बुंदेलखंड संस्कृति

बुन्देलखण्ड का मूर्ति शिल्प

मूर्ति शिल्प के क्षेत्र में बुन्देलखण्ड का महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्तयुगीन मूर्तियां सीमित मात्रा में प्राप्त हैं। इस युग की मूर्तियों में प्राचीनतम् रामकथा के दृश्य तथा शिवगणों की सुन्दर मूर्तियों नचना कुठार --पन्ना-- में प्राप्त हुई हैं। विष्णु, नृवाराह तथा पशुवाराह की गुप्तयुगीन मूर्तिया ऐरण में मिली हैं। देवगढ़ से शेषशायी विष्णु, नर-नारायण, गजेन्द्र मोक्ष तथा राम और रामायण कथाओं के गुप्त युगीन सुन्दर अंकन मिले हैं। इन मूर्तियों में संतुलित शरीर सौष्ठव, सुन्दर केश विन्यास, झीनें वस्र सूक्ष्म अलंकरण तथा गतिशीलता के दर्शन होते हैं।

प्रतिहार कालीन मूर्तियां बुन्देलखण्ड में प्राप्त हैं। इन मूर्तियों का शरीर सोष्ठव संतुलित है तथा अलंकरण का प्रयोग कम है। बरुवासागर के जरायमठ के प्रवेश द्वार तथा बाह्य दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियां, देवगढ़ तथा सिरोनखुर्द से प्राप्त मूत्रियों में अंग-प्रत्यंगों का सुचारु प्रदर्शन तथा भावों की अभिव्यक्ति दर्शनीय है।

बुन्देलखण्ड में प्राप्त अधिकांश मध्यकालीन मूर्तियाँ शिला-पटों पर उकेर कर बनाई गयी है। गोलाई में उकेरी मूर्तियां कम हैं। प्रमुख मूर्ति के दोनों ओर के किनारे शार्दूल, मकर आदि से सुसज्जित हैं। इनके प्रभा मण्डल विविध प्रकार के हैं। दोनों ओर विद्याधरों को प्रदर्शित किया गया है। देवों की प्रतिमाएं अलंकृत, रिथिकाओं के अन्तर्गत प्रदर्शित हैं।

बुन्देलखण्ड में ब्राह्मण धर्म की मूर्तियां सबसे अधिक प्राप्त हैं। जैन धर्म की मूर्तियां पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुई हैं। बौद्ध धर्म की मूर्तियां कम हैं। आसन, स्थानक तथा शयन तीनों प्रकार की विष्णु मूर्तियां बुन्देलखण्ड में मिली हैं। आसन मूर्तियों में गरुड़ासन, लक्ष्मीनारायण तथा गरुड़ारुढ़ विष्णु की मूर्तियां प्रमुख है। योगासीन विष्णु की मूर्तियां भी प्राप्त हैं। विष्णु की स्थानिक मूर्तियां या तो एकाकी हैं अथवा देव परिवार के साथ। शेषशायी विष्णु की सुन्दर मूर्तियां देवगढ़ तथा बांनपुर में प्राप्त हैं। देवगढ़ में विष्णु के दशावतार तथा वाराह मन्दिर थे। सिरोनखुर्द में वामनावतार की अनेक मूर्तियां मिली हैं। एरन में नृवाराह तथा पशुवाराह की मूर्तियां प्राप्त हैं। पशुवाराह की मूर्तियां झांसी चांदपुर तथा खजुराहों में मिली हैं। चांदपुर की एक मूर्ति में नृसिंह को हिरण्यकश्यप से युद्ध करते दिखाया गया है। वामन अवतार की दो मूर्तियां प्राप्त हैं जो शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण किये हुए हैं, दूसरी मूर्ति छत्रधारी हैं। त्रिविक्रम की मूर्ति भी बुन्देलखण्ड में प्राप्त हैं। राम की स्वतंत्र मूर्तियां बुन्देलखण्ड में प्राप्त हैं। राम और कृष्ण की लीलाओं से अंकित शिलाप अनेक स्थानों में मिलते हैं इनमें नचना तथा देवगढ़ प्रमुख है। देवगढ़ के दशावतार मन्दिर से विष्णु तथा नर नारायण रुप का सुन्दर अंकन मिला है। सिरोनखुर्द के मन्दिर में हनुमान की प्रतिमा प्राप्त हुई हैं। इसमें हनुमान का मुख विस्फरित है। वे वितर्क मुद्रा में दिखाए गये हैं।

