कला
वह वस्तु है जो जीवन को परिपूर्ण
बनाती है
Prime Minister Shri Atal Bihar Bajpai |
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इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के दो भवनों - कला निधि और कला कोष के उद्घाटन समारोह में आप सब के साथ भाग लेते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है । आज हम सब के मन में आनन्द और गर्व की अनुभूति है । इसके दो कारण हैं - एक कारण तो यह है कि आज श्रीमति इन्दिरा गाँधी का जन्म दिन है और यह संस्था श्रीमति इन्दिरा गाँधी के नाम पर है । यूँ तो इन्दिरा जी के नाम पर कई स्थान, कई संस्थाएँ दिल्ली में और देश के बाहर बनी है, दिल्ली का हवाई अड्डा भी इन्दिरा जी के नाम पर जाना जाता है । लेकिन इन सारी संस्थाओं में अगर इन्दिरा जी के व्यक्तित्व को, उनकी मूलभूत आस्थाओं को सर्वाधिक सार्थक रुप से प्रतिबिम्बित करने वाली और ठोस रुप देने वाली कोई संस्था है तो मैं कहूँगा कि इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र है । इन्दिरा जी के व्यक्तित्व के अनेक रुप थे, वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी । लेकिन मुख्यत: दो स्वरुप हमारे सामने आते है । एक, राजनेता का स्वरुप और दूसरा, संस्कृति और कला को मान्यता देने वाली एक महान महिला का रुप । राजनैतिक नेता के रुप में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बखान करने की आवश्यता नहीं है । प्रतिपक्ष में बैठकर मैने उनकी जितनी प्रशंसा की थी बंगलादेश के अवसर पर, शायद और किसी ने नहीं की । एक सबल महिला का रुप, सशक्त, निर्भीक, राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सतत जागरुक - फूल की तरह कोमल मगर आवश्यता पड़ने पर वज्र की तरह कठोर - यह उनका रुप मैने देखा है, उसका मैं विशद वर्णन नहीं करना चाहता । लेकिन यह जो उनका दूसरा रुप है जो यहाँ प्रतिबिम्बित हो रहा है वह है कला, संस्कृति, साहित्य के साथ उनका सम्बन्ध, आध्यात्म के साथ उनका नाता । नेहरु जी के सतत सान्निध्य के कारण ऐसा हुआ हो या गुरुदेव रविन्द्रनाथ की उनके ऊपर कृपा थी और उनसे प्राप्त शिक्षा से इन्दिरा जी ने कला साहित्य और संस्कृति के साथ अपने को सम्बद्ध करना स्वीकार किया हो । यह भी हो सकता है कि इन्दिरा जी की माँ ने, कमलारानी जी ने उन्हें बचपन में रामायण और महाभारत की कथाएँ सुनायी हों और जिनका उनके जीवन पर असर पड़ा हो । और बाद में समय-समय पर वह प्रभाव व्यव्हार में प्रकट हुआ हो । कारण कुछ भी हो, सच्चाई यह है भारतीय कला सम्पदा को शासकीय प्रोत्साहन देने में इन्दिरा जी का बड़ा ही योगदान है । इसलिए सर्वथा उचित है कि राष्ट्रीय कला केन्द्र उनकी स्मृति में स्थापित किया जाए । आज हम सब को खुशी का एक और कारण है और वह कारण यह है कि हम अनोखी सुन्दरता से युक्त एक भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं । मैं कर चुका हूँ उद्घाटन, यह पहले लिखा गया था इसलिए इसमें लिखा गया है कि मैं करने जा रहा हूँ । एक ऐसी वस्तु जिसके बारे में हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत की राजधानी के वैविध्यपूर्ण वास्तु सम्पदा में एक और कीर्तिमान है । हम सबको अक्सर महसूस होता है कि नई दिल्ली में जो भी सुन्दर इमारतें हैं वे अंग्रेजों के जमाने की बनाई हुई हैं । डॉ० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने इसका उल्लेख किया था । यह खूबसूरत नई दिल्ली लूटियन्स की दिल्ली है । शास्री भवन, योजना भवन जैसी सरकार की इमारतों को हमने आजादी के बाद बनाया, परन्तु राष्ट्रपति भवन, साउथ ब्लाक, नार्थ ब्लाक जैसी गरिमा उन में नहीं हैं । मुझे आप कहने के लिए क्षमा करें । इसलिए मैं विशेष रुप से इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के न्यासीगण को, अधिकारियों को बधाई देना अपना कर्तव्य समझता हूँ जिन्होने अनेक वर्षों के सतत प्रयास से एक मनमोहक और भव्य भवन का निर्माण किया है जो दिल्ली की शान को आने वाली शताब्दियों में बढ़ाता रहेगा । हरेक देश के पास विरासत में बड़े-बड़े स्मारक होते हैं, वास्तुकला के स्मृति-चिन्ह होते हैं । वे उस देश की महानता को, उसके गौरव को, उसकी संस्कृति को प्रकट करतें हैं । दिल्ली में जिस कला केन्द्र का इस समय निर्माण हो रहा है वह ऐसा स्मारक होगा, इसके बारे में मुझे कोई सन्देह नहीं है । मैं अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता में जीतने वाले अमरीकी वास्तुकार राल्फ लर्नर की प्रशंसा करता हूँ । वे हम सबके बधाई के पात्र है । मैंने पूछा था कि क्या लर्नर महोदय यहाँ उपस्थित हैं तो शायद वे आ नहीं सके हैं लेकिन आज के कार्यक्रम में और भी शोभा बढ़ जाती अगर लर्नर महोदय हमारे बीच होते । भारत की कला संचय एक ऐसी निधी है, एक ऐसा कोष है जिसका मूल्य निर्धारण करना, जिस पर प्राइस टैग लगाना असम्भव है । आजकल जब हम सरकार में निधि या कोष की बात करते हैं, तो अक्सर रुपयों-पैसों की बात करते हैं, भौतिक निर्माण की बात करते हैं । भौतिक सम्पत्ति के महत्व को नकारा नहीं जा सकता । परन्तु कला संस्कृति का विकास, उसका निरन्तर सृजन एक राष्ट्रीय निधि, कोष, समृद्धि का निर्माण करती है, जिसका महत्व कोई कम नहीं है । कला वह वस्तु है जो जीवन को परिपूर्ण बनाती है । जीवन में तथा सृष्टि में गर्भित सौन्दर्य को अंतर्दृष्टि पटल पर लाती है, स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा कराती है, व्यक्ति को समष्टि से जोड़ती है, राष्ट्र की पहचान की अनुभूति कराती है, तथा राष्ट्र को राष्ट्र से, संस्कृति को संस्कृति से पहचान कराती है, उन्हे जोड़ती है । कला सिर्फ बड़े लोगो की, उँचे लोगो की मॉनोपॉली नहीं हो सकती, होनी भी नहीं चाहिए । मुझे खुशी है कि इस केन्द्र में जनपद सम्पदा का भी एक विशेष विभाग है जो भारत की आम जनता में - विशेषकर ग्रामीण, आदिवासी जनता में - छिपी हुई अपार कला सम्पदा को दर्शाने का लक्ष्य रखता है । मनोरंजन के नाम पर एक सस्ते दर्जे की जल्दी - बिकाऊ कला का मास प्रोडक्शन किया जा रहा है । कला को भी एक कन्स्यूमर प्रोडक्ट बना दिया गया है । इससे मनुष्य को न सही अर्थ में मनोरंजन मिलेगा, न ही उनके भाव-जगत् में कोई प्रगति होगी । हमें इस प्रवृति से बचना है । आज जब हम इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के दो महत्वपूर्ण भवनों का उद्घाटन कर रहे हैं, तो हम आशा करते हैं यह केन्द्र न केवल भारत की अमूल्य कला निधि को सँजोए रखने का महत्वपूर्ण काम करेगा अपितु भारतीय कला के नव-सृजन का भी एक वाहक बनेगा । ये भवन जिस उद्देश्य के लिए निर्मित हो रहे हैं, उस उद्देश्य को पूरा करेंगे । इसमें मेरे मन में कोई संदेह नहीं है । इससे अगर-मगर की कोई गुंजाईश नहीं है । यह भरोसा रखना चाहिए कि जो हमें उत्तराधिकार में मिला है, उसे हम और भी सजा सँवारकर आनेवाली पीढ़ी को सँजोकर जाएँगे, आनेवाली पीढ़ी को सौंपकर जाएँगे । पुरानी पीढ़ी ने हमें जो सांकृतिक सम्पदा समर्पित की है, उसकी हम रक्षा कर रहे हैं । आने वाली सन्तान उसका और भी बड़े अच्छी तरह से संरक्षण करेगी, इस बारे में मेरे मन में कोई संदेह नहीं है ।
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