वृन्दावन में अनगिनत मन्दिर हैं और यदि कहा जाय कि वृन्दावन मन्दिरों का ही नगर है तो यह गलत नहीं होगा । यों तो सभी ठाकुर द्वारे अपने-अपने महत्व तथा विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध होते हैं फिर भी हम कुछ मुख्य मन्दिरों का वर्णन कर रहे हैं ।
श्री गोविन्ददेवजी का मन्दिर
यह अति प्रचीन विशाल मन्दिर नगर पालिका से रंगजी के मन्दिर जाने से पूर्व बांयी ओर है जो लाल पत्थर का बना हुआ है । इसे जयपुर के महाराजा मानसिंह ने बनवाया था । कहते हैं कि यह सात मंजिल का था । इसकी चार मंजिल बादशाही सेना द्वारा गिरा दी गई थीं । औरंगजेब जब ब्रज मण्डल में मन्दिरों को नष्ट कर रहा था, उस समय यहाँ की मूर्ति जयपुर पहुँचा दी गई । वहाँ गोविन्ददेवजी के नाम से आज भी प्रमुख मन्दिर है ।
यह मन्दिर अब सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है । इसी मन्दिर के पीछे गोविन्दजी का नया मन्दिर है । इसमें मूर्ति मनोहारी और दर्शनीय है ।
रंगजी का मन्दिर
यह विशाल और दक्षिणी स्थापत्य कला की एक
सुन्दर कृति वाला मन्दिर सेठ लक्ष्मी- चन्द के
भाई सेठ राधाकृष्ण और गोविन्ददास ने
बनवाया था । मन्दिर सात वर्षों में
सन् १८२५ ई० के लगभग बनकर तैयार हुआ था ।
मन्दिर के सात परकोटे हैं । शिखर
अत्यन्त भव्य है । विशाल आंगन, सोने का
साठ फुट ऊँचा खम्भा, बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ इस
मन्दिर की विशेषताएँ हैं। चैत्र मास
में रथ का मेला, श्रावण में हिंडोले,
रक्षाबन्ध पर गज-ग्राह का मेला, भादो
में जन्माष्टमी उत्सव, लट्ठे का मेला तथा पौष
में बैकुण्ठ उत्सव आदि के समय रंगजी
मन्दिर पर देखने योग्य मेले लगते हैं ।
काँच का मन्दिर
रंगजी मन्दिर के पूर्वी द्वार पर स्थित बिजावर महाराज का काँच का मन्दिर दर्शनीय है।
गोदा बिहार
यह मन्दिर रंगजी के पास है । इस मन्दिर में सैकड़ों देवी-देवताओं, ॠषियों-मुनियों, सन्त-महापुरुषों की दर्शनीय मूर्तियाँ शोभायमान है ।
राधा गोपालजी का मन्दिर
यह मन्दिर अपने गुरु-गिरधारी ब्रह्मचारी के उपदेश से ग्वालियर के महाराजा जिवाजीराव सिन्धया ने सन् १८६० ई० में कई लाख रुपया लगाकर बनवाया था । इसमें ब्रह्मचारीजी निवास करते थे तभी से यह ब्रह्मचारी के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है ।
राधारमणजी का मन्दिर
श्री राधारमणजी स्वयं प्राकाट्य भगवान हैं । इस मन्दिर में मांगलिक दर्शन प्रात: ५ बजे होते हैं । रंगजी के द्वार से पश्चिम की ओर में जाने पर यह मन्दिर स्थिर है । इस मन्दिर की पूजा-सेवा गोस्वामियों के पास है ।
गोपेश्वर का मन्दिर
जब श्रीकृष्ण महारास करते थे तो उसमें पुरुष मात्र के आने की आज्ञा नहीं थी, परन्तु महादेवजी को इस आनन्द को देखने की इच्छा हुई तब गोपी का रुप धारण कर उस आनन्द को देखने लगे । श्रीकृष्ण को मालूम हो गया । श्रीकृष्ण ने महादेवजी को गोपीश्वर नाम से पुकार कर अपने पास बुलाया था ।
युगलकिशोर का मन्दिर
यह मन्दिर केशीघाट पर ठाकुर नानकरण चौहान का बनावाया हुआ है । यह मन्दिर जहांगीर बादशाह की अमलदारी में सम्वत् १६६४ में बनवाया गया था । इस मन्दिर का जगमोहन ३२ फुट वर्गात्मक है । मन्दिर की मूर्ति मनोहर और दर्शनीय है ।
