छत्तीसगढ़ |
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संस्कार के गीत |
हमारे देश में संस्कारों की कमी नहीं है। जिन्दगी के हर पहलु के साथ कोई न कोई संस्कार जुड़े हुए हैं। संस्कारों से सम्बन्धित गीतों को अगर देखा जाये, तो हमें जन्म और विवाह के बारे में सबसे अधिक गीत सुनने को मिलते हैं। छत्तीसगढ़ को लोक जीवन में हमें उपनयन संस्कार के गीत भी मिलते हैं। मृत्यु संस्कार के गीत छत्तीसगढ़ के कबीरपंथियों में गाये जाते हैं। जन्म संस्कार के समय जो गीत गाये जाते हैं, उस सोहर गीत कहा जता है। उपनयन संस्कार के गीतों को छत्तीसगढ़ मे बरुवा गीत कहते हैं। उपनयन संस्कार के गीत : बरुआ गीत - बरुआ गीत कई सारे हैं। बरुआ गीतों के माध्यम से लड़कों को ब्राह्मण बनने के लिए उत्साह दिया जाता है। एक गीत इस प्रकार है जिसमें एक लड़का जिसका नाम है भीखम लाल, वह महंगू राय नाम के एक ब्राह्मण से कह रहा है कि उसे ब्राह्मण बना ले। महंगू राय उस लड़के से चैत्र महीनों में आने के लिये कहता है -
बरुवा गीतों में व्यंग्य का प्रयोग बड़ा ही सुन्दर तरीके से किया गया है। एक गीत है जिसमें लड़का अपने आप को काशी का ब्राह्मण बताते हुये रिश्तेदारों से भिक्षा मांगता है। उसके रिश्तेदार उसे बहुत कुछ देते हैं, पर उसका मामा उसे जवाब देता है -
मृत्यु संस्कार के गीत छत्तीसगढ़ में कबीर पंथियों में मृत्यु संस्कार के गीत गाये जाते हैं। इसे साखी कहते हैं। साखी के बोल सुनने से लोग अपने आप को पहचान पाते हैं - यह उनका विश्वास है। साखी गाये जाने के कई सारे नियम हैं। स्रियों की मृत्यु के बाद जो साखी गाये जाते हैं, वह भिन्न है। प्यारेलाल गुप्त, अपनी पुस्तक "प्राचीन छत्तीसगढ़" में इन गीतों को विषय की दृष्टि से विभाजन किया गया है - 1 ) जीव की स्थिति विष्यक 2 ) जगत, अमर लोक, सत लोक विषयक 3 ) कबीर गुरु पंचनाम आदि विषयक। 1 . जीव की स्थिति विष्यक - "जीव की स्थिति विषयक साखियों में जीव के उद्धार की कामना की गयी है। जीव दीन दयाल से प्रार्थना करता है कि इस समय मेरा उद्धार कर। जीव और दीन दयाल एक ही देश के रहने वाले हैं और एक ही घाट में उतरे है। जीव तो माया के वश में होने के कारण परदेशी हो गया है; इसलिए वह सत्य गुरु की याद करता है। यम को उत्तर देने के लिए जीव त्रिकुटी घाट में बताता है -
2 . जगत और अमरलोक सतलोक विषयक - जगत, अमरलोक और सतलोक विषयक साखियों में जगत का जीव को मायके माना है और अमर लोक को ससुराल। भव सागर में रहने के लिए जीव को बहुत ही सावधानी बरतने को कहा गया है -
इस भवसागर में रहते तक जीवात्मा को व्यापार करने के लिए और कृषि करने के लिए कहा गया है। क्योंकि अमरलोक में जाने के बाद ये सब काम करने को नहीं मिलेंगे, यह व्यापार निज नाम का है। गीत की पंक्तियाँ इस प्रकार है -
इन साखियों में मिलनेवाला अमरलोक सतलोक है जिसे कबीर लोक भी कह सकते हैं। हंसा शरीर त्यागने के बाद त्रिकुटी घाट में पहुँचता है जहाँ उसे तीन रास्ते मिलते हैं, एक रास्ता बैंकुठ लोक के लिए, दूसरा यमलोक को और तीसरा सतलोक जाता है। पापी जीव तो यमलोक को जाता है परन्तु जो जीव पाँच नाम की गठरी लेकर चलता है और यम राज को खोलकर अपनी गठरी दिखा देता है वह जीव सीधा सतलोक में पहुँच जाता है। कबीर साहब के संबंध में इन गीतों में बनाया गया है कि कबीर साहब चारों युग में अवतार लेने वाले महात्मा हैं। सतयुग में उनका नाम सत्यनाम, त्रेता में मुनीन्द्र, द्वापर में करुणाम और कलयुग में कबीर रहा। कबीर के सम्बन्ध में कहा गया है -
पृ. 373-374 , प्यारेलाल गुप्त "प्राचीन छत्तीसगढ़" - रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर। |
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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee
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