छत्तीसगढ़ |
Chhattisgarh |
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कांकेर |
कांकेर के राजा सोमवंशी थे। कांकेर राजवंश के बारे में कहानी इस प्रकार है - यहाँ के प्रथम नरेश कान्हरदेव जगन्नाथपुरी के राजा थे। उन्हें कुष्ट रोग हो गया था। इसीलिए उस राज्य का उन्हें त्याग करना पड़ा था। स्वास्थकर जगह की तलाश में कान्हरदेव सिहावा आ पहुँचे थे। सिहावा से ही महानदी निकलती है। उस समय सिहावा में श्रृंगी ॠषि का आश्रम था। उस आश्रम के पास एक पोखर। इसके बाद सिहावा के लोगों के अनुरोध करने पर राजा वहीं बस गये एवं राज्य करने लगे। और इसी वंश के तीसरे राजा ने सिहावा से कांकेर राजधानी ले गये। प्राचीन काल में कांकेर को कंकण कहते थे। सिहावा में एक शिलालेख मिली है जिसके माध्यम से येे प्रमाण किया जा सकता है कि सोमवंशी राजा कुछ समय तक यहीं राज्य करते थे। वह शिलालेख सन् 1182 में उत्कीर्ण किया गया था। राजिम में एक शिलालेख मिली थी जो सन् 1144 का है। उस शिलालेख से यह पता चलता है कि जब रतनपुर में कल्चुरि राजा पृथ्वीदेव (द्वितीय) राज्य करते थे, उसी समय पृथ्वी देव के सेनापति जगपाल ने कांकेर प्रदेश को युद्ध में हराकर अपना करद राज्य बना लिया था। इसीलिए उस समय से इस कांकेर प्रदेश के लेखों में कलचुरि संवत् का प्रयोग होने लगा था। दो ताम्रपत्र मिले है जो कांकेर के सोमवंशी राजा पंपराज के पिता और पितामह के नाम भी है - पिता थे सोमराज और पितामह बोपदेव। पुरातत्व कांकेर बस्ती के दक्षिण में हमें पुरातत्व के निशान देखने को मिलते हैं। पहाड़ी के ऊपर राजा शुरु में रहा करते थे। वहाँ तक जाने के लिए एक पगडंडी है। वह पगडंडी एक पत्थर से बनी हुई द्वार तक जाती है। उस द्वार के दोनों ओर बैठने के लिए जगह बनी हुई है। इससे अनुमान कर सकते हैं कि पहरेदारों वहीं बैठते थे। उस द्वार से थोड़ी दूर पर है एक मैदान जहाँ ईट पत्थर पड़े हैं। कहा जाता है कि प्राचीन महल के ईट पत्थर है। वहाँ से थोड़ी दूर एक मन्दिर है जो शिव भगवान का है। पास में दो तालाब हैं। तालाब के पास दो गुफाएँ हैं। गुफाएँ काफी प्रशस्त है। पाँच-छ: सौ व्यक्ति वहाँ एक साथ बैठ सकते हैं। पहाड़ी की पूर्व की ओर एक तालाब है और एक गुफा और है। उस गुफा को लोग जोगी गुफा कहते हैं। एक तालाब का नाम दीवान तालाब है। इस तालाब के पास एक मंदिर है। उस मंदिर में एक शिलालेख है। उस शिलालेख में राजा भानुदेव जो काकैर्य के राजा थे, वे प्रधानमंत्री की प्रशंसा उत्कीर्ण कर रहे हैं। शायद प्रधानमंत्री ने वह तालाब खुदवाये थे। इसीलिये उसे दीवान तालाब कहते हैं, इस शिलालेख में मंत्री के चार पीढियों के नाम है और राजा भानुदेव के सात पीढियों के नाम है। यह शिलालेख सन् 1320 का है - अर्थात् राजा भानुदेव के राज्यकाल में। कांकेर के मुड़पारा गांव में मंदिरों के अवशेष पाये गये हैं। टंकापारा गांव में सन् 1213 और 1214 के दो शिलालेख पाये गये हैं। |
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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee
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