हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 45


IV/ A-2044

विश्वभारती

शान्तिनिकेतनम्

  बंगदेश:

14.5.41

श्रध्देय पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

       पं. राजकुमार जी का पत्र मिल गया। उन्हें अलग से पत्र लिख दिया है। वे यहाँ आयेंगे तो कोई तकलीफ़ नहीं होने पायेगी। आजकल कबीरदास के संबंध में एक पुस्तक लिखने में उलझा हुआ हूँ। यथासंभव सभी प्राचीन पंडितो की व्याख्या और उसके प्रकाश में कबीर के मत का उद्घाटन ही हमारा प्रधान उद्योग है। रगड़ तो बहुत रहा हूँ, पर देखूँ, कहाँ तक सफलता मिलती है। इस बार कोशिश कर रहा हूँ कि भाषा ऐसी लिखूँ कि आपको भी सर्टिफिकेट देना पड़े। वह हिन्दुस्तानी तो नहीं होगी, पर संस्कृत तो निश्चय ही नहीं होगी। शास्रीय विषयों को सहज भाषा में लिखने में काफी अड़चन पड़ रही है। पर देखिये कहाँ तक सफल होता हूँ। आशा करता हूँ कि जुलाई तक इसका खाका तैयार हो जायेगा।

       और सब कुशल है। इस बार छुट्टियों में कहीं गया नहीं। यह अच्छा ही हुआ है, क्योंकि यहाँ रहने से कुछ पढ़ाई-लिखाई के लिये अवसर मिल गया है।

       ८ मई को गुरुदेव का जन्मदिन हम लोगों ने फिर धूमधाम से फिर मनाया। आदमी थोड़े थे, यह और भी अच्छी बात थी। कल एक और उत्सव होगा। महाराजा त्रिपुरा ने गुरुदेव को भारत भास्कर की उपाधि दी है। उसे लेकर उनके प्रतिनिधि कल आये थे। हम लोग यहाँ थोड़े ही हैं। इसलिए खूब उत्साह से उत्सव मनाते हैं। छुट्टियों में ये उत्सव मरुभूमि के ओएसिस के समान हैं।

       और सब कुशल है।

       आशा है, आप सानन्द हैं।

आपका

हजारी प्रसाद

       श्रध्देय पं. बनारसी दास जी चतुर्वेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली