देवार गीत
देवार जाति के लोग गाते है।
देवार है छत्तीसगढ़ की भ्रमण शील
जाति या धुमन्तु जाति। कभी इधर
तो कभी उधर, इसीलिये शायद इनके
गीतों में इतनी रोचकता है, इनके
आवाज़ में इतनी जादू है।
देवार लोगों के
बारे में अनेकों कहनियाँ प्रचलित
है जैसे एक कहानी में कहा जाता है
कि देवार जाति के लोग गोंड राजाओ
के दरबार में गाया करते थे। किसी
कारण वश इन्हें राजदरबार से
निकाल दिया गया था और तबसे
धुमन्तु जीवन अपनाकर कभी इधर
तो कभी उधर दुमते रहते है।
जिन्दगी को और नज़दीक से देखते
हुये गीत रचते है, नृत्य करते है।
उनके गीतों में संधर्ष है, आनन्द है,
मस्ती है।
देवार गीत रुजू, ठुंगरु,
मांदर के साथ गाये जाते है।
देवार गीत मौखिक परम्परा पर आधारित
है।
गीतों के विषय अनेक
है कभी वीर चरित्रों के बारे में
है तो कभी अत्याचार के बारे में
है। कभी हास्यरस से भरपूर है
तो कभी करुणा रसे से। कहीं पाण्डवगाथा
में युद्ध के बारे में है - जैसे -
दूनों के फेर रगड़ी गा रगड़ा गा बेली
गा बेला गा धाड़ी गा धाड़ा गा रटा
रि ए, धड़ाधिड़" ।
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