छत्तीसगढ़ी प्रेम गीत बहुत ही रोचक,
बहुत ही मार्मिक, मन को छू लेने वाले
हैं।
डॉ पी सी लाल यादव द्वारा इकठ्ठे
किये गये कुछ गीत जो "छत्तीसगढ़ी
गीत" (जमुनाप्रसाद कसार सम्पादक)
में छापे गये हैं, इस प्रकार हैं -
१. हाय रे कुंदरु करेला,
मोर छैला
अलबेला मोर तीर आजा
मोर तीर आजा राजा
खवाहूं बीरो पान।
हाय रे पड़की परेवना मोर
कोईली मैना मोर तीर आजा
मोर तीर
आजा रानी
खवाहूँ बीरो पान।
कोहरा के लोवा नारे म सरगे
तोर बीना हिरदे म भुर्री बरगे।
मोर तीर आजा
कोचई कांदा मही म राधे
नहीं बता मन कोन कइसे बांधे?
मोर तीर आजा
अमारी भाजी रे अमसुरहा
लागे,
आते तै डरेऊठी करम फुटहा
जागे।
मोर तीर आजा
खाये रे खीरा चाने पंदोली,
मयार्रूंक सुन लेतेंद
मया के बोली।
मोर तीर आजा ....
ये गीत डॉ पी. सी. लाल यादव को श्री
द्वारिका यादव , जो गड़ंई (राजनांद
गाँव) से है, दी थी।
हिन्दी में अनुवाद -
ओ ! मेरे कुंदरु और करेला की
तरह
मजेदार अलबेले छैला तुम
मेरे निकट आओ
मैं तुम्हें बीड़ा पान खिलाऊँगी।
पड़ूंगी और कबूतर की तरह सुन्दर
कोयल और मैना की तरह गाने वाली
मेरी रानी
तुम मेरे करीब आ जाओ
मैं तुम्हें अपने हाथों से पान खिलाऊँगा।
कुम्हड़ा की बातीं (छोटा फल)
उसकी बेल में ही खराब हो गई।
और तुम्हारे बिना मेरे हृदय में
आग लगी हुई है।
कचालू की सब्जी बनाने के लिये मठा
(छाँछ)
की जरुरत पड़ती है
पर तुम्हीं बताओ मैं अपने इस मतवाले
मन
को किस प्रकार बाँध कर रखूं।
अमारी की भाजी खट्टी लगती है,
मेरे जीवन में तुम्हारे बिना
खटास आ गया है,
यदि तुम मेरे दरवाज़े आ पाओ
तो मेरी फूटी किस्मत जाग जायेगी।
ककड़ी को खाने से पहले उसके अगले
(कड़ु़वा)
भाग को काट कर फेंक देते हैं
मेरे प्रिय तुम भी कड़वाहट छोड़ और
अपनी प्यार भरी बोली बोलो।
डॉ पी सी लाल द्वारा अनुवाद किया
गया है।
हाय रे चना के दुई दार,
खवइया हैं दिलदार
तोरी बोली - बचन नीक लागे।
नदिया के पानी अगम दाहरा,
तेखर ले अगम मया के लाहरा
हाय रे चना के ...
कुँआर महिना में कासी फूले
तोर चेहरा भाई नैना म झूले
हाये रे चना के ...
