ब्रज-वैभव

ब्रज कला एवं संस्कृति

ध्रुवपद- धमार का केंद्र -- ब्रज

हरिदासजी के बारे में भ्रांति


ध्रुवपद के महान आचार्य संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदासजी के बारे में भी भ्रांतियाँ फैलाई गई हैं। स्वामीजी का काल सन १४८०- १५७५ अथवा सन १५१२- १६०७ माना जाता है। पूर्वकाल ज्यादा मान्य है। यह अतरौली के आप के गाँव में जिला अलीगढ़ में जन्में, पिता से शास्र- शिक्षा और सांगीतिक शिक्षा अतरौली के शांडिल्य गोत्रीय पंडित विशंभरनाथ से प्राप्त की। स्व. अल्लादिन खाँ इन्हीं विशंभरनाथ की वंश परंपरा के श्रेष्ठ कलाकार हुए हैं। जिनके पूर्वज छज्जू खाँ, जीनत खाँ के नाम संगीत के साहित्य में कई बार मिलता है। स्वामीजी बाद में विरक्त होकर नाद योग की साधना करके अपने श्यामा- श्याम को रिझाने वृंदावन चले आए और वृंदावन में ही शिष्यों को शिक्षा दी। तानसेन भी उनमें से एक था। एक आचार्य की दृष्टि में शेख जकरिया तो संगीत का विद्वान था, परंतु हरिदास तो फकीर था, उसे संगीत से क्या काम ?

तानसेन तो रामतनु मिश्र था और जिसने ग्वालियर दरबार के श्रेष्ठ कलाकारों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वामीजी से भी शिक्षा प्राप्त की थी। इसको आचार्य प्रवर नहीं मानते हैं। हमारा निवेदन है कि तानसेन बेहटा नामक ग्राम में ब्राह्मण के घर पैदा हुआ और अपने चाचा पं. गिरधारी मिश्र का शिष्य हुआ। उसका जन्मकाल सन १५२० या १५३० है। मृत्युकाल २६ अप्रैल १५८९ है। स्वामीजी की आयु तथा तानसेन की आयु में १८ वर्ष अथवा ४० वष्र का अंतर है। यह काल स्वामीजी को तानसेन का गुरु बनने योग्य सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। तानसेन न तो मुसलमान हुआ था और न उसने मोहम्मद गौस से शिक्षा ली थी। गौस मुगलों का भेदिया था और उसने मानसिंह तोमर को हरवाया था। मुगल सम्राट ने बाद में उससे रुष्ट होकर उसको मरवा दिया था। ब्रज के योगदान की चर्चा के लिए यह आवश्यक था कि उपरोक्त विद्वानों के बारे में भ्रम दूर किए जाएँ। ध्रुवपद के विकास में तानसेन, रामदास, ब्रजचंद्र, दिवाकर, पं. सोम, सम्मोखन सिंह तथा चिंतामणि मिश्र का बहुत बड़ा योगदान रहा है। 

ग्वालियर दरबार के तोमर वंश की राज्य समाप्ति पर वहाँ के श्रेष्ठ कलाकार मांडू, गुजरात और मुगल दरबारों में चले गए। आगरा अब शासन का केंद्र बन गया, परंतु वृंदावन तब संगीत का विश्वविद्यालय था। स्वामीजी की शिष्य परंपरा के लोगों ने अपनी- अपनी कल्पना के अनुसार गायन शैली का विकास करके ध्रुवपद की वाणियाँ चलाई, जो देश भर में मानी हुई हैं। स्वामीजी की गुरु परंपरा और शिष्य परंपरा के लोग ही बाद में बलात अथवा प्रलोभन से मुसलमान बनाए गए, देश भर के घराने उन्हीं से चले हैं। इन्हीं ध्रुवपद गायकों ने परवर्ती काल में ख्याल गायकी को ध्रुवपद की प्रौढ़ परंपरा के अनुसार रुप- कालाप्ति के आधार पर जन्म दिया, विकास किया, सजाया और संवारा।

 

 

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