ब्रज-वैभव |
यमुना और गोबर्धन की महत्ता |
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बृज
मंडल के प्राचीन गौरव की वृद्धि
में यमुना और गोवर्धन की
महत्ता का अनुपम योग रहा है।
पुरातत्व की दृष्टि से ये दोनों
कृष्ण काल से भी पूर्व अवशेष
हैं, अतः कृष्ण कालीन निश्चित चिन्हों
के रुप में इनका असाधारण महत्व
माना गया है। यमुना उत्तर भारत
की पुण्यमयी नदियों में गंगा के
बाद सर्वाधिक प्रसिद्ध है। गंगा और
यमुना के मध्यवर्ती पुरातन प्रदेश
में आर्य संस्कृति का सवोत्तम रुप
सजाया और सँभारा गया था। उनके
संगम पर ही आर्य सभ्यता के आदिम
केन्द्र 'प्रतिष्ठानपुर' (वर्तमान प्रयाग
के समीप 'झूँसी') की स्थापना हुई
थी। यमुना के तट पर प्रागैतिहासिक
काल में मधुपुरी अथवा मधुरा (वर्तमान
मथुरा) को बसाया गया था। जहाँ
द्वापर युग में भगवान् कृष्ण ने
जन्म लिया था, इसी के तट पर
महाभारत कालीन इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान
दिल्ली) और जैन साहित्य में वर्णित
प्राचीन नगर सौरिपुर (वर्तमान
बटेश्वर) की स्थापना की गयी थी।
बौद्ध साहित्य में वर्णित प्राचीन नगरी
कौशाम्बी भी इसी के तट पर स्थापित
थी।
पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार
यमुना धर्मराज यम की बहिन
है, अतः इसे यमी कहा जाता है।
बहिन की पूजा के साथ भाई अर्थात
मृत्यु के देवता यम की पूजा भी
ब्रज में प्रचलित हो गयी है। मथुरा
सम्पूर्ण भारतवर्ष में यम पूजा
का कदाचीत, एक मात्र स्थान है। कार्तिक
शुक्ल द्वितिया को यह पूजा मथूरा
में प्रतिवर्ष एक महान पर्व के रुप
में की जाती है। इस अवसर पर भारत
वर्ष के कौंने-कौंने से लाखों नर-नारी
आकर यमुना में स्नान करते हैं।
उन स्नानार्थियों में अनेक भाई-बहिन
होते हैं, जो उक्त अवसर पर स्नान
करने के लिये मथुरा आते हैं।
भाई-बहिन के स्नेह-बर्धन का
यह अनुपम त्यौहार यमुना नदी
और मथुरामंडल के महत्व को
बढ़ा रहा है। संस्कृत और ब्रजभाषा
के अनेक कवियों ने यमुना की प्रशस्ति
के छन्दों की रचना द्वारा अपनी वाणी
को पवित्र और स्थाई किया है।
गोवर्धन ब्रज की छोटी पहाड़ी
है, किन्तु इसे गिरिराज (पर्वतों
का राजा) कहा जाता है। इसे
यह महत्व इस लिये प्राप्त हो सका
है कि यह भगवान कृष्ण के समय
का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष
है। उस समय की यमुना नदी जहाँ
समय-समय पर अपनी धारा बदलती
रही है, वहां गोबर्धन अपने मूल
स्थान पर ही अविचलित रुप में
विधमान है। इसे भगवान कृष्ण
का स्वरुप और उनका प्रतिक भी माना
जाता है और इसी रुप में इसकी पूजा भी की जाती है। बल्लभ सम्प्रदाय के उपास्य देव श्रीनाथ जी का प्रकटय स्थल होने के कारण इसकी महत्ता में चार चाँद लग गये हैं। गर्ग संहिता में इसके महत्व का कथन करते हुए कहा गया है - गोवर्धन पर्वतों का राजा और हरि का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। १ यद्यपि वर्तमान काल में इसका आकार-प्रकार और प्राकृतिक सौंदर्य पहिले की अपेक्षा क्षीण हो गया है, फिर भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है।
१.
अहो गोवर्धन साक्षात गिरिराजो
हरिप्रियः। तत्समांनं न तर्थहि विधते भूतलेदिवि।। (गर्गसंहिता गिरिराज खंड, अध्याय ९)
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