माटी के मांदर तक धिना बाजे
घुंघरु पहिर गोरी ह नाचा
हाय रे चना के
ये गीत श्री द्वारिका यादव (गडंई,
राजनादंगाँव) डॉ पी सी लाल यादव को दी थी
डॉ पी सी लाल
द्वारा हिन्दी में अनुवाद -
२. चना की दो दालें है और
दाल खानेवाला
बड़ा दिलदार है,
तुम्हारी बोली बड़ी मीठी लगती
है।
नदी में जो पानी है
वह अथाह है,
परन्तु उससे भी अथाह और अगाध हैं
प्रेम की लहरें।
जब क्वाँर का महिना आता है
तब सर्वत्र कांस में
फूल लग जाते हैं।
ठीक उसी तरह
इन आँखों में
केवल तुम्हारी सुन्दर छबि बसी
है।
मिट्टी का मांदल तक धिना धिन
बज रहा है और गौरी पाँव में
घुंघरु पहन कर नाच रही है।
३. हो गाड़ी वाला रे
पता ले जा रे पता दे जा रे गाड़ी वाला
पता ले जा दे जा गाड़ी वाला रे
तोर गांव के तोर गाँव के
तोर काम के पता दे जा
पता ले जा रे
पता दे जा रे गाड़ी वाला
का तोर गांव के नाव दिवाना डाक
खाना के पता का
नाम का थाना कछेरी के पारा
मोहल्ला जधा का
को तोरे राज उत्ती बुड़ती रेलवाही
का
हावे सड़किया
पता ले जा रे दे जा रे गाड़ी वाला
मया नई चिन्हे देसी बिदेसी मया
के मोल न तोल
जान बिजति न जाने रे मया मया मयारु
के बोल
काया-माया सब नाच नचावे भया के
एक नजरिया
पता ले जा रे
पता दे जा रे गाड़ीवाला..
जीयत जागत रहिबे
रे बैरी भेजबे कमूले चिठिया
बिन बोले भेद खोले
रोवे जाने अजाने पिरितिया
बिन बरसे उमड़े घुमड़े
जीव मया के बैरी बदरिया
पता ले जा रे
पता दे जारे गाड़ी वाला ...
ये गीत लक्ष्मण मस्तुरिहा जी (रायपुर)
ने डॉ पी सी लाल यादव को दी थी।
डॉ पी सी लाल यादव
द्वारा हिन्दी में अनुवाद -
ओ गाड़ीवान !
तुम अपना पता दे जाओ
और मेरा पता ले जाओ।
तुम्हारा गाँव कौन सा है?
तुम्हारा नाम क्या है?
और तुम काम क्या करते हो?
इन सबका पता दे जाओ।
तुम्हारे गाँव का क्या नाम है?
और डाकखाना कहां पड़ता है?
थाना कचहरी का नाम क्या है?
तुम्हारा मुहल्ला कहाँ पर है?
तुम्हारे राज्य के पूर्व और पश्चिम
में
कौन से राज्य हैं?
तुम्हारे गाँव जाने के लिय
रेल लाईन है या सड़क?
गाड़ीवान तुम अपना पता दे जाओ।
प्रेम देशी-विदेशी नहीं पहचानता
और नहीं प्रेम का मोल भाव होता
है।
प्रेम जाति-बंधन को भी नहीं मानता।
प्रेम तो केवल
प्रेम के बोल को पहचानता है
प्रेम की एक नजर
काया माया को नचाती है।
गाड़ीवान तुम अपना पता दे जाओ।
जिन्दगी सलामत रही तो कभी भी
चिट्ठी जरुर भेजना
बिना बोले ही
मेरी प्रीत जाने अनजाने
मेरे मन का भेद खोल रही है।
प्रेम की यह घटा
बिना बरसे नहीं मानेगी।
ओ गाड़ीवान,
तुम अपना पता दे जाओ
और मेरा पता ले जाओ।
४. आबे अमरइया के छाँव
म
मया पीरित के गाँव म
हाय रे मयारु मोर
हाय रे पिरोहिल मोर - - - - -
काँटा झन गड़े तोर पांव म - - - -
फूल रे फूलय संगी भौंरा हर झुलय
तहाँ मोर मन ह तोर काती दऊँड़य
मन हे दिवाना
अब तहीं समझाना
काबर कल्पाशस जल्दी आना।
तोर नांव जुरे हावय
संगी मोर नांव म
आंबे अमराइया के छाँव म - - - - -
नैना के सेना म समाये रे मैना
सुरता के सगरी म नहाये फुल
कैना।
संगी तोर बिना मुस्कुल हे जीना
तोर पीरित म परे जाहर पीना।
जिनगी लगे हावय तोर मया के
दांव म
आबे अमराइया के छाँव म - - - - -
आँखी के जोती
तै मन के मोती तैं,
मोर नँजरे-न चारो कोती तैं।
बादर दानी तैं।
पीरित पानी तैं
मोर सपना तहीं मोर जिनगानी तैं।
धरती अगास अऊ बादर के छाँव म
आबे अमराइया के छाँव म - - - - -
यह गीत श्रीमति सरस्वती निषाद, (नवागाँव)
डाँ पी सी लाल यादव को दी थी।
इसका अनुवाद: (डाँ पी सी लाल यादव
द्वारा)
प्रिय तुम
अमराई की शीतल छाँव में आना।
तुम मेरे प्रेम के गाँव में आना।
ओ मेरी प्रेमी ओ !
