ब्रज-वैभव |
रास-नृत्य : स्वरुप और विकास नित्यरास और लीला |
आज रासलीलाओं के प्रस्तुतीकरण की भी एक परिपाटी बन चुकी है। रास के प्रदर्शन को-- निरुयरास और लीला -- द्विविध विभक्त किया जा सकता है। नित्यरास के अंतर्गत रास के आरंभ का उपक्रम, स्तुति, मंगलाचरण एवं आरती, सखी- परिकर द्वारा प्रशस्ति गान, रासारंभक के लिए प्रार्थना, राधाकृष्ण की पारस्परिक अभ्यर्थना और तदुपरांत रास- नृत्य की एकल, युगल एवं सामूहिक रुप में प्रस्तुति की जाती है। रास के इस नृत्य में स्वरुप ( पात्र ) विविध स्थानकों का विन्यास करते हैं। विविध चारियों द्वारा अंगों की चेष्टाओं को व्यंजित किया जाता है। श्री कृष्ण के अनेकविध करण एवं अंगहार दर्शकों के प्रमुख आकर्षण रहते हैं। "रास में नाचत लालबिहारी' की अनुगूंज के साथ ही मृदंग की थाप "ता थेई त त त ता थेई' का घोष करती संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बना देती है। श्री कृष्ण की लंबी छलांग के साथ ही मृदंग पर जब
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