बुंदेलखंड संस्कृति |
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रस |
वीर रस
जोगीदास द्वारा दलपति रायसा' में रासो काव्यों की प्रवृत्ति के अनुरुप वीर रस को प्रधानता दी गई है। वीर रस के अन्तर्गत युद्ध वीर एवं दानवीर के उदाहरण इस रायसे में पाये जाते हैं। युद्ध वीर एवं दानवीर का एक-एक उदाहरण निम्नलिखित है- युद्ध वीर
उपर्युक्त छन्द में वीरों में युद्ध के लिए उत्तेजक शब्दाकं के द्वारा युद्ध करने की प्रेरणा का संचार किया जा रहा है। उन्हें चुनौती देकर उत्साहित किया जा रहा है, कि यह तो युद्ध क्षेत्र में प्रलय मचा दो अथवा सारे हथियार यहीं डाल कर स्री का वेष धारण कर अपने घर जाओ।
उपर्युक्त छन्द में गंगाराम नाम के एक वीर सरदार के युद्ध का वीर रस पूर्ण तड़क-भड़क से युक्त शब्दावली में वर्णन किया गया है। दानवीर निम्निलिखित एक कवित्त में राजा दलपति राव को दानवीरता का चित्रण किया गया है। उनके द्वारा ब्राह्मणों, भाटों को दिये गये दान का अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दावली में वर्णन किया गया है-
शृंगार रस-
रौद्र रस- प्रस्तुत रसो गनथ में रौद्र रस के यत्र तत्र उदाहरण प्राप्त हो जाते हैं। वीर रस के पश्चात वीर काव्यों में इस रस का प्रमुख स्थान है। एक छन्द में महाराजा दलपति राव द्वारा आजम शाह से कही गई दपं पूर्ण उक्तियों का सुन्दर चित्रण देखिए-
भयानक-
वीभत्स- युद्ध क्षेत्र मं वीभत्स रस के वर्णन इस रायसे में बहुलता से पाये जाते है। वीरों के सिर, हाथ, पैर कटने, चील, गिद्ध, काली भूत प्रेतत, योगिनी आदि की जमातों का वीभत्स वर्णन इन स्थलों पर किया गया है। एक चित्र देखिये-
करहिया कौ रायसौ- गुलाब कवि की यह कृति रस परिपाक की दृष्टि से समृद्ध नहीं है। इसमें थोड़े से रसो का चित्रण किया गय है। वीर एवं वीभतस के अतिरिक्त अन्य रसों के दर्शन नहीं होते। वीर रस के अनेक उदाहरण इस ग्रन्थ में मिल जाते है। एक छन्द में तो वीर रस के तीन भेदों का एकत्र वर्णन किया गया है। छन्द निम्न प्रकार है-
वीर रस का एक दूसरा उदाहरण नीचे दिया जा रहा है, जिसमें कवि ने अपने आश्रयदाता का सुयश वर्णन अतयन्त ओजपूर्ण शब्दों में किया है-
निम्नलिखित एक ओर छन्द में युद्ध में जाट सरदार जवाहरसिंह एवं पंचमसिंह के मध्य हुए युद्ध में वीर रस की झांकी देखिये-
वीभत्स- इस रस के भी कुछ उदाहरण करहिया कौ रायसौ में उपलब्ध हो जाते हैं।
इस प्रकार करहिया कौ रायसौ में रस चित्रण की न्यूनता है। इसका कारण ग्रन्थ का लघु आकार एवं केवल वीर रस का ही प्रमुखता देना हो सकता है। शत्रुजीत रासो- शत्रुजीत रासो में प्रमुख रुप से वीर रस का चित्रण किया गया है। रौद्र, भयानक और वीभतस का भी युद्ध की घटनाओं में यथा स्थान वर्णन किया गया है। पूर्ण रुपेण वीर काव्य होने की दृष्टि से शत्रुजीत रासों में शृंगार को स्थान नहीं मिल सका। सेना, राजा, सरदारों आदि की सज्जा का कहीं कहीं शृंगार पूर्ण वर्णन अवश्य पाया जाताहै। परन्तु इस सब से शृंगार रस की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है।
शृंगार रस - शत्रुजीत रासौ में कवि ने कुछ गीतिका छन्दों में युद्धक्षेत्र में स्थित महाराज शत्रुजीत सिंह की सजावट शृंगार वर्णन किया है-
भयानक- निम्नलिखित एक छप्पय में शिव के भयानक रुप का चित्रण किया गया है-
