छत्तीसगढ़ |
Chhattisgarh |
|
"छत्तीसगढ़" क्यों? |
छत्तीसगढ़ - नामकरण के बारे में भी बहुत से मत हैं। कुछ अध्येताओं के अनुसार यह क्षेत्र "छत्तीसगढ़" इसलिए कहा गया है क्योंकि रतनपुर राज्य के अन्तर्गत प्रमुख 36 गढ़ थे। (रिकार्ड्स आॅफ़ शिवदत्त शास्री, ए डिसेण्डेण्ट आॅफ़ एन एन्सियेंट ब्राह्मण फ़ैमिली, पृ.34-38 ), इन गढ़ों का उल्लेख रायपुर (पृ.49 ) तथा बिलासपुर (पृ.40 ) के गजेटियरों में है। डॉ. भगवान सिंह वर्मा अपनी पुस्तक "छत्तीसगढ़ का इतिहास" (पृ.8 ) में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहते हैं इस नामकरण के बारे में । उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में "छत्तीस" बहुत अधिक या अतिशयता को समझने के लिए प्रयोग में लाते हैं। बंगाल में भी "छत्तीस" अतिशयता को समझाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसलिए गढ़, भले ही छत्तीस रहे हों, पर गढ़ों के आधार पर ही यह नामकरण हुआ और "छत्तीस" का इस्तेमाल गढ़ों की बहुलता को समझाने के लिए कहा गया है। गढ़ों का निर्माण तो मध्यकालीन राजा करते ही रहते थे क्योंकि सुरक्षा को दृष्टि से गढ़, बहुत ही ज़रुरी माने जाते थे। उस वक्त बन्दूक और कारतूसों का अविष्कार न होने के कारण सभी सामन्त गढ़ का निर्माण करते थे। छत्तीसगढ़ में भी गढ़ों का निर्माण इसलिए किया गया था और ढेर सारे गढ़ों के कारण इस जगह को छत्तीसगढ़ के नाम से जानने लगे लोग। जाफर जी, जो छत्तीसगढ़ के संस्कृति पर सोच विचार किये है - उनका कहना है -
छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति छत्तीसगढ़ का क्षेत्र मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्व में लगभग 170 उत्तर अक्षांश से 240 उत्तर अक्षांश एवं 800 से 840 पूर्व देशांश के बीच स्थित है। छत्तीसगढ़ में सोलह ज़िले हैं :
छत्तीसगढ़ में गांव की संख्या है - 19,720 छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल 53,888 वर्ग मील है और इसमें 20,795,956 लोग निवास करते हैं।छत्तीसगढ़ का भौगोलिक सीमाकंन इस प्रकार है - उत्तर और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का रीबा सम्भाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा, बिहार; दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्र। छत्तीसगढ़ कही ऊँची तो कहीं नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र में बहुत सारे जंगल हैं - जहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा के पेड़ों की अधिकता है। बाँस के जंगल भी बहुत हैं। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ की भूमि बहुत उपजाऊ है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल मैदान निर्मित करती हैं। जो लगभग 80 कि.मी. चौड़ा और 322 कि.मी. लम्बा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदान के बीच में से गुजरती है हमारी महानदी। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर है रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। यह क्षेत्र बहुत ही उपजाऊ है।इस मैदानी क्षेत्र के उत्तर में है मैकल पर्वत, उसकी श्रृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि है ईशान में। पूर्व में है उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ और आग्नेय में है सिहावा के पर्वत श्रृंग। दक्षिण बस्तर में हैं गिरि-मालाएँ। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं :
छत्तीसगढ़ में अनेक नदियाँ हैं। प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ, खारुन, पैरी। महानदी - महानदी सिहावा पर्वत से निकलती है। महानदी उत्तर पूर्व की ओर बहती हुई धमतरी और राजिम होती हुई बलौदा बाजार की उत्तरी सीमा तक पहुँचती है। इसके बाद महानदी अपने धुन में बहती-बहती पूर्व की ओर मुड़कर रायपुर को बिलासपुर जिले से अलग कर देती है।
गर्मियों में महानदी सूख जाती है। पर बारिश होने के बाद उसका रुप बदल जाता है। जुलाई से फरवरी में उसमें नावें भी चलती हैं। पहले तो महानदी और उसकी सहायक नदियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ में पैदा होने वाली वस्तुओं को समुद्र के निकट स्थित बाजारों तक भेजा जाता था। महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं - हसदो, जोंक व शिवनाथ। शिवनाथ - यह नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। दुर्ग जिले को दक्षिण-पश्चिम सीमा से निकलती है शिवनाथ और फिर उत्तर की ओर बहती हुई रायपुर जिले के बलौदा बाजार तहसील के उत्तरी भाग में जाकर महानदी में मिल जाती है। महानदी और शिवनाथ जहाँ मिलती हैं, वह जगह जैसर गाँव के नजदीक है। शिवनाथ नदी के कुछ भागों में सिर्फ वर्षा के समय ही नावें चलती हैं। और कहीं-कहीं कुछ भागों में जुलाई से फरवरी तक नावें चलती हैं। खारुन - शिवनाथ अगर महानदी की प्रमुख सहायक नदी है तो खारुन है शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी। खारुन नदी निकलती है दुर्ग जिले के संजारी से और फिर रायपुर तहसील की सीमा से बहती हुई सोमनाथ के पास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इसी जगह पर यह बेमेनय और बलौदाबाजार तहसील को अलग करती है। बलौदाबाजार के उत्तर में अरपा नदी, जो बिलासपुर जिले से निकलती है, शिवनाथ से आ मिलती है। हावड़ा नागपुर रेल लाइन इस खारुन नदी के ऊपर से गुजरती है। खारुन में एक शान्ति है जो देखने वालों को अपनी ओर खींचती हैं।
छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ की भाषा है छत्तीसगढ़ी। पर क्या छत्तीसगढ़ी पूरे छत्तीसगढ़ में एक ही बोली के रुप में बोली जाती है? हम पूरे छत्तीसगढ़ में बोलीगत विभेद पाते हैं। डॉ. सत्यभामा आडिल अपने "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य" (विकल्प प्रकाशन, रायपुर, 2002 , प-.7 ) में कहते हैं कि यह बोलीगत विभेद दो आधारों - जातिगत एवं भौगोलिक सीमाओं के आधार विवेचित किये जा सकते हैं। इसी आधार पर उन्होंने छत्तीसगढ़ की बोलियों का निर्धारण निश्चयन किया है -
बैगानी - बैगा जाति के लोग बैगानी बोली बोलते हैं। यह बोली कवर्धा, बालाघाट, बिलासपुर, संबलपुर में बोली जाती है। बिंझवारी - बिंझवारी में जो बोली बोलते हैं, वही है बिंझवारी। वीर नारायन सिंह भी बिंझवार के थे। रायपुर, रायगढ़ के कुछ हिस्सो में यह बोली प्रचलित है। कलंगा - कलंगा बोली पर उड़िया का प्रभाव पड़ा है क्योंकि यह बोली उड़ीसा के सीमावर्ती पटना क्षेत्र में बोली जाती है। भूलिया - छत्तीसगढ़ी की भूलिया बोली हमें सोनपुर और पटना के इलाकों में सुनाई देती है। कलंगा और भूलिया - ये दोनों ही उड़िया लिपि में लिखी जाती हैं। बस्तरी या हलबी - ये बोली बस्तर में हलबा जाति के लोग बोलते हैं। इस बोली पर मराठी का प्रभाव पड़ा है। छत्तीसगढ़ी बोली बहुत ही मधुर है। इस बोली में एक अपनापन है जो हम महसूस कर सकते हैं। हिन्दी जानने वालों को छत्तीसगढ़ी बोली समझने में तकलीफ नहीं होती - "उसने कहा" को छत्तीसगढ़ी में कहते हैं "कहीस","मेरा" को कहते हैं "मोर", "हमारा" को "हमार", "तुम्हारा" को "तोर" और बहुवचन में "तुम्हार"।
|
||||||
| विषय सूची | |
Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee
Copyright IGNCA© 2004
सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।