शाह बिहारी जी का मन्दिर
यह मन्दिर रेतिया बाजार में यमुना तट पर बना है । इसको लखनऊ के सुप्रसिद्ध शाह बिहारी लाल के पुत्र शाह कुन्दन लाल ने बनवाया था । यह जन साधारण में शाहजी मन्दिर के बजाय टेढ़े-मेढ़े खम्भों वाला मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । वास्तव में इसका नाम ललित कुञ्ज है । यहाँ बसन्त पंचमी पर मेला लगता है ।
सवामन सालिग्राम जी का मन्दिर
लोई बाजार में यह मन्दिर सवा मन के सालिग्राम के नाम से प्रसिद्ध है । मन्दिर बहुत बड़ा नहीं है, परन्तु मूर्ति अवश्य दर्शनीय और आश्चर्यजनक है ।
मदनमोहन जी का मन्दिर
श्री सनातन गोस्वामी को मथुरा के एक चौबे ने श्रीमदनमोहनजी की एक मूर्ति माघ शुक्ल तृतीया को लाकर दी जिसे देखकर गोस्वामी बहुत प्रसन्न हुए और उसे कालीदह के निकट द्वादश टीले पर स्थापित कर और स्यवं एक मढ़ी बनाकर रहने लगे ।
श्री बाँके बिहारी जी का
मन्दिर
स्वामी श्री हरिदासजी द्वारा निर्मित यह मन्दिर वृन्दावन के प्रमुख मन्दिरों में से एक है । श्री बिहारीजी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया (तीज) को होता हैं । सावन मास में सोने के हिंडोले के दर्शन होते हैं तथा फाल्गुन के महीने में होली होती है । मूर्ति बहुत चमत्कारी है । मन्दिर प्रात: ९ बजे खुल कर १ बजे बन्द होता है । पन: सायं ६ बजे से ९ बजे तक दर्शन खुलते हैं । समय-समय पर दर्शन होते हैं तथा भोग व झाँकियाँ होती हैं ।
श्रीकृष्ण बलराम मन्दिर (अंग्रेजों का
मन्दिर)
|
यह मन्दिर रमणरेवती स्थित वृन्दावन-दिल्ली रोड पर वन महाराज के कालेज के ठीक सामने सड़क पर ही है । मन्दिर में तीन सान्निधियाँ हैं । प्रथम में दाँयी ओर श्री गौरिनिताई, द्वितीय में श्रीकृष्ण बलराम एवं तृतीय में श्री राधा कृष्ण युगल ललिता विशाखा सहित हैं । द्वार से प्रवेश करते ही फब्बारों की लाइन और प्रांगण में एक तमाल वृक्ष है । यह मन्दिर तथा अतिथि भवन श्रीकृष्ण भावना संघ द्वारा निर्मित हुआ है जिसने विदेशों में अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया है । यहाँ अनेकों अमेरकन एवं भारतीय भक्त गण वैष्णव धर्म में दीक्षित होकर निवास करते हैं । इस मन्दिर में निर्माण कार्य अभी भी चल कहा है ।
|
श्रीजानकी बल्लभलाल भगवान का मन्दिर
इस मन्दिर का निर्माण श्री वेदान्त देशिक आश्रम के द्वारा केशीघाट पर हुआ है । यह मन्दिर रामानुज के बड़कले शाखा से संबंधित है । इस मन्दिर के प्रतिष्ठापक परमहंस स्वामी भगवानजी आचार्य है । मन्दिर में संगमरमर का प्रयोग हुआ है तथा शिखर भाग विशाल एवं शास्रोक्त है । इसमे श्रीराम, लक्ष्मण एवं माता जानकी के मूर्ति के दर्शन होते हैं ।
श्री पागल बाबा का मन्दिर
मथुरा-वृन्दावन रोड पर टी० वी० सेनेटोरियम से पहले हाइडल सब स्टेशन के समीप लीला बाग में यह भव्य मन्दिर अभी निर्माणावस्था में है । इसी वृन्दावन ज्ञान गुदड़ी में रहने वाले पागल बाबा नाम से प्रसिद्ध एक सन्त ने दानी उद्योगपतियों के सहयोग से बनवाया था । इसकी निर्माण शैली ब्रज में अन्य मन्दिरों से अलग है । शिखर काफी ऊँचा है और समस्त मन्दिर एवं बाग काफी क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके एक मन्दिर में एक कुण्ड भी बना है ।
राधा वल्लभजी मन्दिर
हित हरिवंश गोस्वामियों का यह मन्दिर प्राचीन हैं । यहाँ भगवान के साथ राधाजी की गद्दी नहीं विराजती है ।
जयपुर वाला मन्दिर
यह मन्दिर रामकृष्ण मिशन अस्पताल के सामने है जो काफी विशाल क्षेत्र में बना है ।
मान सरोवर
मान सरोवर वृन्दावन से जमुना पार
में स्थित है । राधारानी का भव्य मन्दिर
शोभायमान है तथा प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण एकादशी को
भव्य मेला लगता है तथा राधारानी
मन्दिर की बांयी ओर बड़ी हित हरिवेश महाप्रभु की
भजन स्थली है । दर्शनार्थी प्रति माह की पूर्णिमा को दर्शन करने के
लिये आते हैं ।
अक्रूर मन्दिर
अक्रूर मन्दिर में श्रीकृष्ण बलराम एवं
स्वयं अक्रूरजी के दर्शन होते हैं । इस
मन्दिर के लिए वृन्दावन रोड पर गौशाला के
बराबर से मार्ग जाता है । श्री अक्रूरजी वार्ष्णे बारहसैनी
वैश्यों के पूर्वज है ।
राधा बल्लभजी मन्दिर
यह प्रचीन मन्दिर कोड़िया घाट पर स्थित है । जिसके अवशेष आज
भी मिलते हैं ।
श्री अनन्त बिहारी मन्दिर
सिंधी कालौनी में स्थित यह मन्दिर
स्वामी हरिमिलाप जी का बनवाया हुआ है ।
श्रीजी मन्दिर
निम्बार्क संमप्रदाय का यह विशाल
मन्दिर रेतिया बाजार में स्थित है । यहाँ ठाकुरजी आनन्द मनोहरजी के दर्शन होते हैं । यहाँ
से श्रीसर्वेश्वर नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है ।
मन्दिर का जीर्णोद्धार जयपुर की राजमाता
श्री आनन्दकुँवरजी ने कराया था ।
कानपुर वाला मन्दिर
आनन्द वृन्दावन के निकट कानपुर के पद्मापति सिंहानिया द्वारा निर्मित है ।
मानस मन्दिर
श्री रंगजी के मन्दिर के समीप है ।
गोपीनाथ का मन्दिर
सन् १६४६ ई० के लगभग निर्मित यह मन्दिर गौड़ीय
सम्प्रदाय से सम्बन्धित है ।
मीराबाई का मन्दिर
यह मन्दिर शाह बिहारीलाल के मन्दिर के
समीप है ।
नन्द भवन
यह यमुना के किनारे पर है, जहाँ नन्दोत्सव
बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है ।
रसिक बिहारी मन्दिर
यह हरिदासी परम्परा के आचार्य रसिक दास जी द्वारा निर्मित
मन्दिर है ।
गोरे दाऊजी का मन्दिर
यह मन्दिर श्री रसिकदासजी के शिष्य श्री गोविन्ददासजी द्वारा निर्मित है ।
अष्टसखी मन्दिर
इसका निर्माण संमत् १९४३ में हेतमपुर महाराजा द्वारा हुआ ।
आनन्द वृन्दावन
स्वामी अखण्डानन्दजी की प्रेरणा पर नगर
से दूर शान्त वातावरण में इस रमणीक
मन्दिर की स्थापना की गयी है ।
गोवर्धन
मथुरा से पश्चिम
में डीग-अलवर मार्ग पर गोवर्धन लगभग २४ कि०मी० है । यह वैष्णवों का
वि प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है । यहाँ गोवर्धन नामक पर्वत है जिसकी
सेवा-पूजा साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमूर्ति के
रुप में की जाती है । पर्वत की लम्बाई ७ कि०मी० के
लगभग है । इसकी परिक्रमा करने देश-विदेश
से धार्मिक जन वर्ष पर्यन्त आते हैं, किन्तु हर मास की पूर्णिमा, पुरुर्षोत्तम
मास के सभी दिनों, मुड़िया पूनों तथा
सावन भादों व लोंद के महिनों में तो परिक्रमा का
विशेष महत्व होने से लाखों नर-नारी और
