ब्रज-वैभव |
ब्रज में पर्वत
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कवि जगतनंद के वर्णनानुसार ब्रज में ५ पर्वत या पहाड़िया हैं:
ब्रज के भक्त महानुभावों ने, विशेषकर बल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गोबर्धन के प्रति अत्याधिक श्रद्धा व्यक्त की है। अष्टछाप के कवियों ने गिरिराज-गोवर्धन को राधा-कृष्ण की केलि-क्रीड़ाओं का केन्द्र वतलाते हुए उसके प्राकृतिक सौदर्य का भी बड़ा ही भव्य वर्णन प्रस्तुत किया है। चतुर्भुज दास ने कहा है - वहां शीतल, मंद, सुगन्धित पवन प्रवाहित होती है, सुन्दर झरना झरते हैं, समस्त ॠतुओं में खिलने वाले सुन्दर पुष्प और फल विधमान रहते हैं। ३ अन्य कवियों ने भी इसके सुन्दर शिखरों पर विधमान नवीन वनस्पति, मनोरम दल, फूल-फल तथा पवित्र झरनों का वर्णन प्रस्तुत किया है। ४ भगवान श्री कृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई थी। उस समय सम्पूर्ण ब्रज के जल मग्न हो जाने का आशंका उत्पन्न हो गई थी। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवसियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है, श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छाता के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रजवासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही पुराणादि धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ५ ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। ६ आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रुप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्री कृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी। गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है। उस काल का दूसरा चिन्ह यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है। समस्त भारतवर्ष से लाखों नर-नारी प्रतिवर्ष गोवर्धन के दर्शन और उसकी परिक्रिमा करने के लिये आते हैं। ब्रज यात्रा के अवसर पर यहां यात्रीगण कई दिनों तक ठहरते हैं। उस समस यहां पर अनेक उत्सवों का आयोजन होता है। उपाषकों की मान्यतानुसार गोवर्धन भगवान् श्रीकृष्ण का प्रतिरुप ही है। ७
नंदगाँव की पहाड़ी - इसे 'नदीश्वर' अथवा 'रुद्रगिरि' भी कहा जाता है। १ यह ब्रज के नन्दगाँव नामक ग्राम में स्थित है, जो कृष्ण काल में भगवान् श्री कृष्ण के पालक-पिता नंद गोप की राजधानी थी। यह मथुरा शहर के पश्चिम में स्थित है इसकी लम्बाई लगभग आधी मील और ऊँचाई लगभग फीट है। इसके सवसे ऊँचे भाग पर नंदराय जी का मन्दिर है। पहाड़ी के चतुर्दिक ढलाव पर उसके नीचे नंदगाँव की बस्ती है। ब्रज के भक्त कवियों ने इस पहाड़ी की अपने वर्णनों में प्रशंसा वर्णित की है। १. नंदीश्वर र्तृ नंद जसोदा गोपिन न्यौंत बुलाए। (कुंभनदास)
इस पहाड़ी के ऊँचे स्थल पर भी लाडिली जी का सुन्दर मन्दिर है तथा दूसरे स्थलों पर अन्य मन्दिर निर्मित हैं। इसके चतुर्दिक बरसाना ग्राम की बस्ती है। ब्रज के भक्त कवियों ने वरसाना का भी वर्णन राधा-कृष्ण की लीलाओं के प्रसंग में किया है। १
कामबन की पहाड़ी - यह पहाड़ी राजस्थान के कामबन नामक स्थान में स्थित है, जो ब्रज सीमान्तर्गत। इस पहाड़ी को कामगिरि भी कहा जाता है। यह लगभग ४०० गज में विस्तृत है।
चरण की पहाड़ी - यह छोटी पहाड़ी नंदगाँव और बरसाना की पहाड़ियों की भाँति मथुरा जिले की छाता तहसील में स्थित है। नंदगाँव से लगभग ६ मील उत्तर-पूर्व की ओर यह ब्रज के छोटी बठैंन नामक ग्राम में है। यह लगभग ४०० गज लंबा और लगभग १० फीट ऊँचा पत्थरों का एक ढेर मात्र है, किन्तु इसके धार्मिक महत्व के कारण 'चरण पहाड़ी' कहा जाता है। भक्तों की मान्यता है कि यहां पर भगवान् श्री कृष्ण के चरण चिन्ह हैं। ब्रज में एक दूसरी चरण पहाड़ी भी है, जो कामबन के समीप स्थित है, वहां भी भगवान् श्री कृष्ण के चरण चिन्ह होने का विश्वास किया जाता है। उपर्युक्त पाँचों पहाड़ियों के अतिरिक्त बरसाने के निकटवर्ती ऊँचा गाँव में भी एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसे सखीगिरि कहा जाता है। उसी के समीप रनकौली ग्राम में भी एक छोटी पहाड़ी है। ब्रज के भक्त कवियों की रचनाओं मे इन पहाड़ियों का वर्णन नहीं वर्णित है। परमानंद दास के एक पद में केवल चरण चरण पहाड़ी का वर्णन मिलता है। १
टीले - ब्रज में उपर्युक्त पक्की पहाड़ियों के अतिरिक्त कच्चे टीले भी बहुत सखया में हैं। मथुरा नगर का अधिकांश भाग इन टीलों पर बसा हुआ है और नगर के चारों ओर भी दूर-दूर तक अनेक टीले फैले हुए हैं। इनमें से अधिकांश टीलों के अन्दर मथुरा नगर के प्राचीन काल में बार-बार बसने और उजड़ने के पुरातात्विक अवशेष छुपे हुऐ हैं। इनमें कंकाली यीला, भूतेश्वर टीला , कटरा केशवदेव टीला, गोकर्णश्वर टीला, सप्तॠषि टीला, जेल टीला, चौबारा टीला आदि उल्लेखनीय हैं। इनकी खुदाई से वहुसख्यक पुरातात्विक महत्व के पुरावशेप पाये गये हैं जिनके सहयोग से ब्रज के वैभवपूर्ण सास्कृतिक इतिहास की रचना हो सकी है। मथुरा शहर के अतिरिक्त सम्पूर्ण ब्रज मंडल में प्राचीन मानवीय बस्तियों से सम्वधित अनेकों टीले विखरे हुए हैं जिनके विषय में कहीं उल्लेख तक नहीं है जबकि कुछ भी प्राचीनता का सव्यापन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा किया गया है जिनमें मुख्य है कंकाली टीला, भूतेश्वर टीला, सोंख टीला, सतोहा टीला, अड़ीग टीला, गनेशरा टीला और महोली के समतल किये गये टीले, छाता का टीला, भौगाँव का टीला, नगला सांकी का टीला, सुनरख के टीले, वृन्दावन के पुराने गोविन्द मन्दिर टीला, मदनमोहन मन्दिर टीला, गोंदा आटस का टीला, कीकी नगला का टीला, माँट का टीला, गौसना का टीला, भरतपुर का नोंह का टीला आदि-आदि टीलें ब्रज की प्राचीन संस्कृति को संरक्षित और सुरक्षित किये हुए हैं। |
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