बुंदेलखंड संस्कृति

प्रतिमाओं का सांस्कृतिक अध्ययन

खजुराहों की मूर्तियों को तीन प्रमुख समूहों में बाँटा जा सकता है :-

१. मंदिरों के गर्भगृहों तथा भीतरी पूजास्थलों में स्थापित मूर्तियाँ/ प्रतिमाएँ
२. त्रिपक्षीय आयामों से युक्त तथा उभरी आकृति पर तराशी गई प्रतिमाएँ
३. बराबर गहराइयों में तथा जगती अधिष्ठान एवं जंघा पर निर्मित प्रतिमाएँ

या

मंदिर के मंडप तथा अर्धमंडप के छज्जों पर अंकित प्रतिमाएँ

खजुराहो की प्रतिमाओं में ऐसे जीवन के दर्शन होते हैं, जिसमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन का विवरण मिलता है। इनको देखकर ऐसा लगता है कि कलाकारों ने जैसे अपने जीवन को मूर्तिमान कर दिया है। इन्होंने मूर्तियों को अपने मन के अनुसार आकार दिया है तथा देवताओं के ऐसे वस्र, गहने, हथियार और औजार दिये है, जो मानवीय उपयोग के हैं। वस्तुतः तत्कालीन समाज के वस्रों और आभूषणों का अध्ययन करने के लिए खजुराहो की प्रतिमाओं का अध्ययन करना अनिवार्य लगता है। यहाँ की देवी- देवताओं के केश- विन्यास, संगीत, वाद्ययंत्र, युद्ध में काम आये हथियार तथा घरेलू उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी इन प्रतिमाओं के संपर्क में आई है।

खजुराहो की प्रतिमाओं में जीवन के विविध रुपों का चित्रण बड़ी सुंदरता से किया गया है। प्रेम, घृणा, दु:ख, अत्याचार, आदतें, प्रसाधन, मनोरंजन, कामकाज, कला, धर्म, विश्वास इन प्रतिमाओं में इस प्रकार अंकित किये गए हैं कि यह इतिहास का धरोहर बन गए हैं।

 

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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