ब्रज-वैभव

ब्रज का स्वरुप एवं सीमा

ब्रज का प्राचीन गौरव


जैन ग्रन्थ और अनुश्रुति

भारतवर्ष के अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। इसके तीर्थकरों की वहुत पुरानी परम्परा है। प्रथम तीर्थकर ॠषभदेव सहित कई तीर्थकरों का प्राचीन ब्रज अथवा शूरसेन जनपद से धनिष्ठ सम्वध रहा है जिनसे नाचार्य कृत महापुराण में वर्णित है कि भगवान् ॠषभदेव के आदेश से इंद्र ने इन इस भूतल पर जिन ५२ देशों का निर्माण किया था उनमें एक सूरसेन देश भी था, जिसकी राजधानी मथुरा थी। १ जैन मान्यतानुसार बाइसवे तीर्थाकर श्री नेमिनाथ श्री कृष्ण के भाई थे, इस लिये जैन धर्मावलंबियों को भी श्री कृष्ण के जन्मस्थान मथुरा और ब्रज का सदा ही महत्व स्वीकृत रहा है।

        सतवें तीर्थकर श्री सुपार्श्वनाथ और तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ भ्रमण भी मथुरा में हुआ था २ तथा अन्तिम तीर्थकर श्री महावीर जी भी मथुरा पधारे थे। अन्तिम केवलि जम्बूस्वामी के तप और निर्वाण की भूमि होने से मथुरा जैनियों के लिये विशेष रुप से तीर्थ स्थान रहा है। मथुरा में चौरासी नामक स्थल जम्बूस्वामी की तपोभूमि होने के साथ ही साथ उनका निर्वाण स्थल भी कहा जाता है। इस प्रकार ब्रज प्रदेश और मथुरा कई तीर्थकरों की विहार भूमि विविध मुनियों की तपोभूमि एंव अनेक सिद्ध पुरुषों की निर्वाण भूमि होने के साथ-साथ जैन धर्म के सुप्रसिद्ध स्तूपों, मन्दिरों और कलाकृतियों के कारण अत्यन्त प्राचीन काल से ही सिद्ध क्षेत्र तथा उत्तरापथ का प्रमुख तीर्थ स्थल माना गया है।


१. महापुराण (पर्व १६, श्लोक १५५)

२. जिनप्रभ सूरि कृत ''विविध तीर्थ कल्प'' का 'मथुरा पुरी कल्प' प्रकरण

अनुक्रम


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