छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


छत्तीसगढ़ का पौराणिक संदर्भ

हरि ठाकुर, अपनी पुरस्तक "छत्तीसगढ़ गाथा" (रुपान्तर लेखमाला -1 , पृ.5 ) में छत्तीसगढ़ के पौराणिक संदर्भ का जिक्र करते हुए कहते हैं कि छत्तीसगढ़ वेदकाल जितना प्राचीन है।

छत्तीसगढ़ पहले "कौसल" के नाम से जाना जाता था, वहाँ के राजा कौसल्य कहलाते थे और राजा कौसल्य की बेटी कौसल्या कहलाई। कौसल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। यह कहानी यहाँ प्रचलित है कि राजा दशरथ ने एक ॠषि को बुलवाया और उनके द्वारा एक यज्ञ करवाया ताकि राजा को बेटा हो। उस ॠषि का नाम श्रृंगी ॠषि था जो सिहावा में एक आश्रम में रहते थे। महारानी कौसल्या को बेटा हुआ - जिसका नाम राम रखा गया। इस प्रकार, राम को छत्तीसगढ़ का भानजा मानते हैं। और आज भी मामा भांजे का रिश्ता छत्तीसगढ़ में बहुत ही पवित्र माना जाता है।

छत्तीसगढ़ में महारानी कौसल्या के नाम पर एक प्राचीन मन्दिर है। हमें भारतवर्ष में और कहीं भी कौसल्या के नाम पर मन्दिर नहीं दिखाई देता। सिर्फ छत्तीसगढ़ में है वह मन्दिर। रायगढ़ बिलासपुर की सीमा में जो कोसीर ग्राम है वही है कौसल्या मन्दिर।

इस क्षेत्र का नाम "कौसल" इसीलिये रखा गया था क्योंकि कौसल नाम का एक राजा हुआ था, जो बिनता के वशंज थे। बिनता थे सुद्युम्न के पुत्र। सुद्युम्न के बारे में पुराणों में एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार सुद्युम्न पहले मनु की सबसे ज्येष्ठ संतान इला हुआ करती थी, जिसका योनि परिवर्तन हो गया और उसका नाम पुरुष रुप में सुद्युम्न पड़ा। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार मनु जिसे द्रविढ़ेश्वर कहा गया है और जिसका वंश सूर्य के नाम से प्रख्यात है उसी मनु की संतान इला थी जो चन्द्र के पुत्र बुध की पत्नी थी। उसी इला का योनि बदलने पर जब वह पुरुष बन गई और उसका नाम सुद्युम्न पड़ा, तब उसके तीन पुत्र हुए-बिनताश्व, उत्कल और गय। गय ने बसाया गया राज्य (बिहार) उत्कल पश्चिम में अपना राज्य बसाया-और जब उसके वंश में कौसल नाम का प्रतापी राजा हुआ, तब यह क्षेत्र "कौसल राज्य" कहलाया।

पुराणों के अनुसार वैवस्तव मनु के बड़े पुत्र इक्ष्वाकु-थे। इक्ष्वाकु के एक पुत्र का नाम दण्डक था। जिसने बस्तर में अपना राज्य स्थापित किया। दण्डकारण्य के बारे में हम सब जानते हैं। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकु के पुत्र दण्डक के कारण की यह क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाया। और जब शुक्राचार्य के शाप से यह राज्य भ हो गया तब यह राज्य भी कौसल राज्य के नियंत्रण में आ गया।

कौसल राज्य में बहुत से ॠषियों के आश्रम की स्थापना हुई थी - उन ॠषियों में थे श्रृंगी, अत्रि, अगस्त, मतंग, माण्डकर्णी, शरभंग, सुतीक्षण। राजा दशरथ की पुत्री थी शांता जिसे अंग के राजा लोमपाद ने गोद लिया था। श्रृंगी ॠषि का विवाह इसी शांता से हुआ था। अत्रि मुनि के बारे में पुराणों में यह कहानी प्रचलित है कि ब्रह्मा जी के आदेश के अनुसार अत्रिमुनि ॠक्ष पर्वत पर आकर बस गये थे। बाद में सती अनुसूया को लेकर अत्रिमुनि छत्तीसगढ़ में आश्रम बनाकर रहने लगे। इसी आश्रम में ठहरे थे राम-सीता और लक्ष्मण। दण्डकारण्य में जाने से पहले वे इसी आश्रम में ठहरे थे। हरि ठाकुर अपनी पुस्तक छत्तीसगढ़गाथा (रुपान्तर लेखमाला, पृ.6 ) में कहते हैं कि अत्रिमुनि का आश्रम अतरमढ़ा में रहा होगा - ""आश्रम को मढ़ी या मढ़ा भी कहा जाता है। मढ़ा मठ का अपभ्रंश है। अत्रि का अपभ्रंश अतर हो गया इस प्रकार अत्रिमठ अतरमढ़ा के नाम से जाना जाने लगा। इस नाम का एक गाँव धमतरी तहसील में है''

हरि ठाकुर ""छत्तीसगढ़ गाथा'' रुपान्तर लेखमाला पृ० 6

अगस्त ॠषि जिनके बारे में कहा जाता है वे आये थे दक्षिण में आश्रम संस्कृति के प्रचार के लिये, उनका आश्रम बस्तर के दक्षिण-पूर्व में था। अगस्त ॠषि का विवाह लोपामुद्रा से हुआ था। लोपामुद्रा थी विदर्भ की कन्या। लोपामुद्रा और अगस्त ॠषि के मंत्र ॠग्वेद में हम पाते हैं।

छत्तीसगढ़ में वैद्यराज सुदेषण रहते थे। ये वह वैद्यराज थे जिन्होंने संजीवनी बूटी का पता बताया था। लक्ष्मण जब मूर्छित हो गये थे तब संजीवनी बूटी लाने हनुमान गंधमादन पर्वत गये थे। यह गंधमादन पर्वत ॠक्ष पर्वत का पूर्वी भाग है। राम की सेना के मुख्य सेनापति जामवंत ॠक्षराज कहलाते थे क्योंकि ॠक्ष पर्वत पर ही उनका राज्य था।

छत्तीसगढ़ के बीच का भाग ॠक्ष-पर्वत पर स्थित है। छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग विन्ध्य पर है और दक्षिणी भाग है शक्तिमत पर्वत पर। अमरकंटक पर्वत से सिहाबा पर्वत तक पर्वत श्रेणियाँ ॠक्ष पर्वत के नाम से जानी जाती हैं। ॠक्ष पर्वत के पश्चिमी भाग में जो पर्वत हैं वह मेकन नाम से जाने जाते हैं। और पूर्व भाग को गंधमादन कहते हैं। महानदी, नर्मदा, सोन, रेणु नदियां ॠक्ष-पर्वत से निकली नदियां कही गयी हैं। पुराणों मे महानदी को चित्रोत्पला, नीलोत्पला कहा गया है। पुराणों में महानदी को पूर्वगंगा और कंक नदी भी कहा गया है। महानदी में दो त्रिवेणी संगम हैं। पहला है राजिम में। राजिम में महानदी से पैरी और सोढुंर नदियां मिलती हैं। दूसरा त्रिवेणी संगम है शिवरीनारायण में जहां महानदी से मिलती हैं शिवनाथ और जोंक नदियां। जोंक नदी असल में है योग नदी।

पुराणों में राजिम को कमल क्षेत्र कहा गया है और राजिम से शिवरीनारायण तक को नारायण क्षेत्र। शिवरीनारायण है भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान। हरिठाकुर ने छत्तीसगढ़ गाथा (रुपान्तर लेखमाला-1 ) में (पृ०5 ) कहा है कि - ""छत्तीसगढ़ ही वह स्थान है जहां शिला पर भगवान जगन्नाथ का विष्णु के दसवें अवतार के रुप में उत्कीर्ण किया गया सर्वाधिक प्राचीन उदाहरण उपलब्ध है।''