शिवमूर्तियाँ

बुन्देलखण्ड में शिव की मूर्तियां बहुत अधिक मात्रा में मिली हुई हैं। इनमें सामान्य शिव लिंग, मुख लिंग, तथा सहस्त्र लिंग प्राप्त हुए हैं। कालीं की अनेक मूर्तियों में शैव धर्म प्रकट हुआ है। शिव की सौम्य तथा रौद्र दोनों प्रकार की मूर्तियां बुन्देलखण्ड में प्राप्त हैं। चांदपुर में नटराज प्रतिमा अद्वितीय है। चन्देलकालीन मूर्तिकारों ने रावणानुग्रह मूर्ति को प्रभावोत्पादक शैली में रुपायित किया है। शिव-पार्वती की वैवाहित मूर्ति का भी इस क्षेत्र में रुपांकन हुआ है। शिव की गजासुरवध मूर्ति, भैरव तथा नन्दिकेश्वर की प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं। बुन्देलखण्ड में गणेश का अंकन गुप्तकाल से प्रारम्भ हो गया था। देवगढ़ के दशावतार मन्दिर में गणेश की मूर्तियां उकीर्ण हैं। नृत्य गणेश की अनेक प्रतिमाएं बुन्देलखण्ड के संग्रहालयों में हैं। चतुर्भुज गणेश की मूर्ति झांसी संग्रहालय में है। कतिपय मूर्तियों में गणेश को विध्नेश्वरी के साथ आलिंगन मुद्रा में दिखाया गया है।

बुन्देलखण्ड में देवियों की अनेक मूर्तियां मिली हैं। यहां अनेक सप्तमातृका प प्राप्त हुए हैं। ब्रह्माणी, वष्णवी, वाराही, चामुण्डा, वैनायिकी, नरसिंही की स्वतन्त्र मूर्तियां भी प्राप्त हैं। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, पार्वती, गंगा तथा यमुना की मूर्तियां मिली हैं। सिरोनखुर्द में लक्ष्मी की एक स्थानक प्रतिमा प्राप्त है जिसमें अपने दो हाथों में कमल लिए हुए हैं और कमल पर खड़ी हैं। दूधई चांदपुर तथा खजुराहो में सरस्वती की प्रतिमाएं प्राप्त हैं। प्रतिहारयुगीन महिषमर्दिन की अनेक प्रतिमाएं जरायमठ बरुवासागर में है। उत्तर गुप्तयुगीन दुर्गा की एक मूर्ति देवगढ़ की सिद्ध घाटी में विद्यमान है। तपस्वनी पार्वती की अनेक मूर्तियां बुन्देलखण्ड में मिली हैं। आधे पशु और आधी स्रियों की देवी प्रतिमाएं लोखरी --बांदा-- में सैकड़ों की संख्या पर प्राप्त है जो कला की अद्भुत प्रतीक हैं।

सूर्य की पूजा बुन्देलखण्ड में प्रचलित थी। सूर्य की अनेक स्थानक तथा आसन प्रतिमाएं इस क्षेत्र में मिली हैं। खजुराहो, उमरी, मड़खेरा, रहलिया तथा रहली में सूर्य मन्दिर स्थित हैं। सूर्य के अनुचर पिंगल तथा दण्डी के स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं। एक मूर्ति में सूर्य पुत्र रेवन्त को पिंगल के साथ अवश्वारुढ़ दिखाया गया है। ब्रह्मा की अनेक मूर्तियां एकाकी शक्ति के साथ आलिंगन मुद्रा में प्राप्त हैं। खजुराहो में ब्रह्मा की अनेक मूर्तियां हैं इस क्षेत्र में नवग्रह के प प्रतिहार कालीन तथा मध्य कालीन हैं। अष्टदिक्पालों की अनेक मूर्तियां मन्दिर के जंघा भाग में अंकित हैं कार्तिकेय की मूर्तियां भी मिली हैं। इनमें इन्हें त्रिमुख दिखाया गया है। सामूहित देवांकन में पंचगणेश तथा द्वादशादित्य उल्लेखनीय है। कतिपय मूर्तियां मातृ तथा शिशु की भी प्राप्त हैं। बुन्देलखण्ड में समन्वयात्मक प्रतिमाएं भी प्राप्त हैं। हरिहर, अर्द्धनारीश्वर, हरिहर पितामह, हरिहर हिरण्यगर्भ सूर्य की प्रतिमाएं खजुराहों तथा अन्य स्थानों पर प्राप्त हैं।