मेरे सुख-दुख के साथी
तुम्हारे पाँव में कभी भी काँटे न
चुभें।
फूल जब खिलते हैं
भौरे जब फूलों पर मंडराते है।
तो उन्हें देखकर मेरा मन
तुम्हारी ओर दौडता है।
मेरा मन तुम्हारा दीवाना है
यह मानता नहीं।
इसे तुम ही समझाओ।
तुम मुझे क्यों तड़पा रहे हो
तुम शीघ्र आ जाओ।
ओ। मेरे प्रिय -
तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
जुड़ा हुआ है।
प्रिय !
नयनों के इस दपंण में
केवल तुम्हारी ही छबि है।
मेरे अन्तरमन में
तुम मैना समायी हो।
ओ ! कुसुम कन्या !
तुम्हारी स्मृतियों की झील में
मैं नहाया हुआ हूँ।
साथी तुम्हारे बिना अब
मेरा जीना मुश्किल है।
तुम्हारे प्रेम में मुझे जहर भी पीना
पड़े
तो मजूंर है।
यह जीवन तो तुम्हारे प्रेम के
दाँव
में लगा हुआ है।
प्रिय ! तुम मेरे नयनों की ज्योति
हो।
तुम ही मेरे मन का मोती हो।
मेरी नजरें जहाँ तक जाती हैं।
चारों दिशाओं में तुम ही तुम हो।
तुम दानी बादल हो जो पानी बरसाते
हो।
तुम प्रेम का अमृत जल हो।
तुम ही मेरे सपने हो।
तुम ही मेरा जीवन हो।
चाहे धरती हो, आकाश हो या बादलों
की छाँव में हो।
केवल तुम ही तुम हो।
प्रिय !
तुम मेरा जीवन हो।
५. हो रे हो रे - - - -
दल दल दल दल ओदरे करार
जिहां बसगे मरार,
तिहाँ छिंद के खार
तरी मे रेलगाड़ी ऊअपर तोड़ावाली
बइठे नथ वाली,
सजन जोरे ओ - - - -
सुत भांजे सुतरी उलट भांजे डोर
भीतरी में झन जाबे हे धनी मोर
हो रे हो रे - - - - -
तिली के तेल ल रिकोय दिल में
रोई-रोई स, मझायेंव नई
धरे दिल में।
हो रे हो रे - - - - -
चलनी म चाले सुपा में फूने,
पवन बाजू रहेंव सबा ल सुने।
हो रे हो रे - - - -
यह गीत श्रीमती राधा बाई (टिकरी
पारा, राजनाँद गाँव) ने डाँ पी सी
लाल यादव को दी थी।
हिन्दी में अनुवाद:
नदी का किनारा खिसक रहा है।
जहाँ खजूर के पेड़ है
और जहाँ मरार जाति के लोग बस
गए हैं।
उसके नीचे रेलगाड़ी चल रही है।
उस रेलगाड़ी में गोरी पाँवों मे
तोड़ा (चाँदी का आभूषण)
और नाक में नथनी पहनकर
अपने प्रियतम के साथ बैठी है।
धागे से रस्सी बनायी
और रस्सी से डोर।
घर के भीतर मत जाना
क्योंकि वहाँ मेरा प्रियतम सोया
हुआ है।
तिल का तेल मैंने
बिल में डाल दिया।
मैंने तुम्हें रो रोकर समझाया
पर तुम नहीं माने।
चलनी में चाँवल को चाला
और सूप से उसकी सफाई की।
मैं हवा की दिशा में था
इसलिए मैंने
तुम्हारी सारी बातें सुन ली है।
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