बुंदेलखंड संस्कृति |
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खजुराहो की मूर्तिकला |
हिंदू मंदिर वह वास्तुकला अथवा वास्तु रचना है, जिसका बाह्य भाग बहुसंख्यक मूर्तियों से आवेष्टित किया जाता है। यह उक्ति खजुराहो मंदिरों के संबंध में अक्षरशः चरितार्थ होती है। समस्त मंदिर का प्रत्येक भाग विविध मूर्तियों द्वारा अलंकृत है। इसके विपरीत उड़ीसा तथा ओसिया के मंदिरों में मात्र बाह्य भित्ति पर ही प्रतिमाएँ निर्मित हैं। अभ्यन्तर अनिवार्यतः मूर्ति रहित है। खजुराहो में देव प्रतिमाओं के साथ ही, नायिकाओं आखेट दृश्यों एवं काल्पनिक पशु- शार्दूल का अंकन कर के एक सामंजस्य स्थापित किया गया है। मंदिर के प्रत्येक विशिष्ट अंग यथा गर्भगृह, माहमण्डप, मण्डप एवं अर्ध मण्डप देव मूर्तियों द्वारा अलंकृत है। गर्भगृह के द्वार पर अंतरंग, ललाट बिंब, द्वार शंख, अधः भाग, उदुम्बर शिला तथा चंद्र शिला, बाह्य भाग में निर्मित भद्र, कर्ण तथा सप्तरथ मंदिर में प्रतिरथिकाएँ, अंतराल की बाह्य एवं अभ्यंतर रथिकाएँ, महामण्डप की अभ्यंतर एवं बाह्य भाग की भद्र एवं कर्ण रथिकाएँ, तीन अंगों के शिखर में तथा कक्षासनों के ऊर्ध्व भाग पर निर्मित एवं शुकनासक, कर्ण- श्रृंगी की समस्त रथिकाएँ देव प्रतिमाओं द्वारा अलंकृत हैं। महामण्डप के अभ्यंतर में निर्मित स्तंभों की ठोड़ी में नारी मूर्तियों, गणों तथा वाहनों, अनुरथों पर नायिकाओं तथा रथों के मध्यवर्ती स्थानों पर नाग सदृश अर्ध देवी प्रतिमाओं का बाहुल्य है। देवी प्रतिमाएँ शिल्प शास्रों द्वारा निर्दिष्ट दिशा में नियमपूर्वक प्रदर्शित है। कर्ण रथों की उर्ध्व पंक्ति में अष्ट- वसुओं का प्रदर्शन खजुराहों मंदिरों के विशिष्ट लक्षण हैं। समस्त मंदिरों में दिवूपाल दो समूहों में निर्मित है। सांधार मंदिरों में एक समूह अभ्यंतर भाग में तथा द्वितीय बाह्य भित्ति पर उपलब्ध है। निरंधार मंदिरों में यह गर्भगृह एवं महामण्डप की भित्ति पर पृथक- पृथक समूह में स्थित है।
शैव मंदिरों कंदारिया, विश्वनाथ तथा दुलादेव की भद्र, रथिकाओं पर शिव के विभिन्न रुपों का प्रदर्शन हुआ है। यहाँ तीनों मंदिरों की दक्षिणी पश्चिमी एवं उत्तरी भद्र रथिकाओं में क्रमशः अंधकासुर संहार, नटराज एवं त्रिपुरातक वद्य का अंकन हुआ है। अपवाद स्वरुप विश्वनाथ मंदिर के उत्तरी भद्र पर पावर्ती प्रदर्शित है। प्रतिरथों पर शिव की स्थापना मूर्तियों की पुनरावृति हुई है। दुलादेव मंदिर में यह समरसता कतिपय स्थानों पर उमा महेश्वर की आलिंगन प्रतिमा द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया है। वर्तमान समय में देवी की मूर्ति स्थापित करके स्थानीय निवासियों द्वारा "देवी जगदंबी' के रुप में पूजी जाती है। इसी प्रकार पार्वती मंदिर में, मूल विष्णु मूर्ति के स्थान पर गोधासन पार्वती की समभंग मूर्ति स्थापित की गयी है। वामन मंदिर में विष्णु के वामनावतार की अत्यंत सुंदर चतुर्भुज मूर्ति उपलब्ध है। उनके मुख पर बाल सुलभ निर्विकार भाव परिलक्षित होता है। जवारी मंदिर के मुख्य देवता चतुर्भुज विष्णु हैं।
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