हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 9


IV/ A-2007        

हिन्दी समाज,

  शान्तिनिकेतन

9.2.36

श्रद्धास्पदेषु,

  कृपा-पत्र मिला। व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन सुरेन बाबू ने कहा है कि चतुर्वेदी जी से कह दीजिये कि गुरुदेव 14 फरवरी तक कलकत्ते में ही रहेंगे। हम लोग व्यवस्था कर रहे हैं। परन्तु इतना जान कर यह तै कीजियेगा कि आना कब ठीक होगा। अगर उस दिन आने का इरादा न हो तो यथाशीघ्र सूचना दीजियेगा।

विशेष

 अपने लेख में एक श्लोक मैंने कोट किया है (धन्यासि) शायद 10 या 11 पृष्ठ के आस-पास है। उसकी तीसरी लाइन में लिखा है- नींवि प्रति प्रणिहिते तु करे प्रियस्य। इसमें प्रियस्य की जगह प्रियेण कर दीजियेगा।

  2 . महादेवी जी के विषय में एक जगह लिखा है-भूल करना महादेवी जी का स्वभाव है। हमारे कई मित्र कहते हैं कि यह वाक्य बहुत कड़ा है। आपको भी अगर कड़ा जँचे तो मृदु कर दीजियेगा।

  राष्ट्रबंधु के सम्पादक श्री विश्वनाथ वर्मा और बालकृष्ण जी पोद्दार नामक एक सज्जन आये हैं। पोद्दार जी ने हिन्दी लाइब्रेरी में जो नहीं हैं, ऐसी चुनी हुई पुस्तकों के (50 /- रुपये कीमत की) देने का वचन दिया है। शेष कुशल है।

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली