जाति और वर्ग
आश्रम व्यवस्था
मंदिरों में ब्रह्मचर्याश्रम का चित्रण
गृहस्थाश्रम
वानप्रस्थाश्रम
सन्यासाश्रम
खजुराहो की शिल्प संपदा के निर्माण में कलाकारों ने अपनी गहन अनुभूतियों और व्यापक अनुभवों का इस प्रकार प्रयोग किया है कि उनसे तत्कालीन सामाजिक तथा आर्थिक इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
जाति और वर्ग
प्राचीन भारतीय समाज चार वर्णों में विभाजित था। यह विभाजन पहले कर्म पर आधारित था, परंतु कालांतर में जाति प्रथा का इतनी कट्टरता के साथ होने लगा कि यह व्यवस्था वंशानुगत हो गया। इस व्यवस्था के प्रभाव से खजुराहो का समाज अछूता नहीं रहा तथा यहाँ का समाज भी चार वर्णों में बँट गया था। खजुराहों काल में, ब्रह्मणों को समाज में सम्मानपूर्ण स्थिति प्राप्त थी। वे उच्च पदों पर आसीन होते थे। कुछ ब्राह्मण परिवार आनुवांशिकता से महामात्य, पुरोहित, सांधिविविग्रहिक और राज कवियों के पदों पर नियुक्त रहे।
क्षत्रिय जाति योद्धा थी। इनका मुख्य कार्य शत्रुओं से देश की रक्षा करना था।
अन्य वर्ग कायस्थों की थी। ये राजकीय लिपिक बौद्धिक वर्ग के लोग थे। इनको समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त थी। कायस्थों को लेखा- जोखा से संबंधित कार्य दिए जाते थे।
वैश्य लोग व्यापारिक वर्ग के थे। उनका प्रधान कार्य व्यापार तथा उद्योग धंधों की उन्नति करना था। इनके अतिरिक्त निम्न वर्ग था, जिसका चंदेल अभिलेखों में वैश्य और शुद्र शब्द का अभाव है। खजुराहो काल में निम्न वर्ग के लोग अपनी जाति से अधिक, अपने व्यवसायों से जाने जाते थे। इनके नाम इस तरह थे -- हरकरें, गोपाल, आजपाल, मालाकार आदि।
आश्रम व्यवस्था
आश्रम व्यवस्था भारतीय संस्कृति के सामाजिक पक्ष का मूलाधार होने के कारण खजुराहो की विभिन्न प्रतिमाओं में भी दिखाई देता है। यह व्यवस्था खजुराहो में चार चरणों में थी -- ब्रह्मचार्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम। ब्रह्मचर्याश्रम में द्विज वेदों और विविध विद्याओं का अध्ययन करता था। गृहस्थाश्रम में सक्रिय नागरिक के रुप में अपनी गृहस्थी बसाता था। संयमपूर्ण सांसारिक सुख- दुख का भोग करता था। वानप्रस्थाश्रम में त्यागी का जीवन बिताता था। वानप्रगस्थाश्रम का द्विज त्यागी का जीवन व्यतीत करते हुए सन्यासाश्रम में प्रवेश करता था और योगाभ्यास करता हुआ अपना शरीर त्याग देता था।
मंदिरों
में ब्रह्मचर्याश्रम का चित्रण
खजुराहो की कुछ शिल्पाकृतियों में तत्कालीन विद्यालयों के दृश्यों को अंकित किया गया है। एक प्रतिमा में विद्यार्थियों से घिरे आचार्य को बाँए हाथ में काष्ठ- फलक लिये हुए दिखाया गया है। वह इस काष्ठफलक पर कुछ लिखते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रतिमा के पास ही एक अन्य दृश्य में प्रौढ़ व्यक्तियों का एक विद्यालय अंकित किया गया है। इन प्रौढ़ व्यक्तियों के बीच में एक आचार्य विराजमान हैं, जिसके दोनों पार्श्वों? में एक- एक विद्यार्थी आसीन है। विद्यार्थी अपने हाथ में कोष्ठफलक पकड़े, दाएँ हाथ से उस पर कुछ लिखते दिखाई देते हैं। कंदरिया महादेव मंदिर के पिछली भित्ति की रथिका में एक प्रौढ़ व्यक्ति को अध्ययन करते हुए दिखाया गया है। छात्र अपने अलंकृत वेशभूषा तथा आभूषण से किसी संपन्न परिवार का प्रतीत होता है।
