ब्रज-वैभव

ब्रज कला एवं संस्कृति

मुसलमानी शासनकाल


महमूद गजनबी ने अपने १७ वें आक्रमण में मथुरा की अतुल संपत्ति व श्रीकृष्ण जन्मस्थान के अपार वैभव को लूटा था। ब्रजवासी महावन में राजा फूलचंद के नेतृत्व में उस विशाल वाहिनी से लड़े थे, परंतु जीत नहीं सके। बाद में फतेहपुर सीकरी के मैदान में राणासांगा की पराजय के उपरांत बाबर का साम्राज्य इस क्षेत्र पर पूरी तरह जम गया, जिसने जनजीवन को भारी संकट में डाल दिया। इस युग में भी ब्रज- संस्कृति की समन्वयशीलता ने बड़ा काम किया। इसी कारण जहाँ सभी पुराने भारतवासी हिंदू नाम पर एक होकर एक वर्ग बन गए। वहाँ अमीर खुसरो जैसे संतों के कारण ( जो ब्रजक्षेत्र के पटियाली के ही निवासी थे ) हिंदू व मुसलमान भी धीरे- धीरे एक- दूसरे के निकट आए और दोनों संस्कृतियों का समन्वय होने लगा। इसी निकटता की भावना ने सम्राट अकबर के उदय की भूमिका संपादित की जो संसार में धर्म निरपेक्षता का समर्थक कदाचित उस युग का सबसे शक्तिशाली प्रथम सम्राट था, जिसका शासनकाल ब्रजक्षेत्र व भारत का स्वर्णयुग माना जाता है। ब्रज की भक्ति- संस्कृति जो आज भी पूरे देश पर अपना व्यापक प्रभाव रखती है उसी युग में पल्लवित हुई, यद्यपि इसकी जड़ें तभी जम चुकी थीं, जब श्री निंबार्काचार्य ने दक्षिण से ब्रज पधार कर गोवर्धन क्षेत्र के निम्न गाँव को स्थायी निवास बनाया था। श्री कृष्ण के साथ राधा को जोड़कर उन्होंने भक्ति की चेतना में माधुर्य का बीज- वपन किया।

आज ब्रज- संस्कृति ने जो रुप ग्रहण किया है, वह १५ वीं - १६ वीं शताब्दी की ही देन है। यद्यपि भक्ति- आंदोलन के अधिकांश आचार्य दक्षिण से पधारे थे, परंतु उन सबने प्रेरणा ब्रज से ही प्राप्त की और अपने केंद्र भी ब्रज में ही बनाए। रामानुज संप्रदाय की पहली गद्दी उत्तर भारत में गोवर्धन में ही स्थापित हुई। वल्लभ ने जतीपुरा और गोकुल को अपना केंद्र बनाया। माधुर्य भक्ति के सृष्टा स्वामी हरिदास, हित हरिवंशजी व बुंदेलखंड को छोड़कर ब्रजवास करने वाले श्री हरिराम व्यास की यह "हरित्रयी' ही माधुर्य भक्ति की कर्णधार थी। चैतन्य महाप्रभु तथा उनके शिष्यों ने वृंदावन व राधाकुंड को अपना केंद्र बनाया और इन सभी ने मिल कर अपने- अपने ढंग से ब्रज की भक्ति भावना के विकास, प्रचार और प्रसार में योग देकर पूरे देश के निराशा के वातावरण में प्रेम, आस्था व आशा का संचार करके एक मृत संजीवनी संस्कृति को विकसित किया जो ब्रज- संस्कृति कहलाई। इसी कारण ब्रज की संस्कृति क्षेत्रीय न रहकर एक बार पूरे देश के आकर्षण व प्रेरणा का स्रोत बन गई।

इस सामान्य विवेचना के उपरांत अब हम उन तत्वों पर भी दृष्टिपात करें, जिनसे यह ब्रज- संस्कृति बनी है। 

 

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