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केकती बाई बधेल |
केकती बाई बधेल थीं डॉ. खूबचन्द बधेल की मां। डॉ. खूबचन्द बधेल थे स्वतंत्रता सग्रांम सेनानी, समाज सुधारक तथा छत्तीसगढ़ राज्य आंन्दोलन के जन्मदाता। केकती बाई बहुत कम उम्र में विधवा हो गई थीं। खूबचन्द उस वक्त नन्हा-सा बालक था। केकती बाई ने बड़े जतन से बेटे की परवरिश की। हमेशा कहती थीं - बड़े अगर तुम्हें चोट पहुँचायें, तब भी उन पर हाथ नहीं उठाना। झूठ कभी मत बोलना। अन्याय कभी बर्दाश्त नहीं करना। अन्याय बर्दाश्त करना भी अन्याय करने के बराबर है। इन सीखों का पालन वे हमेशा करते रहे। एक बार की बात है खूबचन्द बधेल तब युवा थे। किसी बुजुर्ग ने उनके नौकर पर झूठा आरोप लगाया। खूबचन्द नौकर का पक्ष ले रहे थे। बुजुर्ग को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने खूबचन्द को जोर से चाँटा मारा। उस मार से खूबचन्द बधेल का एक कान बहरा हो गया। पर उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला उस बुजुर्ग के खिलाफ। पर इतना होने पर भी वे उसकी बात पर अटल रहे। माँ केकती बाई ने उन्हें ऐसी शिक्षा दी थी कि बाद में सत्याग्रही बनने में उन्हें ज़रा-सी भी परेशानी नहीं हुई। खूबचन्द पढ़ने रायपुर आये। बाद में सन 19 2 0 के आसपास नागपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिल हुए। बहुत ही प्रतिभावान विद्यार्थी थे। उसी समय कांग्रेस का अखिल भारतीय अधिवेशन नागपुर में हुआ था। उस अधिवेशन में डॉक्टर बधेल स्वयं सेवक रहे। जब घर आते थे, अपनी माँ को अधिवेशन के बारे में बताते। माँ को बहुत अच्छा लगता था और बेटे का इंतजार करती थीं। जब डॉक्टर बधेल गाँधीजी के बारे में बताते, केकती बाई बार-बार सुनना चाहती थीं उनके बारे में। सोचती थीं क्या ऐसे इंसान भी होते हैं?सन् 193 0 में जब आंदोलन हुआ, केकती बाई के देवर अर्जुन सिंह बधेल उसमें शामिल हो गये। डॉ. बधेल भी सरकारी नौकरी छोड़कर देश सेवा में लग गए। केकती बाई डॉ. राधाबाई के साथ सफाई कामगारों के बीच जाकर काम करने लगीं। उनके बच्चों को नहलाती थीं, खिलाती थीं।सन् 1932 के सत्याग्रह के वक्त केकती बाई और उनकी बहू राजकुंवर बधेल के बीच एक विवाद हो गया - कौन सत्याग्रह कर जेल जायेंगी। बहू कहती "माताजी मुझे जाने दीजिये"- सास कहती - "मैं बूढ़ी हो गई हूँ। सत्याग्रह का अवसर मुझे और कब मिलेगा"। बहू राज़ी हो गई जब सास माँ ने कहा कि इसके बाद बहू को अवसर मिलेगा।इसी तरह केकती बाई विदेशी वस्तुओं की दुकान पर मीटिंग करते गिरफ्तार हो जेल पहुँची। शुरु में जेल के अधिकारी उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रहे थे, तब केकती बाई जेल के फ़ाटक पर बैठी रहीं और पानी तक नहीं पिया, तब उन्हें गिरफ्तार किया गया।केकती बाई अस्पृश्यता निवारण का काम बड़े प्यार से करती थीं। सभी वर्ण और धर्म के लोग उनके घर आते थे, खाते थे। उनके घर की रसोई की अस्पृश्य कहलाने वाले परिवार की एक लड़की देखभाल करती थी। केकती बाई सिर्फ डॉ. बधेल की माँ नहीं थी। वे तो हर सत्याग्रही की माँ थीं। |
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