छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


कुकुरमाढ़ी

छत्तीसगढ़ में बलूदा बाज़ार के नज़दीक एक गाँव है, जिसका नाम बहुत ही विचित्र है। कुकुरमाढ़ी ! नाम कुत्ते पर रखा गया है स्थानीय बोली में कुकुर कुत्ते को कहते है। यह कहानी उसी कुत्ते की कहानी है जो बहुत ही स्वामीभक्त था और उसकी कब्र आज भी वहाँ देखी जा सकती है। कुकुरमाढ़ी गाँव वाले आज भी बहुत हिफाज़त करते है उसकी कब्र की।

उस गाँव में हमारा यह कुत्ता एक आदमी के साथ रहता था जिसका नाम भुनेश्वर। भुनेश्वर उसे कुकुरा कह कर बुलाया करता था और इस दुनियाँ में अपने कुकुरा के सिवाय उसका और कोई भी नहीं था। कुकरा और भुनेश्वर के बीच बहुत ही प्रगाढ़ सम्बध था। गाँव में हर कोई जानता था कि वे एक दूसरे का कितना ख्याल रखते थे। कुत्ते जात्ति के अनुरुप भुनेश्वर के प्रति कुकुरा की निष्ठा उस हद की थी जिसे बयान नहीं किया जा सकता। वह भुनेश्वर के मन में चल रही सारी बातों को बखूबी समझ लेता था। यदि कभी भुनेश्वर उदास होता तो वह चुपचाप उसके बगल में आकर बैठ जाता। उस समय वह चिड़ियों के पीछे भी नहीं भागता। और चिड़िया कुकुरा की इस मनोदशा को भाँप निडर हो कर आँगन में फुदकती रहती। जब भुनेश्वर प्रसन्न रहता तो कुकुरा भी उसके चारों ओर चक्कर काटकर पूँछ हिल-हिला कर अपनी खुशी का इज़हार करता। चिड़ियाँ इस समय उसे एक सुरक्षित दूरी से देखा करती थी।

रोज़ सुबह भुनेश्वर गाँव के किसानों की ज़मीन जोतने निकल जाया करता और साँझ ढलने पर वापिस लौटता था। काम पर निकलने से पहले भुने श्वर और कुकुरा दोनों " बासी" खाते। दोनों को " बासी" याने रातभर पानी में भिगोकर रखा गया भात बहुत ही पसन्द था। भुनेश्वर की क्षमता सिर्फ " बासी" भर ही जुटा पाने की थी।

लेकिन आषाढ़ के महीने में जब खेतों में काम आरंभ होता, उस समय तो भुवनेश्वर के लिए " बासी" जुटा पाना भी कठीन हो जाता। हर आषाढ़ के महीनें के दौरान वह इन्तजार करता उसकी शीध्रता के साथ गुज़र जाने का लेकिन उसे ऐसा लगता मानों आषाढ़ कभी खत्म नहीं होगा। उसे लगता कि आषाढ़ एक महीने का नाम नहीं बल्कि दो महिनों का नाम है। वह अपने झोपड़े की थरथराती दीवारों से सटकर बैठा हुआ कुकरा से कहता - " दुबर ला दो आषाढ़" कमज़ोर गरीबों के लिए दो आषाढ़ होते हैं।

हर साल भुनेश्वर थोड़े थोड़े पैसे बचाने की सोचता जिससे कि वह शादी कर सके। लेकिन वह जो भी पैसे बचाता, आषाढ़ के महीने में खत्म हो जाते क्योंकि उस समय उसके पास कोई काम नहीं होता।

वह कैसे शादी कर सकता था, कैसे बसा सकता था अपना धर? वह ढेर सारे बच्चें पैदा करना चाहता था लेकिन इतनी कम आमदनी में यह संभव ही नहीं था। यदि वह कोई व्यापार कर पाता जैसे किसी दूसरे गाँव से बरतन खरीद कर लाता और अपने गाँव में बेचता तो यह संभव था। लेकिन उसके लिए तो पैसों की जरुरत पड़ती। साहूकार से उसे कर्ज के द्वारा पैसे मिल सकते थे। लेकिन पैसे देने से पहले साहूकार उसे कोई चीज़ गिरवी रखने के लिए कहता जिसकी एवज में वह उसे कर्ज दे सके। झोपड़ी तो पहले ही गिरवी रखी जा चूकी थी। भूनेश्वर के माँ बाप जब बहुत बीमर थे तो उसे गिरवी रखना पड़ा था।  उसके माँ बापु दोनों ही उसे अपनी जिनदगी से जूझने के लिए अकेला छोड़ एक एक कर चल बसे। अब तो भुनेश्वर को खुद को अपनी शादी की चिंता करना पड़ रहा है। एक और बात थी जो भुनेश्वर को चिंतित कर रही थी। कौन करेगा कुकुरा की देखभाल जब वह बाहर जायेगा?

