ब्रज-वैभव

पुनीत स्थल ब्रजधाम


भौगोलिक मान में यद्यपि ब्रज नाम का कोई स्थल या प्रदेश नहीं है तथापि 'ब्रज' का अपना विशिष्ट अस्तित्व है। इसकी अपनी विशेष संस्कृति है, अपनी भाषा है, अपना अनुपम साहित्य है। इसी आधार पर ही कदाचित यहाँ के लोगों की मांग 'ब्रज प्रदेश' के निर्माण के हेतु उठाई जाती रही है।

प्राचीन ब्रज में १२ वन, २४ उपवन तथा ५ पर्वतों का समावेश बताया जाता है। सूरदास जी ने गाया है- 'चौरासी ब्रजकोस निरन्तर खेलत हैं वन मोहन' इस प्रकार ब्रजधाम का विस्तार चौरासी कोस निश्चित होता है किन्तु ब्रज से संबंधित भूमि तथा संस्कृति का विस्तार इससे अधिक है। मथुरा को केन्द्र मानकर आगरा, ग्वालियर भरतपुर, अलीगढ़, एटा, गुड़गाँव, मेरठ आदि जिलों तक जहाँ-जहाँ ब्रजभाषा बोली व समझी जाती है, ब्रज का क्षेत्र माना जा रहा है।

 

 

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