मथुरा धार्मिक नगरी है। यहाँ धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन बड़ी मात्रा में होता है और देश के विभिन्न भागों के लिए ही नहीं अपितु विदेशों को भी ये धार्मिक पुस्तके सप्लाई होती हैं। इसके अलावा छपी हुई साड़ियों, डोरी, निवाड़, सोडा, चूर्ण तथा औषधियों आदि के अनेकों कारखाने हैं। पेड़ा, खुरचन यहाँ के प्रसिद्ध उपहार हैं। यहाँ प्रसिद्ध तेल शोधक कारखाना (रिफायनरी) भी है। दूरदर्शन का रिले केन्द्र एवं आकाशवाणी का मथुरा-वृन्दावन नाम से प्रसार केन्द्र है जहाँ से ब्रज के सांस्कृतिक प्रोग्राम होते हैं। वेटरनरी कॉलेज, पी.एम.बी. पोलीटेक्निक के अलावा बी.एस.ए. कॉलेज, किशोरी रमण डिग्री कॉलेज, चमेली देवी, अनार देवी एवं प्रेम देवी आदि अनेक कन्या शिक्षण संस्थाएँ शिक्षा जगत में अपना नाम प्रसिद्ध किए हुए हैं।
मथुरा से अन्य दर्शनीय स्थलों की दूरी
मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान के कारण सुप्रसिद्ध है तो अन्य स्थल उनकी लीला स्थलियों के रुप में दर्शनीय है जिनमें
वृन्दावन - १० किलोमीटर
गोकुल - १० किलोमीटर
महावन - १९ किलोमीटर
बलदेव (दाऊजी) - २४ किलोमीटर
गोवर्धन - २४ किलोमीटर
राधाकुण्ड - २८ किलोमीटर
नन्दगाँव - ५३ किलोमीटर
बरसाना - ४२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
बल्लभ-सम्प्रदाय के स्थल
१. श्री बल्लभाचार्य की बैठक-मणिकर्णिका घाट।
२. स्वामी कालजी की गुफा-गली कीलमठ में।
३. श्री नाथजी की बैठक-तुलसी चबूतरा।
४. सातों स्वरुपों के घर-गली सतघड़ा।
५. तुलसी थामला-गली तुलसी चबूतरा में।
मथुरा के प्रमुख घाट
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मथुरा
में यमुनाजी अर्द्ध चन्द्राकार बह रही है।
यमुनाजी के पच्चीस घाटों में विश्राम घाट
प्रमुख है जो मध्य में है अर्थात् बारह घाट इसके
उत्तर की ओर और बारह घाट दक्षिण की
ओर हैं। कुछ ही घाटों को छोड़कर
सभी दयनीय जीर्ण-शीर्ण दशा में हैं। इनकी देखरेख न होने
से इनकी सीढियाँ टूट-फूट गई हैं,
कलात्मक स्थापत्य कला के नमूने की
छतरियाँ-जालियाँ आदि अब प्राय: कम ही रह गई हैं।
अतिक्रमण से घाटों को दबा भी दिया गया है।
यमुना की धारा बदलने का भी असर घाटों की
सुन्दरता को कम करता है। घाटों
में विश्राम घाट सहित चक्रतीर्थ
घाट, कृष्ण गंगा घाट, गौ घाट, स्वामी
घाट, असकुण्डा घाट, प्रयाग घाट, बंगाली
घाट, सूरज घाट और ध्रुव घाट आदि के नाम हैं। यहाँ
पर राज्य सरकार के द्वारा गोकुल
बैराज बन रहा है जो कि लगभग
पूर्ण हो चुका है, जिससे यहाँ
पर यमुना में जल की अधिकता रहेगी
और यमुना के दोनों साइड प्लेटफॉर्म व
सौन्दर्यीकरण की योजना है जो कि
राज्य सरकार द्वारा जल्दी ही पूरी होगी।
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मथुरा की परिक्रमा
मथुरा में परिक्रमा की एक प्राचीन परम्परा है। हर माह एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा को भक्तजन मथुरा की परिक्रमा करते हैं। पुरुषोतम अर्थात् अधिक मास में नित्य परिक्रमा लगती है विशेष परिक्रमा ग्रहण के समय, वन विहार देव शयनी, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी पर लगती है। मथुरा की परिक्रमा लगभग ग्यारह मील पड़ती है। उसके मार्ग में प्राय: समस्त प्रमुख देव-स्थान एवं दर्शनीय स्थान आ जाते हैं। परिक्रमा विश्राम घाट से आचमन लेकर प्रारम्भ होती है और इसी स्थान पर लौटकर समाप्त होती है।
तीन वनों की प्रसिद्ध परिक्रमा
यह परिक्रमा अक्षयनवमी एवं देवोत्थानी एकादशी को लगती हैं। मथुरा की परिक्रमा सरस्वती कुण्ड से मथुरा-दिल्ली रोड पर छटीकरा तक जाती है और वहाँ से गरुड गोविन्द सड़क पर होकर सीधी वृन्दावन रमणरेती पहुँची है। रमणरेती से यमुना घाटों पर होती हुई प्रमुख मंदिरों में दर्शन-झाँकी करते हुए परिक्रमार्थी यमुना किनारे होकर अक्रूर मंदिर, पागल बाबा मंदिर, बिड़ला गीता मंदिर होकर मथुरा आते हैं।
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