एक दिन भुनेश्वर को एक बात सूझी। वह जा पहूँचा साहूकार के सामने और उसने उससे अपने मन की बत कही। साहूकार उसे सुनता रहा। उसके माथे पर सलवटें पड़ आई थी। जब भुनेश्वर अपनी बात खत्म कर रहा था तो उसने उसे डाँटते हुए कहा- " तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हारा कुत्ता गिरवी? रखूँगा क्या तुम नहीं जानते कि मैं सिर्फ ज़मीन-जयदाद या गहने जैसी चीज़ ही गिरवी रखता हूँ ?"

भुनेश्वर साहूकार से विनती करता रहा कि कुकुरा साहूकार के धर से बाहर तब तक एक कदम भी नहीं रखेगा जब तक कि वह अपने वह अपने व्यापार से लौटकर नहीं आता। जब भुनेश्वर उसे कुकुरा के स्वभाव के बारे में बार-बार आश्वास करता रहा तो साहुकार को एक बार फिर से उसकी बातों पर गौर करना पड़ा। वह जानता था कि भुनेश्वर कितना प्यार करता है कुकुरा से। और अंत में वह राज़ी हो ही गया कुकुरा को बंधक रखने के लिए। और जब भुनेश्वर लौटने लगा, साहुकार ने उसे कड़ाई से कहा - " बोल देना अपने कुत्ते से कि जब तक तुम लौटकर वापिस नहीं आते, वह मेरे धर से बाहर नहीं निकले।"

उस दिन भुनेश्वर खुशी खुशी धर लौटा। धर आकर उसने कुकुरा को सारी बातें बताई। कुकुरा अपनी गर्दन हल्कीं सी बाँई ओर धुमाए, दोनों कान खड़ी कर चमकती आँखे लिये सुनता रहा। जब बातचीत खत्म हो गई तो कुकुरा ने प्यार से अपनी पूँछ हिलाई और भुनेश्वर के चारों ओर धूमने लग गया। मानों वह यह बताना चहाता था कि उसकी शादी के ख्याल से वह कितना खुश है। भुनेश्वर ने उसे दुलार से थपकी दी और कहा - " मेरे बच्चें तुम्हारे बच्चों के साथ खेला करेंगे।" कुकुरा उसके चारो ओर और तेज़ी से चक्कर काटने लग गया। और उस दिन, बहुत दिनों के बाद वह छोटा सा झोपड़ा, जिसकी छत में कई छेद थे और जिसकी दीवारें हिलती थीं, हँसी और खुशी के गान से भर उठा।

दूसरे दिन जब भुनेश्वर कुकुरा के साथ साहुकार के धर पहुँचा तो साहुकार वहाँ लोहे की एक जंजीर लिये उनका इन्तजार कर रहा था। भुनेस्वर उस लोहे की जंजीर को देखकर थमा-सा गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसने साहुकार से विनती करते हुए कहा - " मेहरबानी करके उसे जंजीर से मत बाँधना। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मेरा कुकुरा तब तक आपके धर से बाहर कदम नहीं रखेगा जब तक कि मैं लौट कर नहीं आ जाउँ।"

बार बार आश्वासन दिये जाने के बाद साहूकार राजी हो गया और बोला " ठीक है, लेकिन तुम अपने कुत्ते को बोल दो वह तब तक मेरे धर से बाहर कदम न रखे जब तक तुम लौट कर वापिस नहीं आ जातें। और अगर वह ऐसा करता है, तो याद रखना, तुम्हें अपने कर्ज की दुगनी रकम लौटानी होगी।

भुनेश्वर कुकुरा के ऊपर झुकता हुआ बोला - बेटे इस बात का ध्यान रखना। जब तक मैं वापिस नहीं आ जाता, तुम्हें धर से नही निकलना है।"

कुकुरा ने अपने सर को भुनेश्वर की हथेलियों में दो बार गड़ते हुए ज़ोर ज़ोर से दबाया मानों वह उससे कह रहा है कि तुमने सोच कैसे लिया कि मैं धर से बाहर कदम भी निकालूंगा और तुम्हें बेइज्ज़त होने दूँगा ?"

