बुंदेलखंड संस्कृति |
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खजुराहो- संक्षिप्त इतिहास |
प्राचीन शिलालेखों से प्राप्त सुत्रों के आधार से यह ज्ञात होता है कि सन् ८०० के लगभग चंदेल राज्य की स्थापना हुई और यह राज्य काल लगभग सन् १५२० तक रहा। चंदेल वंश की स्थापना नन्नुक ने डाली और आगे चलकर इस वंश में एक- से- एक प्रतापी व शक्तिशाली राजा हुए। उनमें जयशक्ति, हर्ष, यशोवर्मन, धंग, गंइ तथा विद्याधर के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके समय में खजुराहो की विशेष उन्नति हुई। हर्षवर्धन चंदेल वंश का सबसे प्रतापी राजा था। वह इस वंश का छठा राजा था। इसने चंदेल राज्य को कन्नौज के प्रतिहारों की पराधीनता से छुड़ाकर स्वतंत्र घोषित किया। इनके और इनके पुत्र यशोवर्मन के काल (१० वीं सदी के शुरुआती दशक में) परिस्थितियाँ अनुकूल थी। समकालीन प्रतिहार राजा के दक्कन के राष्ट्रकूट राजा इंद्र।।। (सन् ९१७) के द्वारा पराजय के कारण चंदेलों की उदय एक शक्तिशाली राज्य के रुप में हो चुकी थी। यशोवर्मन (लक्ष्मणवर्मन) की महत्वाकांक्षी विजय कृत्यों ने उनकी शक्ति में दृढ़ता प्रदान की। यशोवर्मन ने ही कालं की पहाड़ियों पर विजय प्राप्त की तथा सुप्रसिद्ध वैष्णव मंदिर का निर्माण करवाया। यशोवर्मन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र धंगा (सन् ९५०- १००२) बना। समकालीन अभिलेखों के अनुसार उसने कई लड़ाईयाँ लड़ी तथा कन्नौल के राज्य को परास्त कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। यह वही सुप्रख्यात धंग था, जिसने गजनी के सुल्तान सुबुक्तगीन का मुकाबला करने को पंजाब के राजा जयपाल को सहायता दी थी। इसने गुर्जर- प्रतिहारों से अपने राज्य को पूर्णरुप से स्वतंत्र कर लिया । यह सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहा। विश्वनाथ मंदिर तथा कई अन्य मंदिरों का निर्माण उसी के काल में हुआ। धंगा का पोता विद्याधर अन्य महत्वपूर्ण राजा था। इब्न- ए- अथर ने इसका उल्लेख ""बिंदा'' के रुप में किया है तथा इसे अपने समय के सबसे शक्तिशाली भारतीय शासक बताया है। सन् १०२२ ई. में गजनी के शासक महमूद गजनबी ने कालिं के किले पर कब्जा कर लिया, जो सामरिक दृष्टि से पूरे हिंदुस्तान के लिए महत्वपूर्ण किला था। उसके बाद से ही चंदेलों की शक्ति का ह्रास शुरु हो गया। उनकी शक्ति महोबा, आजमगढ़ तथा कालिं के किले तक ही सीमित रह गई। चंदेलों के बाद का इतिहास खजुराहो से प्रत्यक्ष रुप से नहीं जुड़ा रहा। |
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Content prepared by Mr. Ajay Kumar
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