बुँदेलखण्ड में प्रायः नाप कर गल्ले का लेन- देन किया जाता था। सेर, मन से नहीं तौला जाता था। नाप से ही भाव होता और बिकता था। इसके साथ- साथ तौल का भी व्यवहार होने लगा। शहरों में और बाजारों में गल्ला तौल का ही लेन- देन होने लगा। यहाँ के गाँव वाले नाप का ही प्रयोग किया करते थे।
नाप
नाप के लिए विभिन्न पैमानों का प्रयोग किया जाता था। कुछ का विवरण निम्नलिखित है :-
पाली या पहोली
यह लकड़ी या बाँस की कमटी की गोल बाल्टी सी बनी होती है। इसमें भर कर मापा हुआ अनाज विभिन्न स्थानों में से १४ टकाभर निकलता था।
प्रायः पैमाने लकड़ी या बाँस के बने होते थे। कहीं- कहीं पीतल के भी पैमाने देखने को मिले हैं। इन पैमानों का हिसाब निम्नलिखित हैं :-
१. ४ पोली १ चौरी
२. २ चौरी १ चौथिया
३. २ चौथिया १ अद्धा
४. २ अध्दे १ पैला
५. २ पैला १ पैली
६. २ पैला १ माना
७. ८ माना १ मानी या गौन
कैया
यह मिट्टी की एक डबुलिया किया कुल्हड़ होता है, जिससे दूध, तेल आदि द्रव पदार्थ नापे जाते हैं।
पौसेरिया
मिट्टी का कुल्हड़, जिसमें पाव सेर के लगभग तेल, घी, दूध आदि आता है।
तौल
झांसी का सेर
यह ८९ कलदार मानी ३३ ३/४ टका बाला शाही के बराबर था और उस समय चलता था।
पक्का
या कलेक्टरी सेर
यह ८० कल्दार या ३१ टका बालाशाही भर होता था।
अट्ठाइसा सेर
यह अट्ठाइसा टका बालाशाही, यानी ८२ कल्दार भर होता है। इससे आटा, दाल और चावल तौले जाते हैं।
पच्चीसा सेर
यह पच्चीस टका बालाशाही अथवा ६६११ उ कल्दार भर होता है। इससे घी, महुवा, तंबाकू, नमक, गुड़ आदि तौलते थे।
चौबीसा सेर
यह २४ टका बालाशाही अथवा ६४ कल्दार भर होता है। इससे पच्चीसा के समान वस्तुएँ या केवल घी तौला जाता है।
बीसा सेर
इसको महाराज छत्रसाल ने चलाया था। इससे आटा, दाल आदि तौला जाता था। यह बीस टका बालाशाही के बराबर होता है। वर्तमान काल में भी यह चलता है।
अठरैया सेर
यह १८ टका भर होता था। इससे शक्कर, मेवा, धातु, पीतल आदि को तौला जाता था।
सुरैया सेर
यह सोरा टका भर होता था, इससे मिठाई तौली जाती थी।
तैरेया सेर
यह तेरह टका भर होता था। इससे रुई की पौनी तौली जाती थी।
बरैया
सेर
यह बारह टका सेर भर होता था। इससे रुई तौली जाती थी।
गिरैया सेर
या ११ टका भर होता था। इससे सूत तौला जाता था।
"एक टका' दो पैसे यानी, आधा आने को कहते हैं। बालूशाही में भी दो पैसे को एक टका कहा जाता था।
तौल के लिए केवल बालाशाही दो पैसे का भर एक टका कहलाता था और उसी के हिसाब से यहाँ के विभिन्न सेर चला करते थे। वर्तमान काल में भी सवा सेर और डेढ़ सेर चलाते हैं। आध सेर, पाव भर, छटांक और आधी छटांक आज भी चलाए जाते हैं। भूमि के नाप के लिए प्रायः यहाँ १ बीघे का व्यवहार होता था। देशी बीघा को छत्रसाली कहा जाता था। यह पैमायशी बीघे से प्रायः डेवढ़ा होता है। इसका प्रचलन बुँदेलखण्ड के बुँदेला महाराज छत्रसाल ने चलाया था। राजा छत्रसाल का सारा माली इंतजाम, इसी से चलाया जाता था। इसमें जरीब के स्थान पर डोरी से काम लिया जाता था। डोरी प्रायः १०० हाथ की होती थी।
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