ब्रज-वैभव

ब्रज कला एवं संस्कृति

ब्रजी संस्कृति : एक परिचय


संस्कृति -- शब्द की विद्वानों ने अनेक प्रकार से व्याख्या की है। इस शब्द का संबंध "संस्कार' "संस्क्रिया' या "संस्कृति' से जोड़ा है। एक विद्वान का कथन है कि सम उपसर्गपूर्वक "कृ' धातु से भूषण अर्थ में "सूर' का आगम करके "वित्तन' प्रत्यय करने से संस्कृति शब्द बना है। इस मत से संस्कृति शब्द का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ परंपरागत अनुभूत संस्कार बतलाया है। इस प्रकार संस्कृति प्रथम मत के अनुसार कार्य प्रधान व द्वितीय मत से संस्कार प्रधान है।

हमारे विचार से संस्कृति को किसी समय विशेष की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। यह देश काल और परिस्थितियों के अनुसार निरंतर विकसित होती है। अतः यह सामाजिक प्रभावों से निरंतर विकासमान निर्देशिका है जो प्रकृतिजन्य है। इसे हम मानव की संपूर्ण जीवन- शक्तियों और प्रगतिशील साधनाओं का सामूहिक प्रतिफलन कह सकते हैं। लौकिक, पारलौकिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक या सामाजिक अभ्युदय से प्रभावित होकर मन, बुद्धि आदि जो प्रभाव ग्रहण करते हैं, वही संस्कार किसी संस्कृति का निर्माण करते हैं। इसलिए जब हम ब्रज- संस्कृति का नाम लेते हैं, तो स्वभावतः हम ब्रज की उन क्षेत्रीय परंपराओं की ओर आकर्षित होते हैं, जिनमें यहाँ के रीति- रिवाज, परंपराएँ, कर्मकांड, उत्सव, त्योहार, वेषभूषा सभी सम्मिलित हैं, जो ब्रज संस्कृति का स्वरुप प्रदान करते हैं।

इस प्रकार ब्रज की संस्कृति यद्यपि एक क्षेत्रीय संस्कृति रही है, परंतु यदि इतिहास के आधार पर हम इसके विकास की चर्चा करें तो हमें ज्ञात होगा कि यह संस्कृति प्रारंभ से ही संघर्षशील, समन्वयकारी और अपनी विशिष्ट परंपराओं के कारण देश की मार्गदर्शिका, क्षेत्रीय होते हुए भी सार्वभौमिक तथा गतिशील व अपराजेय, साथ ही बड़ी उदात्त भी रही है। यह पूरे देश के आकर्षण का केंद्र रही है तथा इसी कारण इसे प्रदेश को सदा श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता रहा है। वैदिक काल से ही यह क्षेत्र तपोवन संस्कृति का केंद्र रहा। यद्यपि इस लेख में इसके ऐतिहासिक विकास की चर्चा संभव नहीं है, परंतु इस ओर एक सामान्य दृष्टिपात तो किया ही जा सकता है।
 

 

 

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