और जब भुनेश्वर व्यापार के लिए जाने लगा। तो कुकुरा साहूकार के दरवाज़े पर खड़ा था। चुपचाप, अपने प्यारे दोस्त को हृदय की गहराइयों अलविदा करता हुआ।

और उसके बाद कुकुरा कभी भी उस धर से बाहर नहीं निकला। साहूकार के बच्चों साथ खेलने के लिए उसे बुलाते रहते पर कुकुरा दरवाज़े पर खड़ा दूम हिलाता रहता था।

साहूकार के बच्चें, साहूकार की पत्नी कुकुरा को प्यार करने लगे थे। वे उसे गले लगाकर दुलार करते, उसे अच्छे अच्छे खाना खिलाते। सिर्फ साहूकार उस पर चीखा करता। " दूर हट कुत्ते कहीं के" लेकिन इस सब के बाद भी ज्योंहि कुकुरा की नज़रे साहूकार पर पड़ती, वह अपनी पूँछ हिलाना शुरु कर देता। और तभी एक रात साहूकार के ऊपर विपत्ति आ पड़ी। एक रात चोरों साहूकार के धर में धुस आया। साहूकार, जो तिजौरी के पास सोया करता था, उसे चोरों ने बाँध दिया और तिजौरी खोल गहने अपने झोलों में भरने लग गये। साहूकार अपने पेट पर टिकाये गये चाकू के नोंक को देखता एकदम चुपचाप पड़ा रहा। लगभग आधे धंटे में चोरों ने तिजोरी के सारे गहने समेट लिये और चलते बने। चोरों के जाने के बाद जब साहूकार हुआ रोने चिल्लाने लगा तब परिवारजनों को मालूम पड़ा। जल्दी ही सारा धर जग गया और चारों ओर शोर मच गई। उस शोर में किसी ने ख्याल नहीं की कि कुकुरा गायब हो चुका था।

असल में कुकुरा चोरों का पीछा कर रहा था। वह उनका पीछा करता करता पास के एक जंगल तक जा पहुँचा।ाँ किसी झाड़ी के पीछे छिप कर वह उस जगह को अच्छी तरह देखता रहा जहाँ चोरों ने गहने और पैसे छिपाया था। वह वहाँ तब तक प्रतिक्षा करता रहा जब तक कि चोर वहाँ से चले नहीं गये। उसके बाद वह पूरी ताकत के साथ दौड़ता हुआ साहूकार के धर लौेट आया।

इस समय तक साहूकार के डरे हुए बीवी बच्चें थक कर वापिस अपने कमरें में जाकर आराम करने लग गये थे। साहूकार अपनी खुली तिज़ोरी के सामने बैठा था। उस वक्त कुकुरा वहाँ तेज़ी से दौड़ता हुआ आया। साहूकार उसे देखकर ही चिल्ला उ - " दूर हट कुत्ते कहीं के" लेकिन इस बार कुकुरा डर कर भागा नहीं। वह साहूकार की धोती खींचने लगा। साहूकार गुस्से से आग बबूला हो उठा। चिल्लाने लगा - " तेरी इतनी मजाल। भाग जा नहीं तो मैं तुझ मार डालूंगा।"

उसने कुकुरा को एक जोर का धक्का दिया। लेकिन कुकुरा गिर का फिर तेज़ी से उसकी ओर आया और ज़ोर ज़ोर से भौंकने लगा। साहूकार पास पड़े हुये एक स्फूल को उठा लिया और कुकुरा को मारने के लिये आगे बढ़ा। शोरगुल सुनकर साहूकार की पत्नी और बच्चें वहाँ आ गये और कुकुरा की रक्षा के लिए उसके सामने खड़े हो गये साहूकार चिखने लगा - " हट जाओं सामने से, मैं आज इस गंदे कुत्ते को जान से मार डालूंगा" उसकी पत्नी ने कहा - " कुकुरा हमारे गाँव का सबसे बेहतरीन कुत्ता है।" साहूकार और जोर से चिल्लाय - " सबसे बदमाश कुत्ता है वह। वह मेरी धोती खीच रहा था" साहूकार की पत्नी ने कहा - " क्या ! ऐसा हो ही नहीं सकता" उसी वक्त कुकुरा उसकी साड़ी का पल्लू खींचने लग गया। साहूकार की पत्नी बहुत ही आश्चर्य चकित हो गई थी पर वह कुकुरा के साथ खिंचती हुई जाने लगी। अरे ! कुकुरा तो उसे धर से बाहर ले जा रहा है। उसके आश्चर्य का ठीकाना नहीं रहा। बाहर पहुँच कर कुकुरा उसका पल्लू खींचना बंद कर दिया और जंगल की ओर देखता हुआ उछल उछल कर भूंकने लगा।