बच्चे इसकी परिक्रमा करते हैं । अनेकों
श्रद्धालु दूध की धार और दण्डवत परिक्रमा
भी लगाते हैं और मनौती मनाते हैं । यह
अच्छा कस्वा है और यहाँ अनेकों धर्मशालाएँ व
यात्री-निवास हैं ।
मानसी गंगा
मानसी गंगा भगवान श्रीकृष्ण के स्नान के
लिये जो 'आकाश गंगा' का जल गिरा था, उससे प्रगट हुई
बतलाते हैं । यह गोवर्धन नगरी के
बीचो-बीच काफी बड़े क्षेत्र में हैं । इसके चारों ओर पक्के घाट और
अनेक मन्दिर बने हैं । दीपावली के दिन यहाँ दीपदान-दीपमालिका की अपूर्व छटा देखने सहस्रों
यात्री आते हैं ।
श्री गंगाजी का मन्दिर
मानसी गंगा के किनारे यह पुष्टि मार्गीय
मन्दिर है ।
गिरिराज
मुकुट मन्दिर (मुखारविन्द)
मानसी गंगा पर ही गोवर्धन के मुखारविन्द के दर्शन हैं । यहाँ दूध चढ़ाकर
भोग लगाया जाता है । यहाँ यम, कुबेर आदि की प्राचीन
शिला-प्रतिमाएँ भी हैं ।
यह मन्दिर कार्व्हिष्ण सम्प्रदाय के महामंडलेश्वर
स्वामी गुरु शरणानन्दजी के सहयोग
से नवीनता को प्राप्त हुआ है । इस मन्दिर के पुन: निर्माण के पश्चात्
सन् १९९३ ई० में वास्तु प्रतिष्ठा, शिखर पर महाध्वज दण्ड तथा
स्वर्ण कलश की स्थापना हुई है ।
चक्रेश्वर महादेव
यह मानसी गंगा के उत्तरी सिरे पर एक प्राचीन
शिव मन्दिर है जिसे प्राचीन काल में महाराज
बज्रनाभजी ने निर्माण कराया था । समीप ही चैतन्य महाप्रभु का
मन्दिर, श्री महाप्रभुजी की बैठक है । यहीं
सनातन गोस्वामी की भजन स्थली भी है ।
श्री हरदेवजी का मन्दिर एवं ब्रह्मकुण्ड
यह एक प्रचीन मन्दिर है जो मानसी गंगा के
समीप ही लाल पत्थरों का बना है । इसे
भी प्रचीनकाल में श्रीबज्रनाभजी द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था । औरंगजेब ने इस
मन्दिर को तुड़वाया था जिससे अब इसकी एक
मंजिल ही शेष है । चैत्र कृष्ण द्वितीया को ठाकुर हरदेवजी की
सवारी निकाली जाती है । पास में ही
ब्रह्मकुण्ड है जहाँ ब्रह्माजी ने श्रीकृष्ण जी की स्तुति की थी ।
मनसा देवी का मन्दिर
यह मन्दिर मानसी गंगा के समीप ही है और
मानसी गंगा की तरह ही प्राचीन है । प्रतिमा का प्राकाट्य गिरिराज
शिला में से ही है । पहले यह मन्दिर
भव्य था किन्तु औरंगजेब द्वारा इसको नष्ट कर देने के
बाद साधारण ढ़ंग से ही बना दिया गया है ।
दानघाटी
मथुरा से डीग जाने वाले मार्ग पर ठाकुर दानबिहारी
लालजी का मन्दिर है । इसी को श्री गोवर्धन नाथ
मन्दिर भी कहते हैं । यहाँ मुखारबिन्द के दर्शन हैं ।
मन्दिर में अब नवीन शैली में निर्माण कार्य चल रहा है ।
भरतपुर महाराज की छतरियाँ
गोवर्धन धाम से भरतपुर के शासकों का बहुत
लगाव रहा है । यहाँ उनके द्वारा निर्मित
रानी किशोरी जी के महल श्रीगिरिराज
मुखारबिन्द मन्दिर तथा छतरियाँ दर्शनीय हैं ।
अन्य दर्शनीय स्थल व
मन्दिर
इसके अतिरिक्त हाथी दरवाजे पर
विश्वकर्माजी का मन्दिर, रामलीला
मैदान के पास श्री नन्दबाबा का मन्दिर,
श्री गिरिराज मुकुट मन्दिर के पास
लक्ष्मीनारायण जी का मन्दिर, बड़ा बाजार
में दाऊजी का मन्दिर, भरतपुर की छतरियों के पास किशोरी
श्यामजी का मन्दिर एवं लक्ष्मीनारायण का नया
मन्दिर बाजार में हैं । ॠण मोचन कुण्ड, पाप
मोचन कुण्ड, सिद्ध बाबा का मन्दिर, निवृत कुण्ड आदि
