगोला कर्नाटक के महत्वपूर्ण धार्मिक और जैन केंद्रों में एक है। जैनों की धार्मिक स्थल के रूप में श्रवण-बेलगोला का महत्व ईसापूर्व चौथी शताब्दी को जाता है, जब जैन आचार्य श्रुतकेवलिन भद्रबाहू पाटलीपुत्र से दक्षिण भारत अपने 12,000 अनुयायियों के साथ आए थे। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार, जब वे इस स्थान पर पहुंचे, जिसे अब श्रवण-बेलगोला के नाम से जाना जाता है, यह महसूस करते हुए कि उनका अंत निकट है, उन्होंने आगे जाने से मना कर दिया। वे अपने एक शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ वहीं रुक गए और चंद्रगिरी पहाड़ी पर समाधि ली। तभी से श्रवण-बेलगोला सल्लेखन स्थान के रुप में प्रचलित हो गया। श्रवण-बेलगोला का यह दृश्य दसवीं शताब्दी (981 AD) में बदलता प्रतीत होता है जब गंगा राजवंश के शक्तिशाली योद्धा और मंत्री चामुंडराय ने गोम्मटेश्वर (बाहुबली) की लगभग 17.7 मीटर ऊंचा विशाल प्रतिमा को इंद्रगिरी नामक बड़ी पहाड़ी पर बनबाया।

इस विशाल प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक लगभग 12 वर्षों के अंतराल पर होता है। लगभग 15 दिन चलने वाले इस आयोजन में जो ग्रहों के संयोजन अनुसार होता है, देश-विदेश के लाखों तीर्थयात्री हिस्सा लेते है। इस पवित्र अनुष्ठान का मुख्य हिस्सा “पंचामृत अभिषेक”  है जिसमें पांच तरल पदार्थ, जैसे दूध, दही, घी या स्पष्ट मक्खन के साथ विशाल प्रतिमा को स्नान करया जाता है। इस आयोजन की भव्यता दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर देती है। इस समारोह को “श्रवण-बेलगोला का ग्रैंड फेस्टिवल” के रूप में भी जाना जाता है।

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने अपनी मल्टीमीडिया प्रलेखन श्रृंखला के अन्तर्गत श्रवण-बेलगोला स्थित गोम्मटेश्वर की विशाल प्रतिमा से जुड़े कला और अनुष्ठानों को इस डीवीडी के माध्यम से प्रस्तुत किया जिसका लोकार्पण चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के हाथों 25 फरवरी 2018 को किया गया।