गृहस्थाश्रम
ये आश्रम घरेलू जीवन के महत्वपूर्ण पहलूओं पर प्रकाश डालते हैं। खजुराहो मंदिर के अनेक शिल्पों में आराम से बैठे हुए दंपत्ति को वार्तालाप करते हुए अंकित किया गया है। संभवतः ये दंपत्ति परिवारिक समस्याओं का हल ढ़ूंढने का प्रयास कर रहे दिखाई देते हैं। लक्ष्मण मंदिर में एक युगल अंकित किया गया है। पति क्रुद्ध मुद्रा में हैं, जबकि पत्नी उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे
प्रसन्न करने का प्रयास करती दिखाई गई हैं। चित्रगुप्त मंदिर में पत्नी को पति द्वारा फुलों का प्रेमोपहार देते हुए अंकित किया गया है। इसके अतिरिक्त कई दृश्यों में शोकपूर्ण अवसरों पर पति- पत्नी एक दूसरे का दुख बाँटते हुए दिखाए गए हैं। कई पत्नियों को धीरज बँधाते हुए दिखाया गया है। कहीं- कहीं पतियों को आलिंगन करते हुए दर्शाया गया है। एक स्थान पर पति द्वारा हाथ जोड़कर माफी माँगते हुए दिखाया गया है।
कलाकृतियों में पत्नी को ताड़ना देते हुए पति को चित्रित किया गया है। लक्ष्मण मंदिर की प्रतिमा में ऐसे चित्रण दिखाई देते हैं। जब पति अपनी पत्नी को पीट रहा है, तो समीप ही एक दर्शक दुखी मन से पति- पत्नी के झगड़े को देखता हुआ चित्रित किया गया है। अनेक चित्रण में पतियों के कठोर एवं पाशविक आचरण का अंकन देखने को मिलता है, तथापि पत्नियों द्वारा पतियों के प्रति कठोर व्यवहार का एक भी दृश्य अंकित नहीं हैं। इससे प्रकट होता है कि खजुराहो काल में स्रियों की स्वतंत्रता सीमित थी एवं वह पति के संरक्षण की मोहताज थी।
खजुराहो के कुछ शिल्पांकनों से पुरुषों पर स्रियों के प्रभाव का भी चित्रण मिलता है। देवी जगदंबी के एक दृश्य में एक स्री- पुरुष के हाथ पर अपना हाथ रखकर उसे जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से रोकती दिखाई देती है। इसी प्रकार लक्ष्मण मंदिर में एक स्री युद्धक्षेत्र में जाते हुए व्यक्ति को रोकती दिखाई गई है।
समाज में स्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होने के बावजूद दुष्ट और चरित्रहीन व्यक्तियों से उनकी सुरक्षा सदैव पतियों को करनी पड़ती थी। गृहस्थाश्रम में पतियों की देखभाल के साथ- साथ पत्नियों को सुचारु रुप से गृहस्थी चलाना और बच्चों को लालन- पालन भी करनी पड़ता था।
वानप्रस्थाश्रम
इसमें व्यक्ति छाजन की छाया के नीचे आश्रम नहीं लेता है और न हीं कोई परिधान धारण करता है। वह परिधान के लिए वह वृक्ष के छालों का प्रयोग करता है, वह खाने में कंद, मूल तथा फल खाता है।
सन्यासाश्रम
खजुराहो के मंदिरों में सन्यासियों का चित्रण बहुलता से अंकित किया गया है। इस प्रकार की प्रतिमाओं में तपस्वियों को उपदेश देते हुए दार्शनिक गुत्थियाँ सुलझाते हुए भाग्वद चिंतन करते हुए दिखाया गया है। कंदरिया महादेव और देवी जगदेबी मंदिरों में बैठे हुए तपस्वियों का चित्रण मिलता है और उनके सामने बैठे शिष्य समुदाय उनकी अमृतवाणी का पान करते हुए अंकित किया
है।
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