वीभत्स- शत्रुजीत रासों में अनेक किरवांन छन्दों में वीभत्स वर्णन पाये जाते हैं। निम्नलिखित छन्द में युद्ध के क्षेत्र में बहती हुई नदी, बालों की लटों सहित तैरते कटे हुए मुंड, योगिनियों आदि का चित्रण किया गया है-
रौद्र रस- महाराज शत्रुजीत और सिंधिया की सेना के सेनानायक पौरु के सम्मुख युद्ध में रौद्र रस का परिपाक निम्न प्रकार है-
श्रीधर ने पारीछत रायसे में न्यूनाधिक रुप में सभी रासों का चित्रण किया है, परन्तु प्रधानता वीर रस की ही है। वीर के अतिरिक्त शृंगार का प्रयोग केवल सेना, घोड़े आदि की सजावट के लिए किया गया है। रौद्र, भयानक वीभतस तथा भक्ति आदि रसों का भी यथा स्थान चित्रण मिलता है। करुण हास्य, वात्सलय रसों का पूर्णतः अभाव है। आगे प्रत्येक रस के उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं- रासो में प्रमुख रुप से युद्ध वीर का ही रुप प्रस्तुत किया गया है। दानवीर का चित्रण अतयल्प मात्रा में है। निम्नलिखित एक दोह छन्द में महाराजा पारीछत की वीरत्व व्यंजक मुद्रा का चित्रण देखिए-
एक अन्य उदाहरण में चरों के द्वारा तरीचर ग्राम के जलाए जाने का समाचार तथा विपक्षियों के द्वारा दतिया नरेश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की खबर पाकर, कन्हरगढ़ वर्तमान सेंवढ़ा में स्थित दीमान अमानसिंह की आँखों में रोष झलकने लगता है और भुजायें फड़क उठती हैं। छन्द इस प्रकार है-
महाराज पारीछत चतुरंगिणी सेना सजाकर युद्ध के लिए तैयार हुए, तो उनकी विशाल सेना के कारण पृथ्वी काँपने लगी, पर्वत डोलने लगे, दिग्गज चिघाड़ने लगे और आतंक का शोर लंका तक हो गया। निम्नांकित छन्द में वीर रस का यह उदाहरण देखिए-
शृंगार रस निम्नांकित छन्द में महाराज पार्रीदत के घोड़ों का सौन्दयर्पूर्ण चित्रण किया गया है-
वीभत्स युद्ध क्षेत्र में भयंकर मारकाट के समय योगिनी, कालिका, काक, गिद्ध, श्रोणित की कीच, रुण्ड-मुण्ड, आंतो के जाल , भूत-प्रेत, पिशाच आदि का जुगुप्सा उत्पन्न करने वाला वर्णन इसके अन्तर्गत आता है। पारीछत रायसे में ऐसे चित्र एकाधिक स्थलों पर उपस्थित हुए हैं। एक छन्द इस प्रकार है-
रौद्र रस रोद्र रस युद्ध क्षेत्र में सरदारों और वीरों की दर्पोक्तियों में व्यक्त होता है। निम्नांकित छन्द में "सिकदार' की उक्ति में रौद्र का स्वरुप देखा जा सकता है।
भयानक पारीछत रायसे में भयानक रस के भी कुछ उदाहरण उपलब्ध हो जाते हैं। दिमान अमान सिंह की सेना के आतंक से
भक्ति रस पारीछत रायसा में "ब्रह्म बाला जी' की भक्तिपूर्ण स्तुति में भक्ति रस की सृष्टि हुई है। उदाहरण निम्न प्रकार है-
"बाघाअ रायसा' में प्रधान आनन्द सिंह कुड़रा ने रस परिपाक के सम्बन्ध में पूर्ण दिखलाई है। इस रायसे में किसी भी रस की निष्पत्ति नहीं होन पाई। वीर रस का काव्य होते हुए भी सम्पूर्ण रासो ग्रन्थ में वीर रास के उदाहरणों का प्रायः अभाव है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इस रचना में घटनाओं का संयोजन कवि ने बड़ी शीघ्रता से किया है तथा वण्रन संक्षिप्तता के कारण भी कवि को रस आदि की सृष्टि का अवसर नहीं मिल पाया होगा।
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Content prepared by Mr. Ajay Kumar
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