हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 20


IV/ A-2020

शान्तिनिकेतन

7.9.37

श्रध्देय चतुर्वेदी जी,

  प्रणाम!

  कृपा-पत्र मिल गया। वि.भा. में दे सकने लायक कुछ टिप्पणियाँ आज्ञानुसार भेज रहा हूँ। जो अच्छी लगें, उनमें यथोचित परिवर्तन के साथ दे दें। हिन्दी भवन का समाचार आनन्द के साथ सुना। अब आपका स्वपन सफल होगा। जा कर जा पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कुछ सन्देहू।। मैने एक टिप्पणी इस विषय पर भी दी है। वह ज्यों-की-त्यों छापने के लिये नहीं, मेरा नाम तो उसमें नहीं ही आना चाहिए। आप अपने नाम पर उसी लाइट में टिप्पणी लिख दें। मेरा व्यक्तिगत संबंध इस बात से होने के कारण मैं अपनी ओर से कुछ कहने में संकुचित होता हूँ। आपसे कहने में कोई संकोच नहीं। मैं आपसे अपने हृदय की बात कर रहा हूँ। शान्तिनिकेतन में रहकर मैं जो कुछ साहित्यिक कार्य कर सकता हूँ, वह नहीं कर सकता। मुझे 30-35 पीरियड प्रति सप्ताह काम करने के बाद भी प्रतिदिन पेट की चिन्ता के लिये कई अनावश्यक यान्त्रिक काम करने पड़ते हैं। जो क्लास मैं लेता हूँ, उसमें ग्यारह घंटे संस्कृत में, दो घंटे स्तोत्र में, 6 घंटे गणित पढ़ाने में सम्मिलित हैं। हिन्दी का कुछ कार्य 10-11 घंटे करता हूँ। इस प्रकार 19 धंटे मेरा कम करके साहित्यिक रचनात्मक कार्य में लगाया जा सकता है। मेरी बहुत इच्छा है कि विंटरनित्स के भारतीय साहित्य के ढ़ग पर समस्त भारतीय साहित्य का एक परिचयात्मक इतिहास हिन्दी में लिखूँ, पर रुटीन वर्क के बोझ से ऐसा करना एकदम असंभव है। इसी प्रकार चन्दोला जी से भी बहुत कुछ साहित्यिक कार्य की आशा की जा सकती है पर यह सब तभी हो सकता है, जब हम लोगों को कुछ रचनात्मक कार्य करने की भी सुविधा रहे। हिन्दी भवन की व्यवस्था में ऐसे प्रोविज़न की ज़रुरत है। मैं जोर देकर कहता हूँ कि केवल भाषा का प्रचार ही अगर हिन्दी भवन का लक्ष्य हो तो यह पन्द्रह हजार रुपया अन्यत्र ज्यादा काम कर सकता है। शान्तिनिकेतन में हिन्दी भवन का प्रयत्न गम्भीर साहित्यिक प्रतिष्ठान के रुप में होना चाहिए। मुझे अगर कुछ रचनात्मक कार्य करने की सहूलियत हो तो मैं तो बच जाऊँ। यह सब बातें केवल आपसे कह रहा हूँ।

   यह सुनकर कि आप विशाल भारत को छोड़ भी सकते हैं, जी में कैसा-कैसा लग रहा है। ऐसा आपने क्यों निश्चय किया। वि.भा. से हमारी एक गहरी आत्मीयता है, वह आपके ही कारण। इधर धन्य कुमार जी ने भी इस्तीफा दे दिया है। वि.भा. का क्या होगा। वि.भा. के लिये आपको क्या किसी सहायक की ज़रुरत है ?मैं एक बहुत योग्य युवक का नाम suggest करता हूँ। भक्त दर्शन1 तो आपको याद होंगे। उन्होंने इलाहाबाद से राजनीति में एम.ए. पास किया है और स्वयं पत्र निकालने का विचार कर रहे हैं। वे बहुत सुलझे हुए आदमी और आपके नितांत अपने हैं। इनको आप बुला सकते हैं।

  आगे जो कुछ लिख कर भेज रहा हूँ, उसे आप अपनी भाषा में कर लें तो अच्छा हो।

       शेष कुशल है। आप क्या अब भी यहाँ आने का विचार रखते है? लम्बी छुट्टी पर जाने के पहले क्या यहाँ एक बार नहीं आयेंगे। हिन्दी भवन के बारे में कुछ विधिव्यवस्था के संबंध में बातें करने का विचार था। आप जाने की तारीख़ लिखें तो हम लोग भी आने की चेष्टा करेंगे।

आपका

हजारी प्रसाद


1 . श्री भक्त दर्शन एवं द्विवेदी जी के शिष्य - भू.पू. शिक्षा मंत्री, भारत सरकार

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली