बुंदेलखंड संस्कृति |
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मंदिरों के नाम |
सौर्य मंदिरों के नाम चित्रगुप्त मंदिर मंदिर के मुखमंडप, महामंडप, अंतराल तथा गर्भगृह सुसज्जित हैं। मंदिर का भीत धारशिला से निर्मित किया गया है तथा उस पर खार- शिलाएँ आरोपित हैं। भीत पर पीठ के खाँचे हैं तथा अंतराल गज, अश्व, नर, देव उपासना एवं मिथुनों से सजाया गया है। मंदिर का अंतरप साधारण तौर पर सजाया गया है। मंदिर के मुखमंडप के ऊपरी एवं बाहरी भाग में रथिकाएँ अंकित की गई हैं। भद्र पर मूर्तियों की दो पंक्तियाँ एवं जंघा पर तीन पंक्तियाँ अंकित है। मंदिर त्रयंग है। इसके मूलमंजरी पर दो उरु: श्रृंग हैं। इनके तल से करणपत श्रृंग अंकित हैं। नीचे के उरु: श्रृंग के दोनों ओर दो श्रृंग हैं, जो प्रतिरथ और करण को घेरे हुए हैं। ये श्रृंग पंचरथ प्रकृति के हैं। करणरथ पर केवल तीन भूमि- आम्लक है। शिखर पर तीन चंद्रिकाएँ हैं। मंदिर के अंतराल में केवल एक रथिका अंकित है, जिसपर चतुर्भुज शिव विराजमान हैं। मंदिर के महामंडप में एक प्रमुख घंटे और तीन कूट घंटे लगाए गए हैं। कूट घंटों के चार- चार पीठे हैं, जिनपर चंद्रिका, आम्लक और कलश आरोहित हैं। महामंडप का सभागृह वर्गाकार है, जिसे अष्टकोणिय बनाया गया है। महामंडप की चतुष्किया सीधी- सादी है। वितान के साथ- साथ अप्सराओं के लिए भी टोड़ा अंकित किया गया है। वितान नाविच्छंद प्रकृति का है, मंदिर के अंदर ब्रह्मा, विष्णु, भैरव, सूर्य, कुबेर तथा अन्य चतुर्भुज की प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं। चित्रगुप्त मंदिर को भरत जी का मंदिर भी कहा जाता है। इसमें विष्णु की एकादशमुखी प्रतिमा अंकित की गई है। जिसमें एक मुखविष्णु का है तथा अन्य दस मुख उनके अवतारों का अंकित किया गया है। मंदिर का द्वार नौ शाखाओं से सजाया गया है। प्रथम शाखा पर साधारण प्रस्तर उत्कीर्ण युक्त है। तीसरी तथा पांचवी शाखा में व्याल उत्कीर्ण किया गया है। चौथी शाखा स्तंभ शाखा है, जिस पर मिथुन उत्कीर्ण है। द्वितीय एवं छठी शाखा पर गज वर्तमान है। सातवीं एवं आठवीं शाखाएँ सामान्य प्रस्तर सज्जा, कमल पत्र तथा नाग मूर्तियों से सजाई गई हैं। नवीं शाखा को गोल पुष्पचक्रों से सजाया गया है। मंदिर के द्वार भाग में विद्याधर, सूर्य, भूत नायक इत्यादि की प्रतिमाएँ भी रथिकाओं पर अंकित की गई है। द्वार शाखा के शुरु में दोनों ओर गंगा- यमुना अंकित हैं। इसकी रथिकाओं पर सेविकाएँ, द्वारपाल तथा चारों वाहक महिलाएँ भी मूतांकित है। ऊपर की रथिका पर शिव- पार्वती की दैविक शांतियुक्त प्रतिमा अद्भूत है। प्रतिमाएँ परंपरागत हैं। दक्षिण- पश्चिम कोने में आज्ञात चतुर्भुज देव, शिव, यम अपने भैंसे के साथ, नॠति की नग्न प्रतिमा वर्तमान हैं। यहाँ की अधिकतर प्रतिमाओं में शिव को सौम्य रुपी दर्शाया गया है। दक्षिणी मुख की मुख्य रथिकाओं पर त्रिमुखी ब्रह्मा चतुर्भुज देव, वृषभ मुखी वसु, चतुर्भुज अग्नि, ब्राह्मण- ब्राह्मणी, शिव- पार्वती, लक्ष्मी नारायण, चतुर्भुज नॠति की प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं। इस तरह मंदिर के इस भाग में चतुर्भुज प्रतिमाओं की अधिकता है। मंदिर के उत्तरी मुख की रथिकाओं पर वायु, वसु, शिव- पार्वती, शिव कल्यान सुंदरमुर्कित्त, कुबेर की खंडित प्रतिमाएँ सजायी गई हैं। यहाँ मूर्तियों को अंकित करने में दोहराया गया है। उत्तरी- पूर्वी मुख के भाग में छः प्रतिमाएँ चतुर्भुज अनाम देवता की बनाई गई है। यहाँ वरुण की एक खंडित मूर्ति भी वर्तमान है। पूर्वी मुख के ऊपर दक्षिण की ओर की एक रथिका में एक विशाल उदर देव ललित प्रतिमा में विराजमान हैं। देवता प्रायः भावहीन हैं। गर्भगृह की प्रमुख प्रतिमा सूर्य की है। भग्नहस्त प्रतिमा किरिट- मुकुट धारण किए हैं। पिंगला प्रतिमा पर सिर को अंकित नहीं किया गया है। गर्भगृह के खाली स्थान को भरने के लिए
उषा और प्रत्युषा आलिंग्णासन में तीर चलाते हुए विराजमान हैं। अन्य धनुषधारी महिलाएँ फलक रुप में हैं। एक रथिका पर योगासन में शिव हैं। इस रथिकाओं को सुंदर बनाने के लिए नारी प्रतिमा, अश्व सिर अश्विनीकुमार द्धय तथा अन्य सेवकों के साथ अंकित किया गया है। |
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Content prepared by Mr. Ajay Kumar
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