बुन्देलखण्ड में जैन धर्म का काफी प्रसार हुआ है। दूधई चांदपुर, सिरोनखुर्द, बानपुर, मदनपुर, पावागिरि तथा खजुराहों में आसन तथा स्थानिक तीर्थकंर प्रतिमाएं प्राप्त हैं। कतिपय मूर्तियों में चमकदार ओष भी है। ॠषभनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर की मूर्तियों के अतिरिक्त अम्बिका तथा चक्रेश्वरी की प्रतिमाएं अधिक मिली है। देवगढ़ में बाहुबली की प्रतिमाएं मिली हैं। दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय प्रभावशाली रहे। लक्ष्मी तथा सरस्वती की प्रतिमाएं जैन धर्म में सम्मिलित कर ली गयी थीं। महोबा में सिंहनाद अवलोकितेश्वर, पद्मपाणि अवलोकितेश्वर तथा देवी तारा की प्रतिमाएं मिली हैं। खजुराहो में बुद्ध प्रतिमाएं प्राप्त हुए हैं जो कमल पर पद्मासन में स्पर्श मुद्रा में विराजमान हैं।

खजुराहों की शार्दूल तथा व्याल मूर्तियां उल्लेखनीय हैं। नृत्य, संगीत, कामकला तथा लोकजीवन के अनेक दृश्यों का बुन्देलखण्ड की मूर्तिकला का रुपांकन हुआ है। कार्यरत शिल्पियों का सुन्दर अंकन एक शिलाप पर प्राप्त हुआ है। मिथुन तथा दम्पति आकृतियां सुर-सुन्दरी की अनेकानेक प्रतिमाएं, सती स्तम्भ आदि भी मिले हैं। बुन्देलखण्ड मूर्तिकला रुपांकन में अनन्यतम स्थान प्राप्त किये हुए हैं। जराय मन्दिर बरुवा सागर की पट्टिका में एक नायिका अपने केशों को निचोड़ रही हैं और उससे गिरती हुई मोती जैसी बूंदों को हंस मुक्ता समझकर पान कर रहा है। इस अंकन की यहां कई बार पुनरावृत्ति की गयी है। पंख फैलाकर नृत्य करते हुए मयूर से बना कला अभिनय विशेष रुप से दृष्टव्य है। 

 

बुन्देलखण्ड की चित्रकला

 

चित्रकला के क्षेत्र में बुन्देलखण्ड का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रागैतिहासिक चित्र केन, बेतवा, बागें आदि नदियों के तट के अतिरिक्त पर्वतीय उपत्यकाओं में भारी संख्या में प्राप्त हैं। पुरातात्विक उत्खननों में मृत्पात्रों पर विभिन्न आकृतियों का चित्रण प्राप्त है। भित्ति और कागज पर भी चित्र अंकित किए जाते थे। यहां की चित्रकला पर बूंदी कोटा --राजस्थान-- चित्रशैली का प्रभाव है। इसका कारण यह है कि बुन्देल राजाओं का राजस्थानी राजपरिवारों से सम्बद्ध रहा है तथा कदाचित राजस्थान के कतिपय चित्रकार यहां आये हों। बुन्देलखण्ड में महाकवि केशवदास की रसिकप्रिया, कविप्रिया तथा मतिराम के रसराज का चित्रांकण हुआ है। बुन्देलखण्ड की चित्रकला पर मालवा का भी प्रभाव है।

 

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Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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