बुंदेलखंड संस्कृति |
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झाँसी की रायसौ |
रस "झाँसी कौ राइसौ' में रस चित्रण अल्प मात्रा में किया गया है। केवल तीन उदाहरण वीर रस के तथा दो-दो वीभत्स औ करुण रस के हैं। यहाँ इन रसों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं- वीर रस
उपर्युक्त उदाहरण में दो सेना नायको पलेरावार तथा मनपुरा के मधुकर के द्वन्द्व युद्ध वीरत्व व्यंजक वर्णन किया गया है। वीर रस वर्णन के लिए कवि ने कवित्त, छप्पडय तथा कृपाण आदि छन्दों का प्रयोग किया है। वीभत्स रस
वीभत्स रस चित्रण भी अधूरा सा ही है। पूर्ण रुपेण रस सृष्टि कवि ने उपस्थिति कर नहीं पाई है। करुण रस
तथा - करुण रस के उपर्युक्त उदाहरणों में टेहरी ओरछा राज्य के मुख्त्यार नत्थे खाँ की झाँसी में भयंकर पराजय के पश्चात् कीमनोदशा का करुण चित्रण करने का प्रयास किया गया है। वर्णनों से यह स्पष्ट होता है कि इस ग्रन्थ में रस चित्रण साधारण कोटि का ही है। "मदनेश' कृत लक्ष्मीबाई रासो में प्रसंगानुकूल कथावस्तु को रस मय बनाने के लिए शृंगारपूर्ण स्थलों की सृष्टि के द्वारा वीर के विरोधी रस शृंगार #ो भी उपयुक्त स्थान दिया है। इसके साथ ही युद्ध के मैदान में रौद्र, भसयानक और वीभत्स रस का भी अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया गया है। कहीं-कहीं हास्य एवं अद्भूत रस के भी दर्शन होते हैं। लक्ष्मीबाई रासो में युद्ध के अनेक स्थलों पर कवि ने वीर रस के समायोजन में सफलता प्राप्त की है। मारकाट,ख् पैंतरे, हथियारों, घोड़ों सरदारों की उक्तियों, युद्ध संचालन आदि स्थितियों के अनेक उदाहरण इस ग्रन्थ में उपलब्ध होते हैं। ""कंपत पफरैं कायर सपूत सतरात फिरैं, उपर्युक्त छन्द में महारानी लक्ष्मीबाई के तोपची दोस्तखाँ के द्वारा चलाई गई "मानी' नामक तोप के द्वारा नत्थे खाँ की नामी तोप "मुलक मैदान' का पिदान अर्थात तोप का ऊपरी भाग फाड़ डालने का ओजस्वी वर्णन किया गया है। यही नहीं, झाँसी की निम्नमानी जाने वाली जातियों के लोगों के द्वारा दिखलाई गई वीरता का वर्णन भी कवि ने बड़े ओजपूर्ण शब्दों में किया है- यथा-
स्पष्ट है कि रासो ग्रन्थ में कवि ने वीर रस वर्णन में कुशलता का परिचयत दिया है। वीर रस प्रधान ग्रन्थ होते हुए भी लक्ष्मीबाई रासो में कुछ स्थलों पर शृंगार रस का परम्परायुक्त वर्णन किया है। सावन के भुजरियों के त्योहारके अवसर पर झांसी की युवतियों का नखसिख सौन्दर्य वर्णन, नत्थे खाँ के पंचों के पहुंचने पर झाँसी रंगमहल की सजावट, आदि का शृंगारपूर्ण वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त युद्धस्थल में वीरों की सजावट, हाथी व घोड़ों व की सजावट का वर्णन, युद्ध वेष धारण करते हुए महारानी लक्ष्मीबाई का भी शृंगारयुक्त वर्णन है। एक दो उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किए जाते हें-
उपर्युक्त छन्दों के नारी र्सौन्दर्य वर्णन में कवि ने आभूषणों की गिनती गिनाकर रस चित्रण में किंचित अस्वाभाविकता उत्पन्न कर दी है। इसी प्रकार सरदारों, सिपाहियों, हाथी, घोड़ों की सजावट के वर्णनों में भी आभूषणों की सूचियाँ गिनाई गई हैं। करुण नत्थे खाँ की हार का समाचार सुनकर टेहरी वाली रानी लिड़ई सरकार के शोक संतप्त होने तथा झाँसी के वीरों के युद्ध भूमि में मारे जाने का समाचार सुनकर महारानी लक्ष्मीबाई को शोकाकुल स्थिति का वर्णन करने में करुण रस की सृष्टि हुई है। उदाहरण निम्नप्रकार दिए जा रहे हैं।
उपर्युक्त छन्दों
में लिड़ई सरकार की शोकातुर स्थिति का
स्वाभाविक चित्र अंकित करने का प्रयास किया गया है। दु:ख की स्थिति
में मूर्छित होना, ऊध्वर् श्वांस, प्रश्वास खींचना,
वाणी रुंधना, कांपना, आंसू गिरना, प्रलाप आदि करुण
रस को पुष्ट करने वाले अवयव है।
कहना न होगा कि उपर्युक्त छन्द
में कवि ने करुण रस उत्पन्न कर दिया है।
मधुकर की मृत्यु से रानी लक्ष्मीबाई को तो दुख हुआ ही,
वरन् रानी की दशा देखकर उपस्थित वीर
सरदार भी दुखी हो गये। इस कवि ने अपने ग्रन्थ में दो तीन स्थलों पर युद्ध क्षेत्र में वीभत्स वर्णन किये हैं। श्रोणित, कीच, चील, गिद्ध, श्वास, वायस, सियारों आदि का लाशें चींथना, भूत प्रेत, पिशाच पिशाचिनी आदि के समूहों का रक्त पान करके युद्ध क्षेत्र में नाचना, लाशों का ढेर, रक्त की नदी, हाड़ मांसआदि के द्वारा वीभत्स चित्र उपस्थिति किये गये हैं। नीचे एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
रौद्र एवं भयानक-- युद्ध क्षेत्र के वातावरण की विकरालता में इन रसों का प्रसंगवश वर्णन आ गया है। ऐसे स्थल इस ग्रन्थ में अधिक नहीं हैं। परन्तु जितना भी वर्णन किया गया है वह अच्छा ही है। कुछ अमृत ध्वनि छन्दों में भी रौद्र और भ्यानक का चित्रण किया गया है। नीचे उक्त रसो के एक दो उदाहरण दिये जा रहे हैं-
हास्य रस- वीर रस प्रधान रचना होते हुए भी मदनेश जी ने इसमें हास्य रस की योजना की है। नत्थे खाँ की फौज के सिपाहियों का हतोत्साह होकर बीमारी का बहाना करना, खोबा भर गुरधानी बांटना, सिपाहियों का भूखों मरना आदि का हास्य पूर्ण चित्र निम्नांक्ति पंक्तियों में देखा जा सकता है-
छन्द उपलब्ध रासो ग्रन्थों में प्राचीन काव्य परम्परा के अनुसार ही छन्द विधान का स्वरुप पाया जाता है। अधिकांश कवियों के छन्द प्रयोग बहुत कुछ एक जैसे हैं। आलोच्य कवियों के द्वारा प्रयुक्त छन्दों की समीक्षा निम्न प्रकार प्रस्तुत की जा रही है- "चन्द' ने परिमाल रासो में अनेक छन्छों का प्रयोग किया होगा, परन्तु उपलब्ध अंश में ५ प्रकार के छंदों का प्रयोग मिलता है। इन्होंने भुजंगी, भुजंग प्रयात एवं छप्पय का अधिक प्रयोग किया है। इनके अतिरिक्त दोहा तथा अरिल्ल छन्द प्रयुक्त हुए हैं। "दलपति राव रासो' में जोगीदास ने दोहा, कवित्त, छन्द, छप्पय, भुजंगी, सोरठा, पध्धरी, नगरस्वरुपिणी, मोती दाम, नराच, अरिल्ल, अर्धनराच, कंजा, पध्धर रोला, त्रिभंगी, भुजंग प्रयात, किरवांन आदि अठारह प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। कवि ने "छन्द' नाम के छन्द को तीन रुपों में प्रयोग किया है। प्रथम रुप में १२ वर्ण हैं, जो भुजंगी छन्द के अधिक निकट हैं। दूसरे प्रकार में छन्द के प्रत्येक चरण में २० वर्ण एवं तीसरे के छंद में ८, ८ वर्णों की यति से चार चरण हैं। "करहियो कौ राइसौ' में गुलाब कवि ने तेरह प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है, चौपाई, पद्धति, दोहा, अमृतध्वनि, कुंडलियां, छप्पय, भुजंगी, मोतीदाम, मालती, दुर्मिल सवैया, कवित्त तथा हनुफाल आदि। छन्दों के लक्षणों को दृष्टिगत रखकर गुलाब कवि ने छन्द योजना नहीं की जान पड़ती है। अतः अधिकांश छन्द दोष पूर्ण है। प्रायः मोतीदाम, मालती तथा दुर्मिल दोषपूर्ण हैं। शत्रुजीत रासो में मुख्यत-: दोहा, कवित्त, छप्पय, तोटक या तोड़क, हनुफाल भुजंगी, छन्द, भुजंग प्रयात गीतिका, चौपाही, त्रिभंगी, मोती दाम या मोती, माधुरी, पाधरी या पध्धरी तथा किरवांन आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। उपर्युक्त तोटक या तोडद्यक प्राय- त्रोटक का तद्भव रुप है। इसी प्रकार मोतीदाम तथा छन्द भी एक ही हैं। श्रीधर कवि ने भी पारीछत रायसा में तेरह प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है, जो इस प्रकार है- छप्पय, दोहा, सोरठा, छंद, कवित्त, भुजंगी, त्रिभंगी, त्रोटक, मोतीदाम, कुंडरिया, नराच, तोमर तथा क्रवांन। "छन्द नाम के छन्द को कई रुपों में प्रयुक्त किया गया है। "बाघाट रासो" में दोहा, अरिल्ल, कवित्त, कुंडरियां, तथा छंद आदि केवल पांच प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है। छन्द योजना कहीं कहीं सदोष भी है। "झाँसी कौ राइसौ' में कल्याणसिंह कुड़रा ने दोहा, सोरठा, कुंडलिया, कवित्त, छप्पय, कृपाण, सवैया अमृत ध्वनि
तथा छन्द आदि प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। सवैया मालती है, केवल एक स्थान पर इसका प्रयोग किया गया है। कवित्त छंद में १६-१५ की यति पर कुल ३१ वर्ण हाते हैं, परन्तु कल्याणसिंह ने जिस छन्द को केवल छन्द नाम से प्रयोग किया है उसे पांच प्रकार के छन्दों में विभक्त किया जा सकता है। यह छंद भुजंगी, मोतीदाम, हनुफाल, त्रोटक एवं माधुरी है। अमृत ध्वनि नाम के छन्द में एक दोहा और एक रोला होता है, परन्तु प्रधान कल्याण सिंह ने केवल रोला ही प्रयुक्त किया है।
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:: अनुक्रम :: |
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Content prepared by Mr. Ajay Kumar
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