आल्ह-
रुदल
बनाफर कौन था
दसराज बच्छराज बुंदेलखंड के बनाफर रजपूत थे। बनाफरों की व्युत्पति के संबंध में अलग- अलग मान्यताएँ हैं। जायसवाल के अनुसार (इंडियन एंटीक्वेरी, दिसम्बर १९१८) मगध में कनिष्क का राज्यपाल "बनस्फर' या बनस्फर्ण' था। वह ईसवी सन के प्रारंभ में विद्यमान था। ग्रियर्सन का मानना था कि बनाफरों की कथाएँ यद्यपि महोबा से संबद्ध हैं तथा इन क्षेत्रों में अब भी बनाफरी बुंदेली बोली जाती है, किंतु संभवतः वे बक्सर (बाघसर- व्याघ्रसर) से आए थे !
महोबा में इस जाति के पूर्वज चार अधिपति बक्सर में रहते थे --दसराज, बच्छराज, रहमल और टोडर। जब माड़ौं के राजा जम्बा के पुत्र ककिंरघा (कटिया, कडंगा) ने हमला किया था, तो चारों ने बड़ी दिलेरी से सिंह द्वार की रक्षा की थी। और ककिंरघा को हरा दिया था। परमाल ने उन्हें अपने यहाँ रख लिया था। विवाहोपरांत दसराज के आल्हा- अदल तथा बच्छराज के मलखान- सुलखात नामक पुत्र हुए थे। इनकी माताओं को लेकर भी स्थान और बोली के भेद से कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।
१. देवी (देवल दे) और बिरमा (बिरम्हा) ग्वालियर के राजा दलपत की पुत्रियाँ थीं।
२. दोनों अहीर कन्याएँ थीं। दसराज, बच्छराज एक दिन शिकार के लिए जंगल में गए। उन्होंने दो भैंसों को गुत्थम- गुत्था देखा। राह में रुकावट देख अहीर बालाओं ने दोनों भैंसों को एक- एक सींग से पकड़कर एक तरफ पटक दिया। यह सोचकर कि ऐसी बलिष्ठ बालाएँ अवश्य पराक्रमी संतान पैदा करेगी, दसराज और बच्छराज ने उनसे अविलंब विवाह कर लिया। इस जनश्रुति का सर्वाधिक प्रसार है।
३. एक बार चंदेल राजा परमार कजरी वन में शिकार खेलने गए। वहाँ माता- पिता से बिछड़े दो बालकों को देखा। राजा उन्हें हाथी पर बैठाकर महोबा के राज- प्रासाद में ले आया। रानी मल्हना के आग्रह पर परमाल ने उन्हें पुत्र रुप में अंगीकार कर लिया। दसराज (जस्सराज, जसर, जसहर) का दिवला से तथा बच्छराज का तिलका से विवाह हुआ। चंदेलराज ने अपना राज्य तथा सेना इन दोनों में आधी- आधी बाँट दी।
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