पुराण के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी छत्तीसगढ़ में ही था। वह आश्रम था तुुरतुरिया गाँव में। इसी आश्रम में उन्होंने रामायण की रचना की थी। निर्वासन काल में सीता भी तुरतुरिया में इसी आश्रम में रहीं। यहीं कुश और लव का जन्म हुआ। राम ने बाद में कुश को छत्तीसगढ़ का राज्य दिया था। कुश के वंशज हिरण्यनाम जो कोसल पर राज्य करते थे । वे इतने ज्ञानी थे कि ॠषि याज्ञवल्कय उनके शिष्य थे। हिरण्यनाम को पुराण में ""कोसल्यावेदेह'' कहा गया है। कुश के वंशजों ने छत्तीसगढ़ पर महाभारत काल तक शासन किया।

महाभारत काल में छत्तीसगढ़ में कृष्ण और अर्जुन आये थे युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के घोड़े की रक्षा करते हुए। पुराणों अनुसार महाभारत काल में हैहयबंश के राजा मयूरध्वज उस वक्त रायपुर में शासन करते थे, वे बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा थे। ताम्रध्वज थे उनके पुत्र। ताम्रध्वज ने ही युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के घोड़े को पकड़ लिया था। इसी कारण अर्जुन और ताम्रध्वज के बीच में युद्ध हुआ। ताम्रध्वज को अर्जुन जब बहुत कोशिश के बाद भी हरा नही सके, तब अर्जुन ने कृष्ण से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है। उत्तर में कृष्ण मुस्कुराये और फिर कहा कि मयूरध्वज कृष्ण के भक्त हैं और वे परम दानी होने के कारण पुण्यशाली भी हैं। इसीलिये मयूरध्वज भी अपराजित हैे। अर्जुन ने कहा कि वे देखना चाहते हैं कि मयूरध्वज कितना बड़ा भक्त है। कृष्ण और अर्जुन पहुँच गये मयूरध्वज के पास उनकी भक्ति और दानवीरता को परखने के लिये। कृष्ण ने राजा से उसका आधा शरीर मांगा। अर्जुन आश्चर्यचकित हो उठे जब उन्होंने देखा कि मयूरध्वज अपना आधा शरीर देने को तैयार हो गये। राजा ने आरा मंगवाया और आँखें मूंद कर बैठ गये। जैस ही लोग उन्हें आरे से काटने लगे, कृष्ण ने उन्हें रोक दिया और अपने परम भक्त को गले लगा लिया। पुराणों में भी यही कथा पाई जाती है।

चित्रांगदा और अर्जुन की कहानी हम सब जानते हैं - चित्रांगदा मणिपुर की थी, यह भी कहानी के माध्यम से हम जानते हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ""चित्रांगदा'' पर बहुत बार नाटक किया गया है। हरिठाकुर अपनी पुस्तक ""छत्तीसगढ़गाथा'' (रुपान्तर लेखमाला-1 ) में कहते हैं कि श्रीपुर जो छत्तीसगढ़ में हैं पहले मणिपुर के नाम से जाना जाता था और वहां पहले एक राजा थे जिनका नाम था चित्रांगद। उसकी पुत्री थी चित्रांगदा, अर्जुन इसी मणिपुर में आये थे और चित्रांगदा ने अर्जुन से विवाह किया था। कुछ महीनों के बाद अर्जुन लौट गये थे। चित्रांगदा को बेटा हुआ था जिसका नाम बब्रूवाहन रखा गया था। बब्रूवाहन भी बहुत वीर बालक था। एक बार उसने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के घोड़े को पकड़ लिया था। बब्रूवाहन को यह पता नही था कि अर्जुन उसके जन्मदाता हैं। अर्जुन और बब्रूवाहन के बीच जब घोर युद्ध हुआ, अर्जुन न सिर्फ पराजित हुए, वे बल्कि वे बहुत बुरी तरह घायल भी होकर गिर पड़े। चित्रांगदा को जब पता चला तो वह अर्जुन के पास युद्धक्षेत्र में पहुंची और उन्हें अपने महल में ले आई। चित्रांगदा की सेवा के कारण अर्जुन तुरन्त ठीक हो गये। इसके बाद बब्रूवाहन को पता चला कि अर्जुन उसके पिता हैं।

छत्तीसगढ़ में बहुत से वीरों का जन्म हुआ जिसे अर्जुन जैसे वीर भी पराजित नही कर सके।

 

  | विषय सूची |


Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee

Copyright IGNCA© 2004

सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।