अन्य अनेकों कुण्ड व मन्दिर गोवर्धन में हैं ।
गोवर्धन की परिक्रमा के तीर्थस्थल
श्री गिरि गोवर्धन और श्री यमुना भगवान श्रीकृष्ण के
समय की साक्षी हैं । श्री गिरिराज तो जन-जन के देवता हैं । इसकी परिक्रमा पर
ब्रजवासा ही नहीं दूर-दूर से आने
वाले श्रद्धालु जन अपने को धन्यभाग्य
मानते हैं ।
परिक्रमा करते समय मार्ग में अनेकों
मन्दिर व कुण्ड आदि आते हैं । इसमें से जो
मुख्य हैं :-
आन्यौर
परिक्रमा मार्ग में गिरिराज जी की तलहटी
में यह प्राचीन गाँव बसा हुआ है । यहाँ महाप्रभु
बल्लभाचार्य पधारे थे । कहा जाता है कि
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर गोवर्धन- पूजा
ब्रजवासियों से कराई थी । सद्दुू पांडे का घर, महाप्रभुजी की
बैठक, श्रीनाथ जी का मन्दिर पर्वत
शिखर पर कुंभनदास की समाधि संकर्षण कुण्ड के किनारे, दाऊजी का
मन्दिर, गौरी कुण्ड आदि सरोवर यहीं हैं ।
गोविन्द कुण्ड
देवराज इन्द्र ने हार मानकर श्रीकृष्णजी को कामधेनु गाय के दूध
से स्नान कराया था। और उन्हें गोविन्द कहकर पुकारा था । पर्वत के
मध्य शिलाओं में श्रीकृष्णजी की छड़ी, टोपी आदि हैं । यहाँ गोविन्दजी का
मन्दिर, गौघाट पर श्रीनाथजी का मन्दिर,
श्री बठ्ठलनाथजी और नागाजी की बैठकें दर्शनीय हैं । इसके
बाद परिक्रमा मार्ग में ही गन्धर्व कुण्ड, टोका दाऊजी का
मन्दिर तथा सात कन्दरायें हैं ।
पूछरी का लौठा
गोवर्धन श्रेणी यहाँ आकर अलोप हो जाती है और परिक्रमा जतीपुरा की ओर
मुड़ जाती है यहीं पर पूछरी गाँव और पूछरी के
लौठा का मन्दिर है । यह हनुमानजी का ही एक
स्वरुप है जिन्हें माखन लूटने को श्रीकृष्णजी ने
बिठाया था । समीप ही अप्सरा कुण्ड, टीले पर नृसिंहजी का
मन्दिर, नवल बिहारीजी का मन्दिर, गोपाल तलैया आदि और गिर्राजजी की तलहटी
में इन्द्रकुण्ड तीर्थ, सुरभि कुण्ड, चरण
शिला, ऐरावत कुण्ड और हरजी कुण्ड
भी हैं ।
जतीपुरा
जतीपुरा गोवर्धन की तलहटी में पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय का केन्द्र है । यहाँ मुखारविन्द के दर्शन हैं । महाप्रभुजी व गोकुलनातजी की बैठकें हैं । मोतीमहल, गिरिराज बाग, मदनमोहनजी का मन्दिर, श्रीनाथजी का प्राकट्य मन्दिर हैं जो दर्शनीय है । यहाँ मुखारविन्द पर दूध व भोग चढ़ाया जाता है ।
जतीपुरा से आगे, सूर्यकुण्ड, बिलछू कुण्ड, दंडौता हनुमान मन्दिर और राधाकुण्ड की ओर बढ़ने पर लुटेरा हनुमान व उद्धव कुण्ड है । राधाकुण्ड में प्रवेश करने पर शिव पोखर, मलिहारी कुण्ड, भनोखर, कुजबिहारी मठ, गोविन्द मन्दिर, गिर्राजजी की जिह्मवा, पाँच पाँडव घाट, हरिवंशराय की बैठक, ललिताकुण्ड, गोपकुआँ, अष्टसखी के मन्दिर हैं ।
राधाकुण्ड-कृष्णकुण्ड
राधाकुण्ड की बस्ती इस कुण्ड के नाम पर ही है । श्री राधाकृष्ण का प्रधान विहार स्थल है । यहाँ बराबर-बराबर दोनों कुण्ड हैं तथा दोनों का जल स्तर एक ही है ।
कुसुम सरोवर
यह विशाल सुन्दर सरोवर राधाकुण्ड से गोवर्धन के मार्ग में है । यहाँ श्री श्यामसुन्दर ने श्री किशोरीजी का पुष्पों से श्रृंगार किया था । यह सफेद पत्थर का रमणीय विशाल सरोवर है जिसे भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह ने बनवाया था । पक्के घाट और उन बनी सुन्दर छतरियाँ हैं जिनमें सुन्दर चित्रकारी की हुई है । समीप ही उद्धवजी की बैठक और दाऊजी का मन्दिर है । नारद कुण्ड पर नारदजी ने तपस्या की थी ।
पारासौली-चंद्र सरोवर
जमुनावत गाँव के बाद पारासौली स्थान है जहाँ चन्द्र सरोवर और सुरदासजी की कुटी है । पास ही श्रृंगार मन्दिर, रासमंडल, बल्देवजी का प्राचीन मन्दिर और संकर्षण कुण्ड है। चन्द्र सरोवर बहुत सुन्दर पक्का अष्टकोण रुप में निर्मल जल से परिपूर्ण रहता है । जमुनावत गाँव ब्रजभाषा कवि कुंभनदास का निवास-स्थल था । पारासौली को सूरदासजी की जन्मस्थली कही जाती है । श्रीनाथजी का जलघड़ा, इन्द्र के नगाड़े, रासलीला का स्थान है । महाप्रभु बल्लभाचार्य जी ने भागवत का पारायण किया था ।
बरसाना
|
बरसाना
मथुरा से गोवर्धन होकर लगभग ४२ कि०मी०
और कोसी से गोवर्धन मार्ग पर २१ कि०मी० है । यह
भगवान श्रीकृष्ण की आहलादिनी शक्ति
श्री राधा जी का गाँव है । पर्वत की दो
श्रेणियों के बीच के समतल स्थान
में बरसाना गाँव बसा हुआ है । दोनों
पर्वत मिलकर एक नाव की शक्ल बनाते हैं ।
पर्वत जहाँ मिलते हैं, उस जगह को
साँकरी खोर कहते हैं । दोनों पर्वत
श्रेणियों में एक श्याम रंग के पत्थरों की
और दूसरी सफेद पत्थरों की है । इस तरह
ये राधाकृष्ण के स्वरुपों का भी प्रतीक है । इन
पर्वत श्रेणियों के चार शिखर मानगढ़,
मोर कुटी, विलासगढ़ और दानगढ़ हैं ।
बरसाना अब अच्छा कस्बा बन गया है । यहाँ के
बाजार में खाने-पीने की सभी चीजें
मिल जाती हैं तथा यहाँ यात्रियों के ठहरने को
धर्मशालाएँ भी हैं । इसका प्रचीन नाम वृषभानपुर
और वृहत्सानौ है । श्री वृषभानुजी
राधाजी के पिता थे और उनके वंशज
राजा वृहत्सैन हुए हैं । यहाँ ब्रजयात्रा का
पड़ाव होता है । यहाँ राधारानी का
मन्दिर, राधिकाजी का महल । जयपुर
वाला मन्दिर दानगढ़ पर है । चित्र-विचित्र
शिलाएँ देखने योग्य हैं । गाजीपुर
में राधागोपाल जी का विशाल भव्य
मन्दिर है जिसके पिछे प्रेम सरोवर है । अष्ट
सखी मन्दिर, भानोखर, कीर्ति कुण्ड,
मुक्ता कण्ड, पीरी पोखर, वृषभानु
मन्दिर आदि दर्शनीय स्थल हैं ।
बरसाने की प्रसिद्ध लठामार रंगीली
होली फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी को होती है, जिसे देखने हजारों नर-नारी
देश-विदेश से आते हैं । |
संकेतवन
श्री राधाकृष्ण के प्रथम-मिलन का स्थल
संकेत वन बरसाने से २ कि०मी० दूरी है । यहाँ
संकेत वट, संकेत कुण्ड, राधारमणजी,
विह्मवला देवी, संकेत बिहारी के मन्दिर हैं ।
रासमंडल चबूतरा, रंगमहल एवं चैतन्य महाप्रभु और
श्री बल्लभाचार्य की बैठकं हैं ।
रीठारा
यह रीठारा गाँव चन्दावली
सखी का जन्म स्थल है । चन्द्रावलि कुण्ड और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की
बैठक है ।
नन्दगाँव
यह भगवान श्रीकृष्ण का गाँव है । नन्दजी का
भवन ऊपर पहाड़ी पर है । यह पहाड़ी
शिव का रुप मानी जाती है । मन्दिर के नीचे ढ़लान पर गाँव
बसा हुआ है । श्रीकृष्ण-बलराम के साथ नन्दबाबा और
यशोदा रोहिणी जी की सुन्दर मूर्तियाँ हैं ।
बाँयी ओर राधारानी की मूर्ति है और दाई ओर
श्रीदामा सखा आदि मूर्तियाँ विराजती हैं ।
मन्दिर का विशाल जगमोहन है । जहाँ
फागुन शुक्ल दशवीं को बरसाने के हुरियारे होली खेलते हैं । पान
सरोवर, श्री बल्लभाचार्य जी की बैठक,
श्री रुप गोस्वामी, सनातन गोस्वमी की कुटिया,
मोती कुण्ड, श्याम पीपरी, टेर कदम्ब,
यशोदा कुण्ड, नन्द पोखरा, नन्दीश्वर महादेव, जल बिहार, छाछ कुण्ड, छछियारी देवी आदि
मन्दिर और भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली है ।
कोकिला
वन
यहाँ कोकिला कुण्ड, कोकिला बिहारी, कृष्ण कुण्ड, महाप्रभुजी की
बैठक हैं । यहाँ शनिवार को शनिदेव के
मन्दिर पर हजारों स्री-पुरुष दर्शनार्थ आते हैं । कहते हैं कि यहाँ
शनिदेव ने राधाकृष्ण के दर्शनों की इच्छा
से भारी तपस्या की थी । यहाँ मोर बहुत हैं ।
वन में असंख्य भ्रमर गुंजार करते हैं । यहां महारास के
समय भगवान राधाजी के साथ अन्तध्र्यान होकर आये थे किन्तु
राधाजी के मन में अभिमान होने से उन्हें
अकेली छोड़कर चले गये । विलाप करती
राधाजी को उनकी सखियाँ यहाँ मिली थीं, ऐसा कहा जाता है । यह
भी कहा जाता है कि श्याम सुन्दर ने अपनी
बंसी से कोयल का स्वर निकाल कर
राधाजी को भ्रमित एवं चकित किया था ।
बड़ी व छोटी बठैन, बैंदोखर, कामर, कोसी,
शेषशायी, पैगाँव, शेरगढ़, बिहारवन आदि इसी ओर की
लीला स्थलियाँ हैं । यहाँ ब्रज यात्रा
मुकाम करती हैं । वैसे साधारणत:
यात्री आवागमन में कठिनाइयों के कारण नहीं आते हैं ।
डीग कामां आदि
इस स्थल की गणना स्कन्द पुराण
में दीर्धपुर नाम से तीर्थोंमें की गयी है । यहाँ गोपाल
भवन, सूरज भवन, केशव भवन, कृष्ण
भवन, नन्द भवन आदि दर्शनीय हैं । यह इतिहास प्रसिद्ध स्थल है और
राजस्थान प्रदेश के भरतपुर जिले के
अन्तर्गत आता है । साक्षी गोपाल, गोवर्धन नाथ,
लक्ष्मणजी के मन्दिर हैं । भादों में अमावस्या
से फुँआरों का प्रसिद्ध मेला होता है।
राजस्थान प्रदेश
में आने वाले अन्य धार्मिक स्थल घाटा, कामां, परमदरा आदि हैं । इसमें कामां
(कामवन) को आदि वृन्दावन बताया जाता है । यहाँ मदनमोहनजी,
राधाबल्लभजी, गोविन्दजी, नवनीत प्रियाजी,
श्वेत वाराह, कामदेव, कामेश्वरनाथ
शिव मन्दिर दर्शनीय है । यहाँ महाप्रभुजी व गोसाइयों की
बैठकें होने से वैष्णवों के लिये इसका बहुत महत्व है । यहाँ गोपाल कुण्ड के अतिरिक्त कई कुण्ड हैं ।
समीप ही व्योमासुर की गुफा, खिसलनी
शिला,चरण पहाड़ी, ललिताजी की बाबड़ी
भी हैं ।
यमुना पार के तीर्थ-स्थल
मथुरा से यमुनापार करके एक
मार्ग राया, हाथरस व अलीगढ़ की ओर जाता है ।
मथुरा से एक मार्ग साहाबाद को जाता है । इस
साहाबाद मार्ग पर लोहवन, आनन्दी-वन्दी, गोकुल,
रावल, महावन ब्रह्माण्ड घाट, रमन-रेती और
बलदेव दाऊजी प्रसिद्ध तीर्थ स्थली है ।
लोहवन में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा लोहासुर का
वध हुआ था। यहाँ लोहासुर की गुफा, कृष्ण कुण्ड, गोपीनाथजी का
मन्दिर है। आनन्द-वन्दी दोनों नन्दरायजी की कुल देवीयाँ कहीं जाता है। चन्द्रावली देवी का
मन्दिर इसी मार्ग पर है। यहाँ हर सोमवार को
भारी मेला लगता है।
गोकुल
|
भनवान श्रीकृष्ण को
आधी रात के जन्म के पश्चात् यमुना
पार करके यहाँ लाया गया था । श्रीकृष्ण का नन्द
यशोदा के यहाँ पालन हुआ । उन्होंने यहाँ
बाल-लीलायें की और कंस के असुरों को
मारा था । यहाँ बल्लभ सम्प्रदाय का एक
प्रमुख केन्द्र है । यहाँ प्रभुजी की साधना
स्थली रही थी । यहाँ गोकुल नाथजी का
मन्दिर, दाऊजी का मन्दिर आदि कई
मन्दिर दर्शनीय हैं । यहाँ ठकुरानी
घाट, यशोदा घाट आदि जमुना के घाट हैं । यह
मथुरा से १० कि० मी० दूर है । |
रमण रेती-ब्रह्माण्ड घाट
|
यह महावन को जाने
वाले कच्चो मार्ग पर है । ब्रह्माण्ड घाट
स्थल पर बालक रुप श्रीकृष्ण ने मुख
खोलकर ब्रह्माण्ड के दर्शन मैया को कराये थे ।
रमणरेती कार्व्हिष्ण सम्प्रदाय का प्रमुख
स्थान है । यह बहुत रमणीक स्थल है । कार्व्हिष्ण
स्वामी महामण्डलेश्वर गुरु शरणदास एक
प्रसिद्ध सन्त यहाँ विराजमान हैं । यहाँ
रमण बिहारी, रमणेश्वर महादेव एवं हनुमान जी के
भव्य मन्दिर हैं ।
|
रसखान की
समाधि
कवि रसखान और अलीखान की
समाधियाँ चौहट्टा टीले पर है ।
यमुना किनारे ताज बेगम की समाधि है । जो गोस्वामी विठ्ठलनाथ की
शरणागत भगवान श्याम सुन्दर की भक्ति
में रम गयी थीं ।
महावन
गोकुल से आगे २ कि०मी० दूरी पर यह एक
अच्छी प्राचीन बस्ती है । यहाँ के लोग अपने महावन को पुरानी गोकुल
बताते है । यहाँ चौरासी खम्भों का
मन्दिर, नन्देश्वर महादेव, नन्दभवन, पूतना
उद्धार स्थल, यमलार्जुन मोक्ष स्थल, मथुरानाथ, द्वारिकानाथ आदि
मन्दिर हैं ।
बल्देव
महावन से १० कि०मी० दूर
साहाबाद मार्ग पर बल्देवजी का प्रसिद्ध
मन्दिर है । नया मन्दिर लगभग २५० वर्ष पुराना है । क्षीर
सागर कुण्ड से बल्देवजी की प्रतिमा
मिली थी। रेवती कुण्ड, मूर्ति कुण्ड और
रेणुका कुण्ड हैं । प्रचीन काल में बज्रनाभजी ने दाऊजी व
रेवतीजी की प्रतिमायें प्रतिष्ठित की थीं।
मुसलमानों द्वारा मन्दिरों को नष्ट करने पर ये प्रतिमाएं धरती
में दबा दी गयी थीं । यहाँ माखन-मिश्री का
भोग लगता है । फागुन में दाऊजी का प्रसिद्ध हुरंगा
तथा बल्देव छट का अच्छा मेला होता हैं ।
इसके अतिरिक्त रावल, कोइला घाट, चिन्ता हरण घाट, कर्णावल आदि
लीला स्थली है।
मान सरोवर,
माँट भाँडीरवन आदि
वृन्दावन से यमुना पार नाव द्वारा
अथवा अस्थायी पुल द्वारा इन लीला स्थलियों के दर्शनार्थ
यात्री जाते हैं । मथुरा से नौहझील
बसें जाती हैं। मार्ग में ये लीला स्थलियाँ पड़ती हैं।
साधारणत: यात्री इन स्थानों को असुविधाओं के कारण नहीं जाते किन्तु
ब्रज यात्रा वाले यात्री इनके दर्शन अवश्य पाते हैं ।
वृन्दावन से यमुना पार करके प्रसिद्ध
सन्त देवराहा बाबा का आश्रम है, मानसरोवर,
बेलवन माँट भाँडीरवन यहाँ श्रीराधाजी अपने
श्याम से रुठकर बैठ गई तो सुन्दर
श्याम ने इनको मनाया था, पुष्पों से
श्रृंगार किया था । मान सरोवर में
श्री राधाजी का मन्दिर है । महाप्रभुजी की
बैठक और मान सरोवर कुण्ड है ।
बेलवन में गुसाई जी की बैठक व
लक्ष्मीजी का मन्दिर है ।
वच्छवन तथा बेलवन में भी गुसांई जी की
बैठकें हैं । यहाँ अनेक प्रकार की लता-कुंज है ।
बेलवन से माँट जाते हैं । यहाँ मन्दिर
में भगवान का गौरवर्ण का स्वरुप है ।
भांडीर वन मथुरा नौहझील मार्ग पर
लगभग २८ कि०मी० है और भांडीर वन
से भद्रबन ४ कि०मी० है । भांडीर वन प्रिया-प्रियतम का
मिलन स्थल और भद्रवन श्रीकृष्ण तथा
उनके सखाओं का क्रीड़ा स्थल बताया जाता है ।
|