छत्तीसगढ़ |
Chhattisgarh |
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पं. वामनराव जी लारवे |
सन् 1913 में रायपुर में रायपुर को-आपरेटिव सेन्ट्रल बैंक की स्थापना हुई। रायपुर जिले में यह प्रथम बैंक था जिसके माध्यम से कृषकों को आर्थिक सहायता पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी। साहुकारों से कृषकों को मुक्ति दिलाने के लिए इस बैंक की स्थापना की गई थी और इस संस्था के जन्मदाता थे हमारे वामनराव बल्लीराम लरवे।वामनराव जी का जन्म 1872 को रायपुर में हुआ था। उनके पिता बलीराम लारवेजी खूब परिश्रमी थे, और खूब परिश्रम करके उन्होंने कुछ गांव भी खरीद लिये थे। बचपन से वामनराव इसी माहौल में बड़े होने के कारण परिश्रम के मूल्य को अच्छी तरह समझते थे। पिता बलीराम जी उन्हें हमेशा कहते थे कि उच्च शिक्षा के लिए सदा कोशिश करनी चाहिए। वे चाहते थे कि उनका बेटा खूब पढ़े।रायपुर से उन्होंने मैट्रिक किया। माधवराव सप्रे भी उस समय उसी स्कूल में पढ़ते थे। दोनों में दोस्ती हो गई। सन् 1900 में जब सप्रेजी ने ""छत्तीसगढ़ मित्र'' नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया तो लारवे जी उस पत्रिका के प्रकाशक थे। छत्तीसगढ़ की यह पहली पत्रिका थी। सिर्फ तीन साल तक यह पत्रिका चली पर उन तीन सालों के भीतर ही उस पत्रिका के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का युग आरम्भ हो गया था।सन् 1904 में लारवे जी ने रायपुर में वकालत शुरु की। उसी साल उन्होंने कानून की परीक्षा पास की थी। उनकी पत्नी जानकी बाई भी उनकी ही तरह जन-सेवा को महत्व देती थीं। लारवे जी ने जब रायपुर में वकालत शुरु की तो उनका मकसद था लोगों के लिए कुछ महत्वपूर्ण काम करना ताकि उनकी दशा में सुधार हो। उनका मकसद पैसे अर्जन करना नहीं था। उनकी पत्नी ने भी हमेशा उनका साथ दिया।लारवेजी कई बार बूढ़ापारा से निर्वाचित हुए, नगर पालिका रायपुर के सदस्य के रुप में। रायपुर नगर पालिका के वे अध्यक्ष भी रहे। रायपुर को-आपरेटिव सेन्ट्रल बैंक जिसके बारे में शुरु में ही कहा गया है, उस बैंक के वे सन् 1913 से 1936 तक मंत्री और सन् 1937 से 1948 तक अध्यक्ष रहे। उस समय के लोग लारवेजी के बारे में बताते वक्त उनके कठोर परिश्रमी चरित्र का जरुर ज़िक्र करते हैं। लोगों का कहना है कि इस बैंक का भवन जो मजबूत और सुन्दर है सिर्फ 37,000 में बनाया गया था और यह लरवे जी के कारण ही सम्भव हुआ था। लारवे जी लैण्ड मार्टगेज बैंक के भी अध्यक्ष थे। सन् 1915 में रायपुर में होमरुल लीग की स्थापना की गई थी। लरवे जी उसके संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में शुरु में जो राजनीतिक चेतना फैली थी, उसमें लारवेजी का बहुत बड़ा योगदान है। अपना सारा जीवन राष्ट्रीय आन्दोलन और सहकारी संगठन में बिताया, सन् 1945 में बलौदा बाजार में किसान को-आपरेटिव राइस मिल की स्थापना की।लारवेजी को अंग्रेजी शासन ने किसानों की सेवाओं के लिए 1916 में ""रायसाहब'' की उपाधि दी थी। सन् 1920 में लारवेजी ने ""रायसाहब'' की पदवी त्याग करके असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। सन् 1920 में नागपुर में महात्मा गांधी ने असहयोग का प्रस्ताव रखा था। लारवेजी उस अधिवेशन से लौटने के बाद स्वदेशी प्रचार में सक्रिय हो गये और ""रायसाहब'' की पदवी लौटाकर असहयोग आन्दोलन में सक्रिय हो गये। लोगों ने उन्हें एक उपाधि दी और वह थी ""लोकप्रिय'' की उपाधि।सन् 1921 में पं. माधवराव सप्रे ने रायपुर में ""राष्ट्रीय विद्यालय'' की स्थापना की। उस विद्यालय के मंत्री लारवेजी बने। लारवेजी खादी का प्रचार करने लगे रायपुर में, रायपुर के आसपास के इलाके में। सन् 1921 में अक्टूबर के महीने में रायपुर में ""खादी सप्ताह'' मनाया गया था, जिसके प्रमुख संयोजकों में से एक थे लरवे जी। न जाने कितने लोग उस वक्त उत्साह के साथ खादी पहनने लगे थे।सन् 1930 में जब महात्मा गांधी ने आन्दोलन शुरु किया तो रायपुर में इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे-पं. वामनराव लारवे, ठा. प्यारेलाल सिंह, मौलाना रउफ, महंत लक्ष्मीनारायण दास, शिवदास डागा। ये पांचों रायपुर में स्वाधीनता के आन्दोलन में पांचों पाण्डव के नाम से विख्यात हो गये। लारवेजी ने जब एक सभा में अंग्रेजी शासन को गुण्डों का राज्य कहा तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक साल की सज़ा तथा 3000 रुपये जुर्माना हुआ।सन् 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में लरवेजी को सिमगा में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार किया गया और चार महीनों की सजा दी गई। उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था। उस वक्त लरवेजी 70 वर्ष के थे।छ: साल बाद जब आजादी मिली तो 15 अगस्त को रायपुर के गांधी चौक में पं. वामनराव लारवे ने तिरंगा झंडा फरहाया। वहां मौजूद लोग लारवेजी के चेहरे पर व्याप्त संतोष और शान्ति के बारे में बताते थे।सन् 1948, 21 अगस्त लारवेजी चले गये इस दुनियाँ से। कुछ ही महीने पहले जो घटना घटी उसने उनके मन की शान्ति को नष्ट कर दिया था - स्तब्ध हो गये थे लरवेजी व्यथा से। तीव्र पीड़ा से समझ नहीं पा रहे थे कि गांधी जी को कोई कैसे मार सकता है और उन्हें अन्दाज़ा हो गया था कि आने वाले दिनों में किस प्रकार के लोग सत्ताधारी होंगे। और वे फिर से आज़ादी को कुचल देंगे। |
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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee
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