छत्तीसगढ़ में जन्म के समय कई
सारे गीत गाये जाते हैं। ये गीतों
का सिलसिला पूरे जन्म-संस्कार के
समय जारी रहता है। बहुत ही सुन्दर
है ये सारे गीत जो जन्म संस्कार
के वक्त गाया जाता है। जन्म संस्कार
के अन्तर्गत है गर्भ अवस्था के नौ
महीने।
सबसे पहले सधौरी संस्कार,
जो सातवें महीने में होता है।
इस समय गर्भवती महिला को सात
प्रकार की रोटियाँ खिलाते हैं। इस
वक्त उस महिला के मायके की चीजे आती
है जिसे मायके के सधोरी कहते
हैं। बेटी के लिये कपड़े गहने भेजते
है। सधौरी के वक्त दूसरी महिलायें
गर्भवती महिला के लिये कपड़े, सात
प्रकार की रोटीयाँ लेकर आते हैं।
इन रोटियों का अलग अलग नाम है -
खुरमी, पपची, लाड़ू, सोंहारी,
पिड़िया, कुसमी, कटी के लड्डू।
सधौरी के वक्त कई सारे
गीत गाये जाते हैं। दयाशंकर शुक्ला
जी जन्म संस्कार के गीतों का उल्लेख
"छत्तीसगढ़ी गीत" (प्रधान सम्पादक -
जमुना प्रसाद कसार, श्री प्रकाशन,
दुर्ग) में की है।
एक सधौरी गीत में पति-पत्नी
से कह रहा है कि पत्नी दूध, मधु, औप
पीपर पी ले। पत्नी पीना नहीं चाहती
है क्योंकि पीपर कड़वा है। पति पत्नी
से कहता है सोने का कटोरे में
दूध, मधु और पीपर पी लो- इसके
बाद पति कहता है नहीं तो वह
दूसरी शादी कर लेगा -
महला मां
ठाढि बलमजी
अपन रनिया
मनावत हो
रानी पीलो
मधु-पीपर,
होरिल
बर दूध आहै हो।
कइसे
के पियऊँ करुरायवर
अउ झर
कायर हो
कपूर बरन
मोर दाँत
पीपर कइसे
पियब हो
मधु पीपर
नइ पीबे
त कर
लेहूं दूसर बिहाव
पीपर के
झार पहर भर
मधु के
दुइ पहर हो
सउती के
झार जनम भर
सेजरी बंटोतिन
हो
कंचन
कटोरा उठावब
पीलडूं
मधु पीपर हो -
अन्त में पत्नी पीपर पी लेती
है क्योंकि वह सोचती है कि पति अगर
दूसरी शादी कर लेगा, तो सौतन को पूरी जिन्दगी झेलना पड़ेगा। इससे
बेहतर है पीपर की झार जो
सिर्फ पहर भर रहेगी।
इस तरह के कई गीत सधौरी
गीत के अन्तर्गत आते है।
सोहर गीत जन्म गीतों में प्रधान
है। सोहर गीतों में न जाने कितने
ही भावनायों भक्त हुए हैं। जैसे एक
गीत में उस बहु की मनोदशा का वर्णन
है जो अपने ससुराल के लोगों से
सहायता मांग रही है पर जब
सहायता नहीं मिली, तब अपने आप
को ये कहकर समझाती है कि उसके
माँ-पिताजी, भाई-बहन जब है तब
चिन्ता करने की कोई जरुरत नहीं
है।
ननदी बोलयेंव
उहू नइ आइस
ननदी
हो हमार का करि लेहव।
बहिनी
बलाके कांके मढ़ई बोन
हम छबीली
सबे के काम पड़बोन।।
ननदोइ
बोलयेंव उहू नइ आइस
भोटो
बला के नरियर फोरा ले बोन
हम छबीली
सबे के काम पड़बोन।।
जेठानी बोलायेंव
उहू नइ आइस
जेठानी
हो हमार का करि लेहव।
भौजी
बला के, सोंहर गवाबोन
हम छबीली
सबे के काम पड़बोन।।
जेठ जो
बोलायेंव उहू नइ आइस
जेठ हो
हमार का करिलेहव।
भाई
बला के बन्दुक छुटबई लेबोन
हम छबीली
सबे के काम पड़बोन।।
ससुर बोलायेंव
उहू नइ आइस
ससुर
हो हमार का करिलेहव।
बापे बला
के नाम धरइ ले बोन
हम छबीली
सबे के काम पड़बोन।।
सासे बोलायेंव
उहू नइ आइस
सासे
हो हमार का करिलेहव।
दाई बला
के टुठू बधवइबोन
हम छबीली
सबे के काम पड़िबोन।।
हर एक गीत में मन की
गहराई में जो भावनायें हैं, उसे
व्यक्त किया गया है। एक गीत है
जिसमें देवकी और यशोदा के बीच
बातें हो रही हैं। देवकी की मनोदशा
- सात बेटों को मार दिया गया है।
अब आठवें की बारी है, क्या उसे भी
वह खो देगी? यह प्रश्न उसे जीने
नहीं दे रहा है। देवकी की मुलाकात
यशोद से होती है जो उसे कहती
है कि वह उसके आठवें पुत्र की रक्षा
करेगी।
पहली
गनेश पद धावों
मैं चरन
गभावों
ललना
विघन हरन जन नायक
सोहर
के पद ल गावत हो
एक धन अंगिया
के पातर
दुसर
हे गर्भवती ओ
ललना अंगना
में रेंगत लजाय
सास ल
बलावन लागे हो
ननद मोर
ओसरिया में ओ
ललना, र्तृया
मोर सूत है महल में
मैं कैसे
के जगवंव वो
झपकि के
चढ़ों में अटरिया
खिरकी
के लागू लेके ओ
ललना,
छोटका देवर निरमोहिला
बंसी ल
बजावत हवै ओ
मन मन
गुने रानी देवकी
मन मं
विचारन लागे ओ
ललना
ऐही गरभ मैं कैसे
वचइ लेत्यौं
ओ
सात पुत्र
राम हर दिये
सबो ल
कंस हर ले लिस औ
ललना
ऐही गरभ अवतारे
मैं कैसे
बचइ लेत्यौं औ
धर ले
निकरे जसोदा रानी
मोर सुभ
दिन सावन ओ
ललना, चलत
हवै जमुना असनाने
सात सखी
आगू सात सखी पीछू ओ
सोने
के धइला मूड़ मं लिये
रेसम सूत
गूड़री हे ओ
ललना, चलत
है जमुना पानी
सात सखी
आगू सात सखी पीछू ओ
कोनो सखी
हाथ पांव छुए
कोनो सखी
मुँह धौवै ओ
कोनो
जमुना पार देखै
देवकी, रोवत
हवै ओ
धेरि-धेरि
देखै रानी जसोदा
मन में
विचारन लागे ओ
कैसे के
नहकों जमुना पारे
देवकी
ल समझा आत्यों ओ
न तो
दिखे, घाट घठौना
नइ दिखै
नवा डोंगा वो
ललना,
कैसे नहकों जमुना पारे
जमुना,
ल नहकि के ओ
मर रो
तें मत रो देवकी
मैं तोला
समझावत हैं वो
ललना,
कैसे विपत तोला होए
काहे
दुख रोवत हवस ओ
कोन
तोर सखा पुर में बसे
तोर
कोन धर दुरिहा है ओ
ललना
कोन तोर सइयां गए परदेसे
तैं काहे
दुख रोवत हवस ओ
न तो मोर
सखा पुर में बसै
न तो मोर
धर दुरिहा ओ
न तो मोर
र्तृया गए परदेसे
गरभ के
दुख ला रोवत हवौं वो
सात पुत्र
राम हर दिये
सबेल
कंस हर लिस वो
ललना आठे
गरभ अवतारे
मैं कैसे
बचइले बौं बो
चुप रह
तै चुप रह देवकी
मैं तोला
समझावत हावों ओ
मोरे
गरभ तोला देहौं
तोर ला
बचाइ लेहौं वो
नून अऊ
तेल के उधारी
पैसा
कौड़ी के लेनी देनी ओ
बहिनी
कोख के उधारी कैसे हो है
मैं कैसे
धीरज धरौं ओ
एक मोर
साखी है चन्दा
दुसर सुरज
भाइ ओ
ललना, साखी
है चन्दा भाइ
सुन ले
देवकी रानी ओ
ऐसे
करार कैसे बाधौं
धीरज
धरौं ओ
ललना
देवकी जैसे रामनामे
तुही ए
गरभ ल उबारब ओ।
पहिलो
महीना देवकी ल होवे
दुसर
महीना होवे ओ
ललना,
तिसर महीना देवकी ल होगे
तब मन
सकुचावय हो
चार
महीना देवकी ल होगे
तब
गरभ जना परय हो
ललना,
पिवर मुंह ड्डलड्डल दिखे
तब अठौ अंग
पिवरा दिखे ओ
पांच
महीना देवकी ल होगे
तब सास
ह पुछन लागे ओ
देवकी
ह पेट अवतारे
दुख-सुख
बतावरन लागे ओ
छठे
महीना देवकी ल होंगे
तब ननद
हंस के कहय ओ
होतिस
भतिजा वा अवतारे
तब सुमंगल
गात्यों ओ
सात
महीना देवकी ल होंगे
तब सास
परिखन लागे हो
ज्योंनी अंग
मोर फरकत हे
बेटवा
के लच्छन हवै ओ
आठ
महीना देवकी ल होगे
तब आठों
अंग भरि गए ओ
कैसे के
लुगरा सम्हारौं
दरद व्याकुल
करे हो
नव दस
महीना देवकी ल होंगे
तब सुइन
ल बला देवै ओ
ललना, उठिगे
पसुरी-पसुरी के पीरा
दरद में
वियाकूल भये हो
भादो
के रतिहा निसि अंधेरिया
पानी बरसन
लागे ओ
ललना,
बाहर मं बिजुरी चमके
गरजना
करन लागै ओ