साहूकार की बड़ी बेटी, कुकुरा को बहुत ध्यान से देखती हुई कहा " शायद कुकुरा हमसे कुछ कहना चाह रहा है - जंगल के बारे में -- चलो इसके पीछे पीछे चलते है।"

साहूकार तो उनपर चिल्लाने लगा " मूर्खो, मैं तुम्हें आदेश देता हूँ कि सब अन्दर आओ" लेकिन बच्चें सभी कुकुरा के पीछे पीछ्े चल पड़े। कुकुरा उत्तेजना में भूँकता हुआ, उछलता आगे बढ़ने लगा।

जब वे सब उस जगह पहुँचे, कुकुरा ठहर गया। फिर उसने ताज़ा ताज़ा खोदी गई ज़मीन के पास पहुँच कर दो बार धरती को सूँधा। औऱ अपने पँजों से धरती को खोदने लगा। कुकुरा को देखकर बच्चें भी जमीन खोदने लग गये। ज्यों ज्यों ज़मीन खुदती जा रही थी, हवा में उत्तेजना भरती जा रही थी और जब अंत में वह गंठरी हाथ लगी जिसमें गहने बंधे हुए थे, तब कुकुर उनके चारों और नाचने लग गया। खुशी के मारे सब एक दुसरे गले मिलने लगे। और उसके बाद सबसे बड़ा बच्चा अपनी पीठ पर वह गठरी लादकर धर की ओर वापिस चल पड़ा। सभी बच्चों पीछे पीछे आने लगे कुकुरा उनके आगे आगे भागने लगा। और तभी अचानक कुकुरा रुक गया। उसने अपने कान खड़े कर लिये और हमा को गहराई के साथ सूँधने भयभीत होकर। लेकिन जब कुकुरा खुशी से हौले-हौले अपनी दुम हिलाने लगा। तो उनका भी भय दूर हुआ। और तभी कुकुरा उस कच्चे रास्ते की ओर दौड़ पड़ा जो दूसरे गाँव को जाता था।

हाँ, भुनेश्वर आ रहा था। उसकी पीठ पर एक बड़ा सा गट्ठर लदा था बरतनों का गट्ठर, गट्ठर ढोता-ठोता वह थक गया था। वह धीरे धीरे चल रहा था।

तभी उसे जानी पहचानी भूँकने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह अविश्वास में खड़ा हो गया। उसने मन ही मन सोचा - " नहीं ऐसा नहीं हो सकता मेरा कुकुरा कभी भी मुझे झुठा नहीं कर सकता। वह कभी भी धर से बाहर नहीं निकल सकता। और तभी उसने देखा कुकुरा तेजी से, खुशी में उछलता कुदता हुआ उसकी ओर दौड़ता चला आ रहा है। भुनेश्वर उसे देखता रहा। साहूकार की चेतावनी उसके आँकों के सामने आने लगा।

कुकुरा इतना खुश था। इतना खुश था कि उसने इस बात पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया कि भुनेश्वर उसे घूर रहा है। वह तेज़ी से उसके पास आया और उसे चाटने लगा। उसकी पूंछ तेजी से हिल रही थी। गुस्सा में काँपता हुआ भुनेश्वर गरजा " बाहर कैसे निकला" उसका चिल्लाना बढ़ता गया और उसने बरतन का वह गट्ठर, भारी गट्ठर उसके सर पर मारा।

कुकुरा ज़मीन पर गिर गया। उसको समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ। ज़मीन पर गिरते हुए हिचकी ली और भुनेश्वर की ओर देखा। उसकी गहरी भूरी आँकों में अविश्वास था।

साहूकार के बच्चें जो उस समय कुछ दूरी पर थे सब एक साथ चिल्ला पड़े। वे सभी शोर करते हुए कुकुरा की ओर तेज़ी से आने लगे।

कुकुरा ने अपनी गर्दन उनकी ओर धुमाने की निष्फल चेष्टा की। उसने भुनेश्वर की ओर कातर निगाहों से देखा। भुनेश्वर जड़-सा खड़ा था। उसकी बाँहे झूल रही थी। वह असहाय-सा अपने कुकुरा को मौत के मुँह में जाते देख रहा था।

कुकुरा आँकों में प्यार और एक मूक समझदारी भरकर तब तक भुनेश्वर की ओर देखता रहा जब तक उसकी आँखें बंद न हो गई।

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee

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