हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 75


IV/ A-2077

ओझवलिया

पो.आ.-बसरिकापुर

जिला-बलिया (यू.पी.)

 21.5.47

श्रध्देय पंडित जी,

              सादर प्रणाम!  

       मैं छुट्टियों में यहाँ घर आया हुआ हूँ। आपका पत्र शान्तिनिकेतन से लौट कर आया है। मैने ने लिखा है कि आपने जो अंक माँगा है वह भेज दिया गया है। आशा है, मिल गया होगा।

       इधर बड़ी महँगी है। दारिद्रय का तो प्रत्यक्ष नृत्य हो रहा है। लोग पूछते हैं कि सचमुच सुराज हो रहा है। जब पुछते हैं कि तो उनका मतलब बराबर यही होता है कि अन्न-वस्र मिलने लायक हालत सचमुच आ रही है। सुराज का अर्थ यहाँ भरपेट मोटा अन्न और वस्र ही है।

       आशा करता हूँ आप प्रसन्न हैं। बीच में मैंने सुना था कि आप टीकमगढ़ नहीं रह रहे हैं। परन्तु आपके पत्र से मालूम हुआ कि यह खबर गलत थी। आजकल स्वास्थ्य कैसा चल रहा है।

       चतुर्वेदी का यज्ञोपवीत २९ मई को हो रहा है। आपका शुभाशीर्वाद माँगता है।

       शेष कुशल है।

आपका

हजारी प्रसाद  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली