बुंदेलखंड संस्कृति |
|
बुंदेलखंड के रासीकाव्य |
- डॉ० श्यामबिहारी श्रीवास्तव (९५४.३.SHR ) Acc.
no. ९४-४९६६४
मध्यप्रदेश के पन्ना, छत्तरपुर, टीकमगढ़,
दतिया, सागर, दमोह, नरसिंहपुर
जिले तथा जबलुपर जिले की जबलपुर
एवं पाटन तहसीलों का दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी
बाग ; होशंगाबाद जिले की होशंगाबाद
और सोहागपुर तहसीलें, रायसेन
जिले की उदयपुर, सिलवानी, गैरतगंज,
बेगमगंज, बरेली तहसीलें एवं रायसेन,
गौहरगंज तरसीलों का पूर्वी भाग
; गुना जिले की कुरवई तससील और
विदिशा, बासौदा, सिरोंज तहसीलों
के पूर्वी-भाग ; गुना जिले की अशोकनगर
(पिछोर) और मुंगावली तहसीलें और
ग्वालियर गिर्द का उत्तर-पूर्वी भाग ;
किंभड जिले का लहर तहसील का दक्षिणी
भाग । उपर्युक्त भूभाग के अतिरिक्त उसके चारों ओर की पेटी मिश्रित भाषा और संस्कृति की है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी ये सीमायें न्यायसंगत हैं। डॉ० वीरेन्द्र वर्मा ने "हिन्दी भाषा का इतिहास' नामक ग्रंथ में लिखा है - ""बुन्देली बुंदेलखंड की उपभाषा है। शुद्ध रुप में यह झांसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, सागर, नरसिंहपुर, सिवनी तथा होशंगाबाद में बोली जाती है। इसके कई मिश्रित रुप दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट तथा छिंदवाड़ा के कुछ भागों में पाये जाते हैं ।'' उत्तर समथल भूमि, गंग जमुना सु------ है प्राची दैस कैमूर, सोन कोसी सुलसति हैं। दक्खिन रेवा, विंध्याचल तनशीतल करनी है। पश्चिम में चम्बल, चंचल सोहति मन हरनी, तिनमीहा राजे गिरि, वन सरिता सहित मनोहर । कीर्तिस्थल बुंदेलन को बुंदेलखंड वर । इसी
प्रकार एक अन्य कवि ने अपनी कविता में
बुंदेलखंड का परिचय दिया है- ""खुजराहो, देवगढ़ का दुनिया भर में बखान । पत्थर की मूर्तियों को मानो निल गए प्रान।। चन्देरी, ग्वालियर की ऐतिहासिक कीर्ति-छटा। तीर्थ अमरकंटक, चित्रकूट, बालाजी महान।। सोनागिरि, पावा गिरि, पपौरा के धर्म-स्थल। अपने धर्म-संस्कृति पर हमको भारी घमंड।। जय
जय भारत अखंड जय बुंदेलखंड ।।'' विंध्य
पर्वत श्रेणियों के चतुर्दिक विभिन्न सरिताओं
के आवेष्टित बुंदेलखंड की प्रकृति भी
अत्यन्त स्मरणीय है। भारतवर्ष के ठीक
मध्य में यह क्षेत्र चार प्रमुख नदियों
के आयात में आबाद है। ये चारों सरिताएं
यमुना, नर्मदा, चंबल और बेतवा
भी मानी जाती हैं पर अक्षांशों में
२३ ० , ४५ ० , और ५० ० उत्तरीय तथा
७७ ० , ५२ ० , और ८२ ० पूर्वी भू
रेखाओं के मध्य यमुना, टोंस, नर्मदा
और कालीसिंधु को भी परि----- किया
जाता है। कर्क रेखा बुंदेलखंड के दक्षिण
में पड़ती है अत: वह सभी तोष्ण कटिबन्ध
के गर्भ में पड़ता है। बुंदेलखंड का
प्रमुख पर्वत विंध्याचल पुराणों में
भी अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है।
समस्त प्रदेश में पर्वत श्रेणियाँ दृश्यमान
है। ये प्रकार की मानी जाती हैं - १. दक्षिण में विंध्याचल श्रेणी पश्चिम से पूर्व तक फैली है। इसकी चौड़ाई १२ मील और समुद्र सतह से ऊँचाई दो हजार फीट या इससे अधिक है । २. पन्ना श्रेणी ३. माडर का पहाड़ ४.
कैमूर श्रेणी - इसकी चौड़ाई १०
से ३० मील तक तथा समुद्र सतह से ऊँचाई
एक हज़ार फीट से तीन हज़ार फीट तक
है। बुंदेलखंड की पर्वतीय सीमाओं
में उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में
सतपुड़ा पर्वत को भी माना जाता
है। बुंदेलखंड के एक नाग "दशार्ण' के आधार पर स्पष्ट है कि "ॠण शब्द दुर्ग भूमि जले च इति यादव' के समान्तर दशार्णों देश: नदी च दशार्णो की उक्ति कें कात्यायान वस्तुत: पश्चिम के दशार्ण की चर्चा कर रहा था । कालिदास ने मेघदूत में दशार्ण संबन्धी दो श्लोक लिखे हैं जो बुंदेलखडं की प्रकृति का परिचय देते हैं - पाण्डुच्छायोपवन वृत्तय: केतकै सूचि भिन्नै - नीडारम्र्गुह बलि भुजा माकुल ग्राम चैत्या त्वय्था सन्नै परिणत कल श्याम जम्बू वनान्ता संपत्स्यन्ते कतिपय दिन स्थायि हंसा दशार्णा तेषां दिक्षु प्रथित विदिशा लक्षणां राजधानी, गत्वा सद्य: फलम विकलं कामुकत्वस्य लब्धा तीरोपान्तस्तनित सुभगं पास्यसि स्वदयास्मात् सुभभंग मुखमिवे पयोवेत्रक्त्याशच लोमि ।
|
:: अनुक्रम :: |
© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र
Content prepared by Mr. Ajay Kumar
All rights reserved. No part of this text may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopy, recording or by any information storage and retrieval system, without prior permission in writing.